presentation se kya abhipray hai

45,000+ students realised their study abroad dream with us. Take the first step today

Here’s your new year gift, one app for all your, study abroad needs, start your journey, track your progress, grow with the community and so much more.

presentation se kya abhipray hai

Verification Code

An OTP has been sent to your registered mobile no. Please verify

presentation se kya abhipray hai

Thanks for your comment !

Our team will review it before it's shown to our readers.

presentation se kya abhipray hai

  • Paryayvachi Shabd /

अभिप्राय का पर्यायवाची शब्द | Abhipray ka Paryayvachi Shabd क्या है साथ ही जानिए अभिप्राय के पर्यायवाची शब्दों का वाक्य में प्रयोग

presentation se kya abhipray hai

  • Updated on  
  • अगस्त 22, 2023

Abhipray ka Paryayvachi Shabd

Abhipray ka Paryayvachi Shabd आशय, अभिप्राय, तात्पर्य, मतलब और निर्मित आदि आम तौर पर उपयोग किए जाते हैं। यहां आप अभिप्राय का पर्यायवाची शब्द (Abhipray ka Paryayvachi Shabd) क्या है, अभिप्राय शब्द का वाक्य में प्रयोग और अ वर्ण से पर्यायवाची शब्द ये पॉइंट्स विस्तार से जानेगें।

अभिप्राय का पर्यायवाची शब्द क्या है?

  • अभिप्राय का पर्यायवाची शब्द – आशय, अभिप्राय, तात्पर्य, मतलब, निर्मित, उद्देश्य और नीयत आदि।

यह भी पढ़ें :

  • रात का पर्यायवाची शब्द
  • आकाश का पर्यायवाची शब्द
  • पानी का पर्यायवाची शब्द
  • घोड़े का पर्यायवाची शब्द
  • बालक का पर्यायवाची शब्द

अभिप्राय के पर्यायवाची शब्दों का वाक्य में प्रयोग

  • बिना मतलब के आज कल कोई किसी का साथ नहीं देता है। 
  • अपने उद्देश्य को हमेशा पहले रखना चाहिए।
  • मेरा तात्पर्य बिलकुल भी गलत नहीं था।
  • नीयत के अच्छे सभी लोग नहीं होते हैं।

अ वर्ण से पर्यायवाची शब्द

अ वर्ण से पर्यायवाची शब्द कुछ इस प्रकार है-

  • अतिथि का पर्यायवाची – मेहमान ,पाहुन ,आगंतुक, अभ्यागत।
  • अश्व- घोड़ा,आशुविमानक, तुरंग, घोटक, हय, तुरंगम, वाजि, सैंधव, रविपुत्र।
  • अधर्म- पाप ,अनाचार, अनीत, अन्याय, अपकर्म, जुल्म।
  • अचल- अडिग ,अटल ,स्थिर ,दृढ, अविचल।
  • अनुपम- अनोखा, अनूठा, अपूर्व, अद्भुत, अद्वितीय, अतुल।
  • अमृत का पर्यायवाची – मधु, सुधा, पीयूष ,अमी, सोम ,सुरभोग।
  • अंबा- माता, जननी, मां, जन्मदात्री, प्रसूता।
  • अलंकार– आभूषण, भूषण, विभूषण, गहना, जेवर।
  • अहंकार– दंभ, गर्व, अभिमान, दर्प, मद, घमंड, मान।
  • अरण्य– जंगल, वन, कानन, अटवी, कान्तार, विपिन।
  • अंकुश– नियंत्रण, पाबंदी, रोक, अंकुसी, दबाव, गजांकुश, हाथी को नियंत्रित करने की कील, नियंत्रित करने या रोकने का तरीका।
  • अंतरिक्ष– खगोल, नभमंडल, गगनमंडल, आकाशमंडल।
  • अंतर्धान– गायब, लुप्त, ओझल, अदृश्य।
  • अंबर– आकाश, आसमान, गगन, फलक, नभ।
  • अंतर्गत– शामिल, सम्मिलित, भीतर आया हुआ गुप्त।
  • अँधेरा का पर्यायवाची – तम, अंधकार, तिमिर, कुहा, कुहरा, कुहासा, धुन्ध, घना, गाढ़ा, प्रकाशहीन, नैराश्य, गहरा

संबंधित आर्टिकल

  • नदी के पर्यायवाची शब्द
  • हिमालय का पर्यायवाची शब्द 
  • कनक का पर्यायवाची
  • पथ का पर्यायवाची शब्द
  • कमल का पर्यायवाची शब्द
  • घर का पर्यायवाची शब्द
  • गुण का विलोम शब्द
  • सरस का विलोम शब्द
  • नवीन का विलोम शब्द
  • बुद्धिमान का विलोम शब्द
  • उन्नति का विलोम शब्द
  • मुर्ख का विलोम शब्द
  • विश्वास का विलोम शब्द
  • अविश्वास का विलोम शब्द
  • दिवा का विलोम शब्द
  • रात्रि का विलोम शब्द
  • क्रूर का विलोम शब्द
  • प्रसन्न का विलोम शब्द
  • अप्रसन्न का विलोम शब्द
  • जड़ का विलोम शब्द
  • चेतन का विलोम शब्द
  • सुन्दर का विलोम शब्द

अन्य पर्यायवाची शब्दों से संबंधित ब्लॉग्स के बारे में जानने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

' src=

सीखने का नया ठिकाना स्टडी अब्रॉड प्लेटफॉर्म Leverage Eud. जया त्रिपाठी, Leverage Eud हिंदी में एसोसिएट कंटेंट राइटर के तौर पर कार्यरत हैं। 2016 से मैंने अपनी पत्रकारिता का सफर अमर उजाला डॉट कॉम के साथ शुरू किया। प्रिंट और डिजिटल पत्रकारिता में 6 -7 सालों का अनुभव है। एजुकेशन, एस्ट्रोलॉजी और अन्य विषयों पर लेखन में रुचि है। अपनी पत्रकारिता के अनुभव के साथ, मैं टॉपर इंटरव्यू पर काम करती जा रही हूँ। खबरों के अलावा फैमली के साथ क्वालिटी टाइम बिताना और घूमना काफी पसंद है।

प्रातिक्रिया दे जवाब रद्द करें

अगली बार जब मैं टिप्पणी करूँ, तो इस ब्राउज़र में मेरा नाम, ईमेल और वेबसाइट सहेजें।

Contact no. *

browse success stories

Leaving already?

8 Universities with higher ROI than IITs and IIMs

Grab this one-time opportunity to download this ebook

Connect With Us

45,000+ students realised their study abroad dream with us. take the first step today..

presentation se kya abhipray hai

Resend OTP in

presentation se kya abhipray hai

Need help with?

Study abroad.

UK, Canada, US & More

IELTS, GRE, GMAT & More

Scholarship, Loans & Forex

Country Preference

New Zealand

Which English test are you planning to take?

Which academic test are you planning to take.

Not Sure yet

When are you planning to take the exam?

Already booked my exam slot

Within 2 Months

Want to learn about the test

Which Degree do you wish to pursue?

When do you want to start studying abroad.

September 2024

January 2025

What is your budget to study abroad?

presentation se kya abhipray hai

How would you describe this article ?

Please rate this article

We would like to hear more.

HindiVyakran

  • नर्सरी निबंध
  • सूक्तिपरक निबंध
  • सामान्य निबंध
  • दीर्घ निबंध
  • संस्कृत निबंध
  • संस्कृत पत्र
  • संस्कृत व्याकरण
  • संस्कृत कविता
  • संस्कृत कहानियाँ
  • संस्कृत शब्दावली
  • पत्र लेखन
  • संवाद लेखन
  • जीवन परिचय
  • डायरी लेखन
  • वृत्तांत लेखन
  • सूचना लेखन
  • रिपोर्ट लेखन
  • विज्ञापन

Header$type=social_icons

  • commentsSystem

व्यवस्था सिद्धांत से क्या अभिप्राय है ? डेविड ईस्टन द्वारा प्रतिपादित आगत-निर्गत सिद्धांत की व्याख्या कीजिए।

व्यवस्था सिद्धांत से क्या अभिप्राय है ? डेविड ईस्टन द्वारा प्रतिपादित आगत-निर्गत सिद्धांत की व्याख्या कीजिए। व्यवस्था सिद्धांत पर निबंध लिखें आगत निर्

  • व्यवस्था सिद्धांत पर निबंध लिखें

आगत निर्गत सिद्धांत

  • डेविड ईस्टन के व्यवस्था सिद्धांत की व्याख्या कीजिए

व्यवस्था सिद्धांत (System Theory)

सामान्य व्यवस्था सिद्धांत, व्यवस्था सिद्धांत, उपव्यवस्था सिद्धांत, आदि ने अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में सिद्धांतकरण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में व्यवस्था सिद्धांत व्यवहारवादी क्रान्ति की उपज ही द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विद्वानों ने सामाजिक विज्ञानों में अन्तः अनुशासनात्मक एकीकरण पर बल दिया और यही धारणा सामान्य व्यवस्था सिद्धांत की उपज का कारण थी। इस दृष्टिकोण के प्रतिपादकों का कहना था कि ज्ञान-विज्ञान को विभिन्न विषयों (टुकड़ों) में कठोरता के साथ विभाजित कर दिया गया था जिसके परिणामस्वरूप ज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में तो एक-दूसरे के साथ आदान-प्रदान की क्रिया रुक ही गयी थी। ज्ञान के प्रत्येक विशिष्ट क्षेत्र की प्रगति में भी बाधा आ रही थी। यह स्थिति उत्पन्न हो गयी कि एक विज्ञान में होने वाले विकास की सहायता से दूसरे विज्ञानों की उसी प्रकार की समस्याओं को समझ पाना सम्भव नहीं रह गया था। अतः कतिपय विद्वानों का विचार था कि हमारे अध्ययन और शोध से एक ऐसा सामान्य ढांचा बनना चाहिए जिसमें विभिन्न अनुशासनों से प्राप्त ज्ञान को सार्थक ढंग से संघटित किया जा सके। इस प्रकार 'व्यवस्था सिद्धांत' एक ऐसे आन्दोलन का परिचायक बन गया जिसका ध्येय विज्ञान और वैज्ञानिक विश्लेषण का एकीकरण करना है एक ऐसे व्यापक सिद्धांत की खोज करना है जिसकी सहायता से प्रत्येक विज्ञान को अपनी समस्याएँ अधिक अच्छी तरह समझाने में सहायता मिल सके। सामान्य व्यवस्था सिद्धांत का आरम्भ सैद्धान्तिक रूप में प्राकृतिक विज्ञानों और विशेषकर जीव विज्ञान में हुआ। परन्तु सामाजिक विज्ञान में उसका व्यवहार सबसे पहले मानव विज्ञान में होना आरम्भ हुआ। इसके बाद समाजशास्त्र में उसके कुछ समय बाद मनोविज्ञान में काफी समय बाद राजनीति विज्ञान और अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में उसे प्रयोग में लाया गया।

सामान्य व्यवस्था सिद्धांत की संकल्पना सबसे पहले 1920 के दशक में लुडविग बौन बर्टलनफी नाम के प्रसिद्ध जीव-विज्ञानशास्त्री की रचनाओं में पायी जाती है। उसने 1920-30 में विज्ञान के एकीकरण की आवश्यकता पर बल दिया था। सामाजिक शास्त्रों में इसका प्रारम्भ सबसे पहले सामाजिक मानव विज्ञान में इमाइल दुखीम की रचनाओं में और ए. आर. रैडक्लिफ ब्राउन और ब्रोनिसली मैलिनोवस्की की रचनाओं में स्पष्ट रूप से हआ। सामाजिक मानव विज्ञान के क्षेत्र में इन दोनों लेखकों ने जो सैद्धान्तिक आविष्कार किए उनका प्रभाव राजनीतिशास्त्र पर दो समाजशास्त्रियों रॉबर्ट के मर्टन और टालकॉट पार्सन्स के माध्यम से आया। 1960 के दाशकों के मध्य तक यह दृष्टिकोण राजनीति विज्ञान की खोज और विश्लेषण की प्रमुख प्रविधि बन गया था राजनीति के क्षेत्र में डेविड ईस्टन लया ग्रेब्रियल आमण्ड और अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के क्षेत्र में मॉर्टन कैपलन ने इस सिद्धांत के विकास में महत्वपूर्ण काम किया।

सामान्य व्यवस्था सिद्धांत का अभिप्राय

व्यवस्था की अवधारणा विभिन्न अनुशासनों में विद्यमान कठोर विभक्तीकरण, शोध प्रयासों के अनावश्यक आवृत्तिकरण, प्रति-अनुशासनात्मक अभाव से उत्पन्न परिस्थिति का मुकाबला करने के लिए प्रस्थापित हुई है। विभिन्न विज्ञानों या अनुशासनों के बीच स्वतः ही दीवारें खड़ी होने लगी थीं जिससे ज्ञान का एक अनुशासन से दूसरे अनुशासन की तरफ प्रवाह नहीं हो पा रहा था। इस स्थिति से निपटने के लिए अनेक विद्वान विभिन्न विज्ञानों के एकीकरण की बात करने लगे। इन लोगों की मान्यता थी कि विविध अनुशासनों में अनेक सामान्य बातें समान रूप में पायी जाती हैं अतः इनको एक तारतम्य में पिरोने के लिए कोई ऐसा अमूर्त ढांचा निर्मित करना आवश्यक समझा गया जिससे कोई सामान्य सिद्धांत बनाया जा सके और सभी अनुशासनों में समस्याओं को समझने में लागू किया जा सके। ऐसे सामान्य सिद्धांत के निर्माण में प्रयत्नशील विद्वानों ने सामान्य व्यवस्था सिद्धांत की अवधारणा विकसित की जो व्यवस्था के विचार पर आ पारित है। सामान्य व्यवस्था सिद्धांत विभिन्न अनुशासनों में एकता लाने वाली अवधारणाओं की खोज से सम्बन्धित है। इसका निर्माण व्यवस्था की अवधारणा से हुआ है। भौतिक विज्ञानों के अन्तर्गत व्यवस्था का अर्थ सुपरिभाषित अन्तःक्रियाओं के समूह से है जिसकी सीमाएँ 'निश्चित की जा सकें। शाब्दिक परिभाषा के अनुसार 'व्यवस्था' का अर्थ है, “जटिल सम्बन्धित वस्तुओं का समग्र समूह विधि संगठन पद्धति के निश्चित सिद्धांत तथा वर्गीकरण का सिद्धांत"। इन अर्थो में महत्वपूर्ण शब्द 'सम्बन्धित' 'संगठित' और 'संगठन' है अर्थात एक व्यवस्था संगठित होनी चाहिए अथवा उसके अंग सम्बद्ध हों। यदि किसी भी स्थान पर हमें संगठन मिलता है अथवा जहाँ संगठित होने के गुण पाये जाते हैं और उसके सभी अंग एक-दूसरे से सम्बद्ध हैं तो वहाँ 'व्यवस्था' विद्यमान है।

  • बर्टलेन्फी के अनुसार, "यह अन्तः क्रियाशील तत्वों का समूह है।"
  • हॉल एवं फैगन के अनुसार, "वस्तुओं में परस्पर तथा वस्तुओं और उनके लक्षणों के बीच सम्बन्धों सहित वस्तुओं का समूह है।"
  • कोलिन चेरी ने लिखा है, "व्यवस्था एक ऐसा सम्पूर्ण संघटक है, जो लक्षणों के विभिन्न निर्माणक भागों में सम्मिलित रहती है।" (A whole which is compounded of many part-As assemble of attributes).
  • एन रोजेनाऊ के अनुसार, “अन्तर्राष्ट्रीय गतिविधियों के अध्ययन में जो नवीनतम प्रवृतियाँ विकसित हो रही है उनमें से सम्भवतः सबसे अधिक महत्वपूर्ण और लोकप्रिय प्रवृत्ति पूरे अन्तर्राष्ट्रीय जगत को व्यवस्था मानकर चलने की है।"
  • डेविड ईटन के अनुसार, "किसी समाज में पारस्परिक क्रियाओं की ऐसी व्यवस्था को जिससे उस समाज में बाध्यकतों या अधिकारपूर्ण नीति निर्धारण होते हैं। राजनीतिक व्यवस्था कहा जाता है।

राजनीतिक व्यवस्था सिद्धांत

महत्वपूर्ण एवं निरन्तर चलने वाली पहचान योग्य किसी भी प्रक्रिया को व्यवस्था कहा जाता है, उनका कोई न कोई स्वाभाविक अथवा कृत्रिम प्रयोजन, उद्देश्य एवं लक्ष्य अवश्य होता है। यह या अमूर्त, आनुभविक अथवा परानुभविक, वैचारिक या प्रेक्षणीय हो सकती है यदि रेल व्यवस्था शरीर में रक्त व्यवस्था या राज्य में शासन व्यवस्था मूर्त, आनुभविक और प्रेक्षणीय है तो समाज में व्याप्त नैतिक व्यवस्था अमूर्त परानुभविक एवं वैचारिक है जबकि कुछ व्यवस्थाओं का स्वरूप मिश्रित अथवा अर्द्धमूर्त हो सकता है, जैसे राजव्यवस्था और अर्थव्यवस्था। अधिक या कम मात्रा में प्रत्येक व्यवस्था में कुछ गतिविधियाँ अवश्य होती है जो स्वाभाविक, कृत्रिम अथवा अनुप्रेरित हो सकती है जैसे ऋतु परिवर्तन एक स्वाभाविक गति विधि है तो राजकीय शिक्षा व्यवस्था एक कृत्रिम गतिविधि है। उल्लेखनीय है कि व्यवस्था का कोई न कोई केन्द्रीय तथ्य अवश्य होता है जिसके चारों तरफ उस व्यवस्था के अंग, उपोग, घटक, गतिविधि आदि व्याप्त रहते हैं। प्रत्येक व्यवस्था के कुछ उपकरण साधन, माध्यम एवं विशेषताएँ भी होती हैं। राजनीति को राजनीतिक व्यवस्था की संकल्पना एक प्रक्रिया के रूप में समझने का प्रयास करती है यह एक विश्लेषणात्मक संकल्पना है अतः इसे किसी जीवित प्राणी या यन्त्र की तरह मूर्त वस्तु नहीं समझा जाना चाहिए। राजनीतिक व्यवस्था को उन व्यक्तियों की समूह नहीं समझना चाहिए जो सरकार या उसके विभिन्न अंगों की रचना करते है। यह अमूर्त संकल्पना ही हैं जिसके तथ्य एक-दूसरे पर क्रिया अन्तःक्रिया या परस्परता करके राजनीतिक प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हैं।

डेविड ईस्टन पहला राजनीतिशास्त्री था जिसने राजनीति विज्ञान के लिए व्यवस्था उन्मुख सन्दर्भ का विकास किया, यद्यपि दो समाजशास्त्रियों राबर्ट के मर्टन और टाल्कॉट पारसंस ने राजनीति के सन्दर्भ में इस सिद्धांत को उपयुक्त बताया था। इसी प्रकार ईस्टन ने विचार प्रतिपादित किया कि राजनीतिक व्यवस्था एक ऐसी स्वयं सम्पूर्ण और स्वनियन्त्रित इकाई है जिसके अन्तर्गत समाज की समस्त राजनीतिक गतिविधियों का संचालन होता है। उसने एक ऐसी संकल्पना का विकास करने का प्रयास किया जो राजनीतिक व्यवस्था को क्षमता प्रदान करे जिसका उपयोग राजनीतिक व्यवस्था समाज के द्वारा की जाने वाली मागों के साथ अनुकूलन स्थापित करे. और प्रतिसम्भरण प्रक्रियाओं की सहायता से व्यवस्था समर्थक तथ्यों को मजबूत बना सके। 1953 में ईस्टन ने व्यवस्था की शोध-सम्बन्धी सृजनात्मक अवधारणा को अपनी पुस्तक 'दि पॉलिटिक्स सिस्टम' में प्रस्तुत किया और राजनीति के अध्ययन में उसकी उपयोगिता और महत्व को दर्शाया। ईस्टन का उद्देश्य राजनीति विज्ञान में एक सामान्य सिद्धांत का विकास करके अनुशासनात्मक एकीकरण करना था। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसने व्यवस्था सिद्धांत को माध्यम बनाया। वह व्यवस्था के भीतर अन्तः तथा उसके बाह्य अन्तरव्यवस्थाओं के व्यवहार का अध्ययन करता है। इस प्रकार ईस्टन का व्यवस्था सिद्धांत सामान्य व्यवस्था सिद्धांत के नजदीक दृष्टिगत होता है। अन्तः क्रिया ईस्टन की व्यवस्था विश्लेषण की मूल इकाई है और अंतः क्रिया व्यवस्था के सदस्यों के व्यवहार से (जब वे व्यवस्था के सदस्यों के रूप में कार्य करते हैं) उत्पन्न होती है और जब अन्तःक्रियाएँ अन्वेषण की दृष्टि में एक अन्तःसम्बन्धों का समुच्चय बन जाती हैं तो व्यवस्था कहलाने लगती है। ईस्टन केवल राजनीतिक अन्तःक्रियाओं के समच्चय को ही अपने विश्लेषण का विषय बनाता है और इससे तीन महत्वपूर्ण अवधारणाओं को व्याख्यायित करता है - 

(1) व्यवस्था (2) पर्यावरण (3) अनुक्रिया

डेविड ईस्टन ने 1953 में प्रकाशित पुस्तक the political system में प्रतिपादित राजनीतिक व्यवस्था सिद्धांत के निम्नलिखित प्रत्यय दिये हैं -

आगत या निवेश कार्य - आगत (निवेश) का तात्पर्य पर्यावरण संदर्भित मांग का समर्थन से है। प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था के समझ पर्यावरण द्वारा कुछ माँगें रखी जाती हैं जिनके पीछे व्यवस्था के सदस्यों का समर्थन होता है। समर्थन ही नीति-निर्धारकों का ध्यान मांगों की तरफ आकर्षित कराता है। जन समर्थन और सहमति पर ही राजनीतिक व्यवस्था का अस्तित्व कायम रहता है। समर्थन से व्यवस्था की कार्यकुशलता और क्षमता में वृद्धि होती है। साथ ही समर्थन औचित्यपूर्ण राजनीतिक सत्ता को विभिन्न प्रकार की मांगों को निर्गत में परिवर्तित करने की शक्ति भी देता है। राजनीतिक व्यवस्था की सक्रियता का सीधा सम्बन्ध मांगों जन्म के निवेश रूपान्तरण एवं निर्गत प्रक्रिया से है। निवेश का तात्पर्य जनसहभागिता से है जो व्यवस्था को निर्गत उत्पन्न कराने का समर्थन देता है। मांगों का समुचित समाधान सरकार द्वारा अधिकारिक मांगों का सम्पादन सार्वजनिक नीतियों के क्रियान्वयन में प्रभावशीलता एवं मांगों के प्रति प्रशासन का विवेकपूर्ण तथा धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण व्यवस्था में बेहतर निवेश तत्व के निर्माण का महत्वपूर्ण मा यम है। राजनीतिक व्यवस्था की क्षमता एवं विकास का केन्द्रीय आधार है निवेश। निवेश तत्वों का जन्म सामाजिक पर्यावरण में होता है और जनसमर्थन ही व्यवस्था की वैधता, क्षमता, लोकप्रियता प्रभाव एवं स्थायित्व की खास पहचान होती है।

मांग (Demande) - ईस्टन के मतानसार मांगें व्यवस्था के शासकों के समक्ष जनसाधारण द्वारा प्रस्तुत एवं अभिविन्यासित आकांक्षाएँ अपेझाएँ, आवश्यकताएँ है जिसका अस्तित्व प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था में परिस्थितिजन्य पर्यावरण के अनुरूप विद्यमान है। मांगे जनता के मतों की अभिव्यक्ति हैं जो सामाजिक संसाधनों के आधिकारिक आवंटन के लिए उरत्त्तदायी कारक है। सामान्यत मांगें के तीन प्रकारों की चर्चा की गयी है - सामान्य, विशिष्ट एवं संकीर्ण। मांगें का स्वरूप जनहित एवं स्वार्थहित दोनों प्रकार का हो सकता हैं। मांगे स्पष्ट एवं अस्पष्ट दोनों रूपों में जन्म ले सकती हैं लेकिन उसकी दिशा और उनका बहाव सत्ता की ओर होता है। मांगें सत्ता पर दबाव बनाने का काम करती हैं। यह सदैव राजनीतिक सत्ताधारियों को जनसमुदाय के प्रति अनुकूल या प्रतिकूल निर्णय लेने के लिए आधार तत्व प्रदान करती है।

समर्थन (Support) - समर्थन मांगों की औचित्यता एवं अपरिहार्यता की पहचान है। कोई भी राजनीतिक व्यवस्था अपने अस्तित्व के सातत्व एवं अनुरक्षण के लिए सिर्फ नियंत्रण करने वाले उपकरणों पर निर्भर नहीं रहती है उसे अपनी कार्यक्षमता भी बढ़ानी पड़ती है। व्यवस्था की कार्यक्षमता बढ़ाने वाले साधन के रूप में ईस्टन ने समर्थन की अवधारणा प्रस्तुत की है और निवेश के रूप में मांगों के साथ-साथ समर्थनकारी तत्वों की प्रमुखता पर विशेष बल दिया है। ईस्टन के विचार में पर्यावरण से मिलने वाला समर्थन ही व्यवस्था के अस्तित्व को लम्बे समय तक कायम रखता है। समर्थन का स्वरूप जितना व्यापक होगा व्यवस्था को उतनी ही मजबूती मिलेगी। व्यवस्था के राजनीतिक समर्थन में कमी तब ही आती जब वह समाज की मूल आवश्यकताओं की पूर्ति करने में असमर्थ हो जाता है। समर्थन वह महत्वपूर्ण निवेश है जो मांगों के स्वरूप, निर्धारण एवं रूपान्तरण के लिए जमीन तैयार करता है। समर्थन सत्ताधारियों एवं शासन व्यवस्था के प्रति जनसमुदाय की नकारात्मक या सकारात्मक प्रतिक्रियाओं की अभिव्यक्ति है। समर्थन सत्ता व्यवस्था एवं समाज के मूल्यों प्रति जनता की अनुकूल या प्रतिकूल प्रतिक्रियाएँ हैं। मांगों की तरह समर्थन का भी स्वरूप होता है जो नकारात्मक या सकारात्मक, प्रकट या अप्रकट, निरुददेश्य या उददेश्यपूर्ण आदि प्रकारों का होता है। व्यवस्था की क्षमता सक्रियता प्रभाव एवं औचित्यपूर्णता को मजबूती प्रदान करने में समर्थन की भूमिका सबसे अहम होती है। समर्थन ही राजनीतिक व्यवस्था और पर्यावरण के बीच एक मात्र मजबत कडी है जो अधिकारियों का ध्यान मांगों की जरूरत एवं उनकी अनिवार्यता की ओर आकृष्ट करता है समर्थन ही मांगों को विधेयक के रूप में निर्गत कराने का सशक्त माध्यम है और व्यवस्था की सक्रियता का आधारतत्व है। ईस्टन के अनुसार, “राजनीतिक स्थिति को उन्नत या अवरुद्ध करने वाली क्रियाएँ या अनुस्थापन के रूप में प्रस्तुत ऊर्जा को समर्थन कहते हैं।" समर्थन पर ही निर्गत का परिणाम निर्भर करता हैं।

निर्गत कार्य (Output Functions) - ईस्टन के शब्दों में, “अधिकारियों के निर्णय और आदेश राजनीतिक व्यवस्था के निर्गत है जो व्यवस्था के सदस्यों के व्यवहार से उत्पन्न परिणामों को पर्यावरण निर्माण की दृष्टि से संगठित स्वरूप प्रदान करता है। निर्गत प्रक्रिया राजनीतिक व्यवस्था की क्षमता एवं कार्यों की पहचान है। यह व्यवस्था एक महत्वपूर्ण संघटक है। जब जनसमुदाय द्वारा सत्ताधारियों को सम्बोधित मांगें रूपान्तरित होकर नीतियाँ निर्णय कार्यक्रमों योजनाओं या सरकारी घोषणाओं के रूप में जनकल्याण हेत पर्यावरण के सामने आती है। तो उन्हें ईस्टन ने निर्गत की संज्ञा दी है निर्गत जनसमुदाय समर्थित मांगों पर व्यवस्था का निर्णय है। यह पर्यावरण से उत्पन्न दबावों पर शासकों की प्रतिक्रिया है। निर्गत का परिणाम ही पर्यावरण में नये निवेशों के लिए जमीन तैयार करता है। निर्गत के महत्व पर प्रकाश डालते हुए ईस्टन ने लिखा है, “निर्गत न केवल उस व्यापक समाज ही घटनाओं को प्रभावित करता है जो राजनीतिक व्यवस्था का एक अंग है, अपितु यह प्रक्रिया उन सभी निवेशों को भी प्रभावित करती है जो एक के बाद एक राजनीतिक व्यवस्था में प्रवेश करता है।"

Twitter

100+ Social Counters$type=social_counter

  • fixedSidebar
  • showMoreText

/gi-clock-o/ WEEK TRENDING$type=list

  • गम् धातु के रूप संस्कृत में – Gam Dhatu Roop In Sanskrit गम् धातु के रूप संस्कृत में – Gam Dhatu Roop In Sanskrit यहां पढ़ें गम् धातु रूप के पांचो लकार संस्कृत भाषा में। गम् धातु का अर्थ होता है जा...
  • दो मित्रों के बीच परीक्षा को लेकर संवाद - Do Mitro ke Beech Pariksha Ko Lekar Samvad Lekhan दो मित्रों के बीच परीक्षा को लेकर संवाद लेखन : In This article, We are providing दो मित्रों के बीच परीक्षा को लेकर संवाद , परीक्षा की तैयार...

' border=

RECENT WITH THUMBS$type=blogging$m=0$cate=0$sn=0$rm=0$c=4$va=0

  • 10 line essay
  • 10 Lines in Gujarati
  • Aapka Bunty
  • Aarti Sangrah
  • Akbar Birbal
  • anuched lekhan
  • asprishyata
  • Bahu ki Vida
  • Bengali Essays
  • Bengali Letters
  • bengali stories
  • best hindi poem
  • Bhagat ki Gat
  • Bhagwati Charan Varma
  • Bhishma Shahni
  • Bhor ka Tara
  • Boodhi Kaki
  • Chandradhar Sharma Guleri
  • charitra chitran
  • Chief ki Daawat
  • Chini Feriwala
  • chitralekha
  • Chota jadugar
  • Claim Kahani
  • Dairy Lekhan
  • Daroga Amichand
  • deshbhkati poem
  • Dharmaveer Bharti
  • Dharmveer Bharti
  • Diary Lekhan
  • Do Bailon ki Katha
  • Dushyant Kumar
  • Eidgah Kahani
  • Essay on Animals
  • festival poems
  • French Essays
  • funny hindi poem
  • funny hindi story
  • German essays
  • Gujarati Nibandh
  • gujarati patra
  • Guliki Banno
  • Gulli Danda Kahani
  • Haar ki Jeet
  • Harishankar Parsai
  • hindi grammar
  • hindi motivational story
  • hindi poem for kids
  • hindi poems
  • hindi rhyms
  • hindi short poems
  • hindi stories with moral
  • Information
  • Jagdish Chandra Mathur
  • Jahirat Lekhan
  • jainendra Kumar
  • jatak story
  • Jayshankar Prasad
  • Jeep par Sawar Illian
  • jivan parichay
  • Kashinath Singh
  • kavita in hindi
  • Kedarnath Agrawal
  • Khoyi Hui Dishayen
  • Kya Pooja Kya Archan Re Kavita
  • Madhur madhur mere deepak jal
  • Mahadevi Varma
  • Mahanagar Ki Maithili
  • Main Haar Gayi
  • Maithilisharan Gupt
  • Majboori Kahani
  • malayalam essay
  • malayalam letter
  • malayalam speech
  • malayalam words
  • Mannu Bhandari
  • Marathi Kathapurti Lekhan
  • Marathi Nibandh
  • Marathi Patra
  • Marathi Samvad
  • marathi vritant lekhan
  • Mohan Rakesh
  • Mohandas Naimishrai
  • MOTHERS DAY POEM
  • Narendra Sharma
  • Nasha Kahani
  • Neeli Jheel
  • nursery rhymes
  • odia letters
  • Panch Parmeshwar
  • panchtantra
  • Parinde Kahani
  • Paryayvachi Shabd
  • Poos ki Raat
  • Portuguese Essays
  • Punjabi Essays
  • Punjabi Letters
  • Punjabi Poems
  • Raja Nirbansiya
  • Rajendra yadav
  • Rakh Kahani
  • Ramesh Bakshi
  • Ramvriksh Benipuri
  • Rani Ma ka Chabutra
  • Russian Essays
  • Sadgati Kahani
  • samvad lekhan
  • Samvad yojna
  • Samvidhanvad
  • Sandesh Lekhan
  • sanskrit biography
  • Sanskrit Dialogue Writing
  • sanskrit essay
  • sanskrit grammar
  • sanskrit patra
  • Sanskrit Poem
  • sanskrit story
  • Sanskrit words
  • Sara Akash Upanyas
  • Savitri Number 2
  • Shankar Puntambekar
  • Sharad Joshi
  • Shatranj Ke Khiladi
  • short essay
  • spanish essays
  • Striling-Pulling
  • Subhadra Kumari Chauhan
  • Subhan Khan
  • Suchana Lekhan
  • Sudha Arora
  • Sukh Kahani
  • suktiparak nibandh
  • Suryakant Tripathi Nirala
  • Swarg aur Prithvi
  • Tasveer Kahani
  • Telugu Stories
  • UPSC Essays
  • Usne Kaha Tha
  • Vinod Rastogi
  • Vrutant lekhan
  • Wahi ki Wahi Baat
  • Yahi Sach Hai kahani
  • Yoddha Kahani
  • Zaheer Qureshi
  • कहानी लेखन
  • कहानी सारांश
  • तेनालीराम
  • मेरी माँ
  • लोककथा
  • शिकायती पत्र
  • हजारी प्रसाद द्विवेदी जी
  • हिंदी कहानी

RECENT$type=list-tab$date=0$au=0$c=5

Replies$type=list-tab$com=0$c=4$src=recent-comments, random$type=list-tab$date=0$au=0$c=5$src=random-posts, /gi-fire/ year popular$type=one.

  • अध्यापक और छात्र के बीच संवाद लेखन - Adhyapak aur Chatra ke Bich Samvad Lekhan अध्यापक और छात्र के बीच संवाद लेखन : In This article, We are providing अध्यापक और विद्यार्थी के बीच संवाद लेखन and Adhyapak aur Chatra ke ...

' border=

Join with us

Footer Logo

Footer Social$type=social_icons

  • loadMorePosts
  • English ( English )

josh kosh logo

13 Effective Tips to Improve Public Speaking in Hindi

Improve Public Speaking

Iss blog ke zariye hum aapko Public Speaking improve karne ke kuch important tarike batane wale hai. Public speaking na kar pane ka sabse bada karan fear of public speaking yani public speaking ka dar hota hai. Chahe language English ho ya Hindi ya koi aur, logo ka sabse bada dar samne baithi hui audinece hota hai jisse nervourness matlab ghabrahat hone lagti hai. Jab bhi koi presentation hota toh hum bohut nervous ho jaate aur presentation ko jald se jald khatam kardene ka sochte hai. Kabhi kabhi dimag band ho jata hai aur word ya toh nikal nhi paate ya fir hum kuch aisa bolne lagte hai jiska koi sense nhi hota. Aisi aur kayi problems Par sirf is reason se hum public aana kaafi natural hai aur aap akele nhi hai. Par iss reason se hum public speaking ko avoid nahi kar sakte.

presentation se kya abhipray hai

Public speaking ek art aur ek science hai, jisko seekhne se bahut faida hota hai. Public speaking skills ya presentation skills ek aisi skill hai jo aapki personality mai, aapke career mai, aapke professional ya student life mai bahut bada role play karti hai. 

Par ab public speaking ki importance janne ke baad mai ise ek opportunity ki tarah dekha jata hai. Logo ke age bina dare baat karne ke liye aapko public speaking skills ko seekhna, samjhna aur janna bahut zaroori hai. Jitna zyada aap in skills ko seekhenge utna zyada aap mai confidence aajayega.

Agar aapko sabke saamne baat karne se ya presentation dene se dar lagta hai toh ab is dar ko bhool jayiye, kyuki hum aapko public speaking ke baare mai poori information denge.

Is article ke zariye hum aapko batayenge ki

Public speaking kya hai?

Public speaking improve karne ke kya benefits hai.

  • Overcoming the fear of public speaking: Public speaking ka fear overcome kaise kare?
  • Effective tips to improve public speaking: Public speaking skills ko kaise improve kare?
  • Public speaking ke online courses ke bare mai jaaniye

Public speaking business, education aur public arena ke liye important hai. Public speaking individual aur business dono ke liye beneficial hai. 

Ab aap soch rahe honge ke public speaking kya hai? Basically, public speaking ka matlab hai live audience ke saamne presentation dena. Isme presenter aur audience ke beech mein ek formal ya informal communication hota hai. Public speaking formal, face-to-face, individual ya group ke saath ho sakta hai. Aap apne thoughts aur feelings ko meaningful tareeke se dusro ke saamne present karte hai.

Public Speaking kya hai?

Public speaking ne saalo se education, government aur business mai ek bahut bada role nibhaya hai. Sahi techniques aur practices use karke aap ek confident aur effective public speaker ban sakte hai. Aapne apni life mai kabhi na kabhi toh presentation diya hi hoga, chahe who school mai ho, ya office mai, ya aapke family members ke saamne, ya aapke friends ke saamne. 

Jaise jaise aap life mai aage badhte hai aapko public speaking ki importance samajh aati hai. Life ke har stage pe aapko dusro se communicate karna padhta hai otherwise aap aage nahi badh paate. Aapke communication skills achi nahi ho toh aapko koi job nahi deta, aapke koi dost nahi bante na hi aapko apni society mai value mil paati hai. 

Public speaking 3 types hai. Ek hai informative speaking jisme aap apni audience ko information dete hai. Dusra hai persuasive speaking jismai aap apni audience ko influence ya persuade karte hai. Aur teesra hai Entertaining speaking jisme aap apni audience ko entertain karte hai. Ab mai aapko public speaking ke baare mai aur detail mai bataaungi. 

Itni competitive duniya mai yeh bahut zaroori hai ke humare andar convincing power ho. Iska matlab yeh hai ke hum apni baato se logo ko influence kar paaye, unhe persuade kar paaye, aur convince kar paaye. Agar humare andar bahut saare logo ko ek saath convince karne ki skill hai, toh hum is competitive duniya mai aage badh sakte hai aur apni life mai successful ban sakte hai.

What are the Benefits of Public Speaking?

Public speaking ne hazaro logo ke career development mai bahut madad ki hai. Aap life mai jo bhi karna chahte hai kahi na kahi public speaking ka usme bahut bada role hota hai. 

Bahut se successful businessmen, leaders, influencers apne public speaking skills ki wajah se successful ban paaye hai. Jaise ki Nelson Mandela apne speeches aur speaking skills se logo ko inspire aur encourage karte the aur subke liye ek role model ban gaye. 

Toh aayiye dekhte hai public speaking skills humare career aur professional life ke liye kyun zaroori hai.

  • Public speaking se aap logo ko apni knowledge bataa paate hai

Aapke ache public speaking skills se hi aapke colleagues, friends ya mentors aapke talents aur knowledge ko jaan paayenge. Jab logo ko aapki knowledge ka pata chalega tab hi who aapki value karenge aur aap apne career mai successful honge. Public speaking se aap apni knowledge ko bhi increase kar sakte hai. Jab aap koi presentation prepare karte hai toh aapko us subject ki poori knowledge milti hai jiski wajah se aapko us subject ke baare mai poori jaankaari ho jaati hai aur aapki knowledge badh jaati hai.

  • Aapka confidence badta hai

Presentation dene se aapka confidence badh jaata hai aur dusro ko aapke confident nature ka pata chalta hai jisse aapka ek acha impression ban jaata hai. Jisko public speaking ki art aati ho uske baat karne ke tareeqe mai ek confidence nazar aata hai jiski wajah se aapki personality develop ho jaati hai.

  • Interviews mai success pane public speaking skills ko improve karna important hai

Jab bhi aap kahi interview dete hai, public speaking ek important role play karta hai. Aap experts ke saamne kitne confident hai aur interview kaise dete hai, isi par aapka selection hoga. Agar aapki speaking skills achi nahi hai toh aapko job milne mai aur career mai aage badhne mai problem ho sakti hai.

  • Public speaking skills aapki personality development mai help karta hai

Log aapko aapke behaviour aur personality se like ya dislike karte hai. Agar aap ki personality strong hai, aap confident hai, honest hai, aur aapko situations ko handle karna aata hai toh aapki value badh jaati hai. Agar aap ek confident public speaker ban jaaye toh aapki personality development mai bhi faida hoga. Public speaking se aap live audience ke saamne baat karte hai aur apna view point rakhte hai jiski wajeh se aapke communication skills improve hote hai.

  • Aapka business bhi jaldi grow karega

Ache public speaker ka confidence high hota hai jo business ke liye kaafi zaruri hai. Aapke business ke liye public speaking skill isliye zaruri hai kyuki aap apne customers tak apna message successfully pahucha sakte hai. Aap apne customers ko influence aur persuade kar paate hai aur apna sales badhaa sakte hai.

  • Aapki alag pehchaan banaata hai

Agar aapki public speaking skills achi hai toh aapko zyada recognition milti hai. Aapko apni company, college ya school mai zyada chances milte hai bolne ke, aapki pehchan badh jaati hai aur aap logo ki achi nazroo mai aate ho, log aapko janne lagte hai aur aapko yaad rakhte hai. Audience ko face karna ek risk ka kaam hai jo har koi nahi kar paata. Agar aap public speaking ki skills aur techniques seekh jayenge toh aap life mai risk le paoge. Jo har koi nahi kar paata woh aap kar paaoge jisse aapki self-image aur self-respect aur strong ho jati hai.

  • Aapko har field mai opportunities milti hai

Public speaking ek aisi skill hai jiska faida har field mai, har area mai aur har position pe hota hai. Isliye public speaking skill aapke career profile ko aur strong banaati hai aur aapki job opportunities ka scope aur badha deti hai.

  • Achi Public speaking skills aapke career advancement mai help karta hai

Jab aap dusro se baat karne ka talent jaan jaate hai toh aapka dusro pe impression acha banta hai. Aap apne career mai aage badh paate hai au aap life mai jo field choose karna chahte hai usmai aage badh paate hai. Aapko achi jobs milti hai ya achi university mai admission milta hai.

  • Sabhi field mai zaruri hai achhi public speaking skills

Public speaking skills ki aapko har field mai zaroorat padh sakti hai aur aapki dusri skills ko bhi improve karne mai madad karta hai. Jaise ke leadership skills, communication skills aur aapka confidence improve ho jaata hai.

Fear of public speaking ko kaise overcome kare?

Fear of public speaking

Fear of public speaking ko Glossophobia kehte hai. Fear of public speaking matlab sabke samne bolne ka dar hona. According to studies, logo ke mann mai sabse public speaking ka dar death se bhi zyada hota hai. Aapko kabhi stage pe jaane se, ya class ke saamne baat karne se ya interview dene se dar laga hi hoga. Har kisi ko kabhi na kabhi public speaking ya presentation se dar lagta hi hai, mujhe bhi laga tha. Public speaking ka fear hona normal hai. 

Public speaking ko improve karne ke liye pehle step hai ki aapko iska fear dur karna hoga tab hi aap ek successful speaker ban paayenge. Agar aap life mai aage badhna chahte hai aur apne career goal ko paana chahte hai toh aapko apne is dar ko dur karna hoga. Public speaking start karne ka pehla step hai iska fear dur karna isliye public speaking skills ko improve karne ke baare mai bataane se pehle mai aapko iska fear overcome karne ke techniques bataungi. 

presentation se kya abhipray hai

Technique 1: Acceptance kare apne public speaking ka dar

Aapko accept karna hoga ke public speaking ka jo dar hai who common aur natural hai. Koi bhi public speaker ya presenter ho stage pe jaane se pehle who nervous hota hi hai. Sub hi famous personalities ne kabhi na kabhi is dar ko face kiya hi hoga. Jaise ke award winning actress, Julia Roberts ko public speaking se dar lagta tha, par unhone apne is fear ko overcome kiya aur aaj itni successful ban gayi. Agar Julia Roberts is dar ko overcome kar sakti hai toh aap kyun nahi? Is baat ko agar aap accept karlenge toh aapka confidence automatically badh jayega.

Technique 2: Reason jane public speaking ka

Aapko pata hona chahiye ke aap logo ke saamne baat kyun kar rahe hai ya aap apni audience ko kya bataana chahte hai. Ye aapko apne dimaag mai clarity laane mai madad karega. Agar aapko reason pata hoga ke ap public speaking kyun kar rahe hai, toh aapka dar kum hojayega aur confidence level badh jayega. Jab bhi aapki audience aapse kuch savaal puchegi aap uska confidently javaab de sakoge.

Technique 3: Visualize the success

Jab aap apne mind mai success ko visualize kar lete hai toh aapka mind reality aur imagination mai differentiate nahi karta. Apna presentation dene se pehle aapko apne mind mai imagine karna chahiye ke aapke presentation ko audience enjoy kar rahi hai aur aapke presentation ko appreciate kar rahi hai. Jab aap yeh sub visualize karenge toh aapka confidence automatically increase hojayega.

Technique 4: Belief 

Har kisi ka apna ek belief hota hai, kisi bhi cheez se related. Jaise koi lucky pen ya colour ya dress. Aisi koi bhi cheez aap presentation ke liye use kar sakte hai. Jisse aapke mind mai ek success factor paida hojayega aur aapka dar kam ho jayega.

Technique 5: Confidence

Aap jo bhi bole usko confidence ke saath bolna chahiye. Isse aapki galtiyo ka pata nahi chalta. Aapke presentation mai agar koi mistake ho toh bhi aapki audience ko iska pata nahi chalega agar aap apni baat confidently kahe. Par iska purpose apni galtiyan chupana nhi balki apni nevervousness aur anxitey chupana hai.

Technique 6: Learning

Aapko dusro ki speeches aur presentation se inspiration lena chahiye. Unke baat karne ka tareeka aur confidence ko note karke aap apna confidence badha sakte hai aur seekh sakte hai. Internet pe Ted Talks ko watch kare aur unse inspiration le sakte hai.

Agar aap apne public speaking skills ko improve karna chahte hai aur apna confidence badhana chahte hai toh Josh talks ke English speaking course se aapko bahut madad milegi.

Public speaking skills ko kaise improve kare?

Ab jab aap public speaking ki importance aur benefits ko jaan chuke hai, aur public speaking ka fear overcome karne ke tareeke bhi samjh chuke hai toh aap in skills ko improve karne ke baare mai sonch rahe honge. Toh mai aapko bataungi ke aap in public speaking skills ko kaise improve kar sakte hai. Jab bhi aap apne public speaking skills ko develop karna chahte hai toh aapko humesha kuch baato ka dhyan rakhna hoga, tabhi aap ek successful public speaker ban paayenge. Mai apne personal experience se baata sakti hu ke public speaking skills ko seekhna aur improve karna aapki life ko badal deta hai. 

How To Improve Your Public Speaking Skills

Jab bhi aap apna presentation dein ya public speaking kare toh kuch best practices ko add kar sakte hai so that aapka presentation aur successful hojaye. Mai aapko public speaking skills ko improve karne ke tips batati hoon-

  • Planning aur preparation puri rakhe

Aap jo bhi topic pe baat karna chahte hai aapko us subject ki poori knowledge honi chahiye. Aapke presentation ke liye aapko achi tarah prepare hona chahiye. Koi bhi presentation ya speech dene se pehle aapko apni speech ke notes bana lena chahiye. Jo bhi aap bolna chahte hai aap uske notes ko organize karle aur ek achi speech taiyyar kar le . Iske liye aap PowerPoint , Excel ya Word ka bhi istemal kar sakte hai.

  • Khub Sari Practice kare

Presentation dene se pehle aapko usko ache se practice karlena chahiye so that aapko ache se yaad ho ke aap kya kehna chahte hai aur aapko bolne mai asaani hojati hai. Practice aapko humesha area of improvement ke liye improve kar deta hai. Aapka inbuilt confidence badhaata hai. Aapke skills, talents, presence sub increase kar deta hai. Apna presentation dene se pehle aapko 2-3 times practice kar leni chahiye.

  • Non-verbal communication

Non-verbal communication ka matlab hai aapki body language, body posture aur aapka body movement. In sub gestures ka hume khaas khayal rakhna hoga. Aapki body language se audience ko aapke attitude ka pata chalta hai. Aapka body posture humesha straight towards the audience hona chahiye aur hands open rakhne chahiye. Audience ke saath eye contact banana aapke presentation ko bahut improve karega. Jab aap audience ke saath eye contact karte hai, tab aap unko apne presentation ke liye invite karte hai. According to the research eye contact 3-4 seconds ka hona chahiye.

Jab bhi aap presentation denge, aapka confident hona bahut zaroori hai. Apko apne dar ko overcome karna hoga aur apna confidence level badhana hoga. Jab aap audience ke saamne present karen toh subse important skill requirement hai confidence. Aapko apna confidence build karna hoga aur public speaking ka dar nikaalna hoga. 

presentation se kya abhipray hai

  • Apne comfort zone se bahar nikaliye

Ek baar aapka confidence apne comfort zone mai strong ho jaye, uske baad aapko apne comfort zone se bahar nikalna hoga aur apne aapko push karke public ke saamne speeches dete rehna chahiye taaki aapko in situations ki aadat ho aur aapka confidence aapke comfort zone ke bahar bhi strong ho jaye.

  • Aapne presentation ko story ki tarah prepare kare

Agar aap apni speeches mai kuch points bhool jaate hai ya aapko yaad rakhne mai problem hoti hai toh aap apne presentation ko ek story ki tarah prepare kar sakte hai. Isse aapko sub kuch yaad rahega aur aap presentation dete samay kuch nahi bhoolenge.

  • Public speaking skill ki training le

Agar aapko logo ke saamne baat karne se dar lagta hai ya aapko pata nahi hai ki public speaking skills ko kaise use karna hai toh aap bina dare training ya online course ki help le sakte hai aur apne skills improve kar sakte hai. Maine bhi public speaking online course ki sahayata se apne speaking skills improve kiye hai. Agar aap bhi apni public speaking skills ko improve karna chahte hai toh Joshtalks ka online Public speaking course Josh skills app download karke abhi join kar sakte hai. 

  • Power of dressing

Jab bhi aap koi formal presentation de rahe hai apne audience ke saamne tab aapko formals pehenne chahiye. Aapka dress neat, clean aur modest hona chahiye naa ki overpowering.

  • Samay se pehle pahoche: Arrive early

Jab bhi aap presentation dete hai toh aapko atleast 15 minutes pehle room mai hona chahiye. Tab hi aap apna audience presence aur room presence feel kar sakte hai. 

Jab aap apne public speaking mai kuch alag karte hai, tab hi log aapko yaad rakhte hai. Jaise aap koi story suna sakte hai ya koi affirmation bol sakte hai ya koi fact bol sakte hai jisse logo ki nazro mai aap unique ban jaaye aur audience aapko yaad rakhe.

  • Eye contact rakhe

Eye contact yani apni audience se aankh milana. Ye audience ko aapka self-confidence dikhayega. Isliye aapko pura dhyan ispe rakhna hai ki aap apni audience se aankhe mila rahe hai bolte waqt. 

  • Humor ka use kare aur dusro ki ninda karne se bache

Ache public speaker ka bahut bada hathiyar hota hai humor. Humor aapko ek tense mahol ko light karne mai madad karta hai. Par humor ka use karne se pehle hume ye dhyan rakhna hai ki hum kisi ka publicly mazak na uda rahe ho. Aur hume dusro ki ninda karne se bhi bachna chaiye. Ninda karne se mahol negative ho jata hai aur audience bhi uncomfortable feel karti hai. Isliiye koshish kijiye ki aap apni speech mai dusro ki prashansa kar rahe hai na ki ninda.

  • Know the reason for learning Public speaking

Aapko pata hona chahiye ke aap public speaking kyun seekhna chahte hai. Jaise ki job interview dene ke liye, ya logo se baat karne ke liye, ya apna confidence badhane ke liye. Aapko apna goal pata hona chahiye, tabhi aap successful ho sakte hai.

Online public speaking course in Hindi 

Public speaking seekhne ke liye aapko help ki zaroorat padh sakti hai. Agar aapko presentation dene mai ya logo ke saamne English mai baat karne mai problem hoti hai toh aap online courses ki madad le sakte hai. Aaj kal har field mai online courses available hai jisse aap apne talent aur skills ko develop kar sakte hai. 

Josh talks ke Public Speaking course ki sahayata se aap bhi ek safal public speaker ban sakte hai. Is course mai aapko public speaking ke basic skills ke baare mai samjhaya jaayega. Dusro se baat karne ke tareeke, apna confidence boost karne ka tareeka, presentation dene ke skills sikhaaye jaate hai. bahut logo ne is course mai enroll karke apne public speaking skills ko develop kiya hai. Agar aap bhi Josh talks ka public speaking course join karna chahte hai toh neeche diye gaye link ko click karen aur Josh skills app download karen.

Download Josh Skills App and start your learning journey today.

Josh talks ka English Speaking course aapko fluent English language bolna sikhaata hai. Agar aapki English speaking skills achi hogi toh aap public speaking mai bhi confident ho sakte hai. Agar aap English seekhna chahte hai toh upar diye gaye link ko click kare aur Josh talks ke English Speaking Course mai enroll ho sakte.

Toh yeh thi public speaking skills ke baare mai kuch important information. Ab toh aap samajh hi gaye honge ke public speaking ka humare jeevan mai kya role hai aur yeh skills seekhna kyun itna zaroori hai. Agar aap in tips aur techniques ko apni life ka part bana lenge toh aapki life asaan hojayegi. Aapko kabhi bhi kisi ke saamne sharminda nahi hona padega aur aap life mai aane wali har opportunity ko grab kar paayenge.

RELATED ARTICLES

Punctuation Marks In Hindi

Sikhe Punctuation Marks In Hindi

Strangers se baat kaise kare

Strangers se baat kaise kare: 6 Important Tips

Future Continuous Tense in Hindi

Future Continuous Tense In Hindi

No comments, leave a reply cancel reply.

Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.

Sikhe Nayi Skills aur Paye Apni Dream Job. Download Josh Skills App

NCERT Solutions for Class 6, 7, 8, 9, 10, 11 and 12

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 12 बाजार दर्शन

April 9, 2019 by Kalyan

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 12 बाजार दर्शन are part of NCERT Solutions for Class 12 Hindi . Here we have given NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 12 बाजार दर्शन.

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1. बाजार का जादू चढ़ने और उतरने पर मनुष्य पर क्या-क्या असर पड़ता है? (CBSE-2010-2012, 2015) उत्तर: बाजार का जादू चढ़ने और उतरने पर मनुष्य पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ते हैं –

  • बाजार में आकर्षक वस्तुएँ देखकर मनुष्य उनके जादू में बँध जाता है।
  • उसे उन वस्तुओं की कमी खलने लगती है।
  • वह उन वस्तुओं को जरूरत न होने पर भी खरीदने के लिए विवश होता है।
  • वस्तुएँ खरीदने पर उसका अह संतुष्ट हो जाता है।
  • खरीदने के बाद उसे पता चलता है कि जो चीजें आराम के लिए खरीदी थीं वे खलल डालती हैं।
  • उसे खरीदी हुई वस्तुएँ अनावश्यक लगती हैं।

प्रश्न 2. बाजार में भगत जी के व्यक्तित्व का कौन-सा सशक्त पहलू उभरकर आता है? क्या आपकी नज़र में उनको आचरण समाज में शांति स्थापित करने में मददगार हो सकता है? (CBSE-2008) उत्तर: भगत जी समर्पण भी भावना से ओतप्रोत हैं। धन संचय में उनकी बिलकुल रुचि नहीं है। वे संतोषी स्वभाव के आदमी हैं। ऐसे व्यक्ति ही समाज में प्रेम और सौहार्द का संदेश फैलाते हैं। इसलिए ऐसे व्यक्ति समाज में शांति स्थापित करने में मददगार साबित होते हैं।

प्रश्न 3. ‘बाज़ारूपन’ से क्या तात्पर्य है? किस प्रकार के व्यक्ति बाजार को सार्थकता प्रदान करते हैं अथवा बाज़ार की सार्थकता किसमें हैं? (CBSE-2016, 2017) उत्तर: ‘बाजारूपन’ से तात्पर्य है-दिखावे के लिए बाजार का उपयोग। बाजार छल व कपट से निरर्थक वस्तुओं की खरीदफ़रोख्त, दिखावे व ताकत के आधार पर होने लगती है तो बाजार का बाजारूपन बढ़ जाता है। क्रय-शक्ति से संपन्न की पुलेि व्यिक्त बाल्पिनक बताते हैं। इसप्रतिसे बारक सवा लधनाह मिलता। शणक प्रति बढ़ जाती है। वे व्यक्ति जो अपनी आवश्यकता के बारे में निश्चित होते हैं, बाजार को सार्थकता प्रदान करते हैं। बाजार का कार्य मनुष्य कल कपू करता है जहातक सामान मल्नेप बार सार्थकह जाता है। यह पॉड” पावरक प्रर्शना नहीं होता।

प्रश्न 4. बाज़ार किसी का लिंग, जाति, धर्म या क्षेत्र नहीं देखता, वह देखता है सिर्फ उसकी क्रय शक्ति को। इसे रूप में वह एक प्रकार से सामाजिक समता की भी रचना कर रहा है। आप इससे कहाँ तक सहमत हैं? (CBSE-2008) उत्तर: यह बात बिलकुल सत्य है कि बाजारवाद ने कभी किसी को लिंग, जाति, धर्म या क्षेत्र के आधार पर नहीं देखा। उसने केवल व्यक्ति के खरीदने की शक्ति को देखा है। जो व्यक्ति सामान खरीद सकता है वह बाजार में सर्वश्रेष्ठ है। कहने का आशय यही है कि उपभोक्तावादी संस्कृति ने सामाजिक समता स्थापित की है। यही आज का बाजारवाद है। प्रश्न 5. आप अपने समाज से कुछ ऐसे प्रसंग का उल्लेख करें (क) जब पैसा शक्ति के परिचायक के रूप में प्रतीत हुआ। (ख) जब पैसे की शक्ति काम नहीं आई। उत्तर: (क) एक बार एक कार वाले ने एक बच्चे को जख्मी कर दिया। बात थाने पर पहुँची लेकिन थानेदार ने पूरा दोष बच्चे के माता-पिता पर लगा दिया। वह रौब से कहने लगा कि तुम अपने बच्चे का ध्यान नहीं रखते। वास्तव में पैसों की चमक में थानेदार ने सच को झूठ में बदल दिया था। तब पैसा शक्ति का परिचायक नजर आया।

(ख) एक व्यक्ति ने अपने नौकर का कत्ल कर दिया। उसको बेकसूर मार दिया। पुलिस उसे थाने में ले गई। उसने पैसे ले-देकर मामले को सुलझाने का प्रयास किया लेकिन सब बेकार। अंत में उस पर मुकदमा चला। आखिरकार उसे 14 वर्ष की उम्रकैद हो गई। इस प्रकार पैसे की शक्ति काम नहीं आई।

पाठ के आसपास

प्रश्न 1. ‘बाज़ार दर्शन’ पाठ में बाज़ार जाने या न जाने के संदर्भ में मन की कई स्थितियों का जिक्र आया है। आप इन स्थितियों से जुड़े अपने अनुभवों का वर्णन कीजिए।

  • मन खाली न हो
  • मन में नकार हो
  • मनखालौ हो – जब मनुष्य का मन खाली होता है तो बाजार में अनाप – शनाप खरीददारी की जाती है । बजर का  जादू सिर चढकर बोलता है । एक बार में मेले में घूमने गया । वहाँ चमक – दमक , आकर्षक वस्तुएँ मुझे न्योता देती  प्रतीत हो रहीं थीं । रंग – बिरंगी लाइटों से प्रभावित होकर मैं एक महँगी ड्रेस खरीद लाया । लाने के खाद पता चला  कि यह आधी कीमत में फुटपाथ पर मिलती है । 
  • मन खाली न हो – मन खाली न होने पर मनुष्य अपनी इच्छित चीज खरीदता है । उसका ध्यान अन्य वस्तुओं पर नहीं जाता । में घर में जरूरी सामान की लिस्ट बनाकर बाजार जाता है और सिफ्रे उन्हें ही खरीदकर लाता हूँ । मैं  अन्य चीजों को देखता जरूर हूँ , पर खरीददारी वहीं करता हूँजिसकौ मुझे जरूरत होती है । 
  • मनबंदहो – मन ईद होने पर इच्छाएँ समाप्त हो जाती हैं । वैसे तो इच्छाएँ कभी समाप्त नहीं होतीं , परंतु कभी – कभी  पन : स्थिति ऐसी होती है कि किसी वस्तु में मन नहीं लगता । एक दिन में उदास था और मुझे बाजार में किसी  वस्तु में कोई दिलचस्पी नहीं थी । अत : में विना कहीं रुके बाजार से निकल आया ।
  • मन में नकार हो – मन में नकारात्मक भाव होने से बाजार की हर वस्तु खराब दिखाई देने लगती है । इससे समाज इस का विकास रुक जाता है । ऐसा असर किसी के उपदेश या सिदूधति का पालन करने से होता है । एक दिन एक  साम्यवादी ने इस तरह का पाठ पढाया कि बडी कंपनियों की वस्तुएँ मुझें शोषण का रूप दिखाई देने लगी।

प्रश्न 2. ‘बाज़ार दर्शन’ पाठ में किस प्रकार के ग्राहकों की बात हुई है? आप स्वयं को किस श्रेणी का ग्राहक मानते/मानती हैं? उत्तर: इस पाठ में प्रमुख रूप से दो प्रकार के ग्राहकों का चित्रण निबंधकार ने किया है। एक तो वे ग्राहक, जो ज़रूरत के अनुसार चीजें खरीदते हैं। दूसरे वे ग्राहक जो केवल धन प्रदर्शन करने के लिए चीजें खरीदते हैं। ऐसे लोग बाज़ारवादी संस्कृति को ज्यादा बढ़ाते हैं। मैं स्वयं को पहले प्रकार का ग्राहक मानता/मानती हैं क्योंकि इसी में बाजार की सार्थकता है।

प्रश्न 3. आप बाज़ार की भिन्न-भिन्न प्रकार की संस्कृति से अवश्य परिचित होंगे। मॉल की संस्कृति और सामान्य बाज़ार और हाट की संस्कृति में आप क्या अंतर पाते हैं? पर्चेजिंग पावर आपको किस तरह के बाजार में नजर आती है? उत्तर: मॉल को संस्कृति से बाजार को पर्चेजिग पावर को बढावा मिलता है । यह संस्कृति उच्च तथा उच्च मध्य वर्ग से संबंधित है । यहाँ एक ही छत के नीचे विभिन्न तरह के सामान मिलते हैं तथा चकाचौंध व लूट चरम सोया पर होती है । यहाँ बाजारूपन भी फूं उफान पर होता है । सामान्य बाजार में मनुष्य की जरूरत का सामान अधिक होता है । यहाँ शोषण कम होता है तथा आकर्षण भी कम होता है । यहाँ प्राहक व दूकानदार में सदभाव होता है । यहाँ का प्राहक मध्य वर्ग का होता है।

हाट – संस्कृति में निम्न वर्ग व ग्रमीण परिवेश का गाहक होता है । इसमें दिखाया नहीं होता तथा मोल-भाव भी नाम- हैं का होता है । ।पचेंजिग पावर’ मलि संस्कृति में नज़र आती है क्योंकि यहाँ अनावश्यक सामान अधिक खरीदे जाते है।

प्रश्न 4. लेखक ने पाठ में संकेत किया है कि कभी-कभी बाज़ार में आवश्यकता ही शोषण का रूप धारण कर लेती है। क्या आप इस विचार से सहमत हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए। (CBSE-2008) उत्तर: आवश्यकता पड़ने पर व्यक्ति अपेक्षित वस्तु हर कीमत पर खरीदना चाहता है। वह कोई भी कीमत देकर उस वस्तु को प्राप्त कर लेना चाहता है। इसलिए वह कई बार शोषण का शिकार हो जाता है। बेचने वाला तुरंत उस वस्तु की कीमत मूल कीमत से ज्यादा बता देता है। इसीलिए लेखक ने ठीक कहा है कि आवश्यकता ही शोषण का रूप धारण कर लेती है।

प्रश्न 5. स्त्री माया न जोड़े यहाँ मया शब्द किस ओर संकेत कर रहा है? स्त्रियों द्वारा माया जोड़ना प्रकृति प्रदत्त नहीं, बल्कि परिस्थितिवश है। वे कौन-सी परिस्थितियाँ होंगी जो स्त्री को माया जोड़ने के लिए विवश कर देती हैं? उत्तर: यहाँ ‘ माया ‘ शब्द का अर्थ है – धन – मगाती , जरूरत की वस्तुएँ । आमतौर पर स्तियों को माया जोड़ते देखा जाता है । इसका  कारण उनकी परिस्थितियों है जो निम्नलिखित हैं –

  • आत्मनिर्भरता की पूर्ति ।
  • घर की जरूरतों क्रो पूरा करना ।
  • अनिश्चित भविष्य ।
  • अहंभाव की तुष्टि ।
  • बच्चों की शिक्षा ।
  • संतान – विवाह हेतु ।

प्रश्न 1. ज़रूरत-भर जीरा वहाँ से लिया कि फिर सारा चौक उनके लिए आसानी से नहीं के बराबर हो जाता है-भगत जी की इस संतुष्ट निस्पृहता की कबीर की इस सूक्ति से तुलना कीजिएचाह गई चिंता गई मनुआ बेपरवाह जाके कुछ न चाहिए सोइ सहंसाह।                                                                                                                                                                                          – कबीर उत्तर: कबीर का यह दोहा भगत जी की संतुष्ट निस्मृहता पर पूर्णतया लागूहोता है । कबीर का कहना था कि इच्छा समाप्त होने यर  लता खत्म हो जाती है । शहंशाह वहीं होता है जिसे कुछ नहीं चाहिए । भगत जी भी ऐसे ही व्यक्ति हैं । इनकी जरूरतें भी  सीमित हैं । वे बाजार के आकर्षण से दूर हैं । अपनी ज़रूरत पा होने पर वे संतुष्ट को जाते हैं ।

प्रश्न 2. विजयदान देथा की कहानी ‘दुविधा’ (जिस पर ‘पहेली’ फ़िल्म बनी है) के अंश को पढ़कर आप देखेंगे कि भगत जी की संतुष्ट जीवन-दृष्टि की तरह ही गड़रिए की जीवन-दृष्टि है, इससे आपके भीतर क्या भाव जगते हैं? उत्तर: गड़रिया बगैर कहे ही उसके दिल की बात समझ गया, पर अँगूठी. कबूल नहीं की। काली दाढी के बीच पीले दाँतों की हँसी हँसते हुए बोला-‘मैं कोई राजा नहीं हूँ जो न्याय की कीमत वसूल करूं। मैंने तो अटका काम निकाल दिया। और यह अँगूठी मेरे किस काम की ! न यह अंगुलियों में आती है, न तड़े में। मेरी भेड़े भी मेरी तरह गॅवार हैं। घास तो खाती है, पर सोना सँघती तक नहीं। बेकार की वस्तुएँ तुम अमीरों को ही शोभा देती हैं। उत्तर: विजयदान देथा की ‘दुविधा’ कहानी का अंश पढ़कर मुझमें भी संतोषी वृत्ति के भाव जगते हैं। गड़रिया चाहता तो वह अपने न्याय की कीमत वसूल सकता था। सामाजिक दृष्टि से यही ठीक भी था क्योंकि अमीर व्यक्ति जो कुछ गड़रिये को दे रहा था वह उसका हक था। लेकिन गड़रिये और भगत जी की संतोषी भावना को देखकर मेरे मन में भी इसी प्रकार के भाव उत्पन्न हो जाते हैं। मन करता है कि जीवन में इस भावना को अपनाए रखें तो किसी प्रकार की चिंता नहीं रहेगी। जब कोई इच्छा या अपेक्षा नहीं होगी तो दुख नहीं होगा। तब हम भी कबीर की तरह शहंशाह होंगे।

प्रश्न 3. बाज़ार पर आधारित लेख ‘नकली सामान पर नकेल ज़रूरी’ का अंश पढ़िए और नीचे दिए गए बिंदुओं पर कक्षा में चर्चा कीजिए। (क) नकली सामान के खिलाफ़ जागरूकता के लिए आप क्या कर सकते हैं? (ख) उपभोक्ताओं के हित को मद्देनजर रखते हुए सामान बनाने वाली कंपनियों का क्या नैतिक दायित्व है। (ग) ब्रांडेड वस्तु को खरीदने के पीछे छिपी मानसिकता को उजागर कीजिए?

नकली सामान पर नकेल जरूरी।

अपना क्रेता वर्ग बढ़ाने की होड़ में एफएमसीजी यानी तेजी से बिकने वाले उपभोक्ता उत्पाद बनाने वाली कंपनियाँ गाँव के बाजारों में नकली सामान भी उतार रही हैं। कई उत्पाद ऐसे होते हैं जिन पर न तो निर्माण तिथि होती है और न ही उस तारीख का जिक्र होता है जिससे पता चले कि अमुक सामान के इस्तेमाल की अवधि समाप्त हो चुकी है। आउटडेटेड या पुराना पड़ चुका सामान भी गाँव-देहात के बाजारों में खप रहा है। ऐसा उपभोक्ता मामलों के जानकारों का मानना है। नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट्स रिड्सल कमीशन के सदस्य की मानें तो जागरूकता अभियान में तेजी लाए बगैर इस गोरखधंधे पर लगाम कसना नामुमकिन है। उपभोक्ता मामलों की जानकार पुष्पा गिरि माँ जी का कहना है, इसमें दो राय नहीं है कि गाँव-देहात के बाजारों में नकली सामान बिक रहा है।

महानगरीय उपभोक्ताओं को अपने शिकंजे में कसकर बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ, खासकर ज्यादा उत्पाद बेचने वाली कंपनियाँ, गाँव का रुख कर चुकी हैं। वे गाँववालों के अज्ञान और उनके बीच जागरुकता के अभाव का पूरा फायदा उठा रही हैं। उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए कानून ज़रूर है लेकिन कितने लोग इनका सहारा लेते हैं यह बताने की ज़रूरत नहीं। गुणवत्ता के मामले में जब शहरी उपभोक्ता ही उतने सचेत नहीं हो पाए हैं तो गाँव वालों से कितनी उम्मीद की जा सकती है। इस बारे में नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट्स रिड्रेसल कमीशन के सदस्य जस्टिस एस. एन. कपूर का कहना है, ‘टी.वी. ने दूरदराज के गाँवों तक में बहुराष्ट्रीय कंपनियों को पहुँचा दिया है। बड़ी-बड़ी कंपनियाँ विज्ञापन पर तो बेतहाशा पैसा खर्च करती हैं। लेकिन उपभोक्ताओं में जागरूकता को लेकर वे चवन्नी खर्च करने को तैयार नहीं हैं।

नकली सामान के खिलाफ जागरूकता पैदा करने में स्कूल और कॉलेज के विद्यार्थी मिलकर ठोस काम कर सकते हैं। ऐसा कि कोई प्रशासक भी न कर पाए।’ बेशक, इस कड़वे सच को स्वीकार कर लेना चाहिए कि गुणवत्ता के प्रति जागरुकता के लिहाज से शहरी समाज भी कोई ज्यादा सचेत नहीं है। यह खुली हुई बात है कि किसी बड़े ब्रांड का लोकल संस्करण शहर या महानगर का मध्य या निम्नमध्य वर्गीय उपभोक्ता भी खुशी-खुशी खरीदता है। यहाँ जागरुकता का कोई प्रश्न ही नहीं उठता क्योंकि वह ऐसा सोच-समझकर और अपनी जेब की हैसियत को जानकर ही कर रही है। फिर गाँववाला उपभोक्ता ऐसा क्यों न करे। पर फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि यदि समाज में कोई गलत काम हो रहा है तो उसे रोकने के जतन न किए जाएँ। यानी नकली सामान के इस गोरखधंधे पर विराम लगाने के लिए जो कदम या अभियान शुरू करने की ज़रूरत है वह तत्काल हो। – हिंदुस्तान 6 अगस्त 2006, साभार उत्तर: (क) नकली सामान के खिलाफ लोगों को जागरूक करना ज़रूरी है। सबसे पहले विज्ञापनों, पोस्टरों और होर्डिंग के माध्यम से यह बताया जाए कि किस तरह असली वस्तु की पहचान की जाए। लोगों को बताया जाए कि होलोग्राम और ISI मार्क वाली वस्तु ही खरीदें। उन्हें यह भी जानकारी दी जाए कि नकली वस्तुएँ खरीदने से क्या हानियाँ हो सकती हैं ?

(ख) सामान बनाने वाली कंपनियों का सबसे पहले यही नैतिक दायित्व है कि अच्छा और बढ़िया सामान बनाए। वे ऐसी वस्तुओं का उत्पादन करें जो आम आदमी को फायदा पहुँचायें। केवल अपना फायदा सोचकर ही समान न बेचें। वे मात्रा की अपेक्षा गुणवत्ता पर ध्यान रखें तभी ग्राहक खुश होगा। जो कंपनी जितनी ज्यादा गुणवत्ता देगी ग्राहक उसी कंपनी का सामान ज्यादा खरीदेंगे।

(ग) भारतीय मध्य वर्ग पर आज का बाजार टिका हुआ है। वह दिन बीत गए जब लोकल कंपनी का माल खरीदा जाता। था। अब तो लोग ब्रांडेड कंपनी का ही सामान खरीदते हैं। चाहे वह कितना ही महँगा क्यों न हो। उन्हें तो केवल यही विश्वास होता है कि ब्रांडेड सामान अच्छा और बढ़िया होगा। उसमें किसी भी तरह से कोई खराबी न होगी लोग इन ब्रांडेड सामानों को खरीदने के लिए कोई भी कीमत चुकाते हैं। ब्रांडेड सामान चूँकि बड़ी-बड़ी हस्तियाँ इस्तेमाल करती हैं। इसलिए अन्य लोग भी ऐसा ही करते हैं।

प्रश्न 4. प्रेमचंद की कहानी ‘ईदगाह’ के हामिद और उसके दोस्तों का बाजार से क्या संबंध बनता है? विचार करें। उत्तर: प्रेमचंद की कहानी में हामिद और उसके दोस्त यानी सम्मी मोहसिन नूरे सभी मेला देखने जाते हैं। वे मेले में लगी दुकानों को देखकर बहुत प्रभावित होते हैं। वे हाट बाजार में लगी हुई सारी वस्तुएँ देखकर प्रसन्न होते हैं। उनका मन करता है कि सभी-वस्तुएँ खरीद ली जाएँ। किंतु किसी के पास पाँच पैसे थे तो किसी के पास दो पैसे। हाट वास्तव में बाजार का ही एक रूप है। बच्चे इनमें लगी दुकानों को देखकर आकर्षित हो जाते हैं। वे तरह-तरह की इच्छाएँ करने लगते हैं। बच्चों का संबंध बाजार से प्रत्यक्ष होता है। वे सीधे तौर पर बाजार में जाकर वहाँ रखी वस्तुओं को खरीद लेना चाहते हैं।

विज्ञापन की दुनिया

प्रश्न 1. आपने समाचार-पत्रों, टी.वी. आदि पर अनेक प्रकार के विज्ञापन देखे होंगे जिनमें ग्राहकों को हर तरीके से लुभाने का प्रयास किया जाता है। नीचे लिखे बिंदुओं के संदर्भ में किसी एक विज्ञापन की समीक्षा कीजिए और यह भी लिखिए कि आपको विज्ञापन की किस बात ने सामान खरीदने के लिए प्रेरित किया। 1. विज्ञापन में सम्मिलित चित्र और विषय-वस्तु 2. विज्ञापन में आए पात्र और उनका औचित्य 3. विज्ञापन की भाषा। उत्तर: मैंने शाहरूख खान द्वारा अभिनीत सैंट्रो कार का विज्ञापन देखा। इस विज्ञापन में सैंट्रो कार का चित्र था और विषय वस्तु थी। वह कार, जिसे बेचने के लिए आज के सुपर स्टार शाहरूख खान को अनुबंधित किया गया। इसमें शाहरूख खान और उनकी पत्नी को विज्ञापन करते दिखाया गया है। साथ ही उनके एक पड़ोसी का भी जिक्र आया है। इन सभी पात्रों का स्वाभाविक चित्रण हुआ है। शाहरूख की पत्नी जब पड़ोसी पर आकर्षित होती है तो शाहरूख पूछता है क्यों? तब उसकी पत्नी जवाब देती है सैंट्रो वाले हैं न ।’ मुझे कार खरीदने के लिए इसी कैप्शन ने प्रेरित किया। इस पंक्ति में व्यक्ति की सामाजिक स्थिति का पता चलता है।

प्रश्न 2. अपने सामान की बिक्री को बढ़ाने के लिए आज किन-किन तरीकों का प्रयोग किया जा रहा है? उदाहरण सहित उनका संक्षिप्त परिचय दीजिए। आप स्वयं किस तकनीक या तौर-तरीके का प्रयोग करना चाहेंगे जिससे बिक्री भी अच्छी हो और उपभोक्ता गुमराह भी न हो। उत्तर सेल लगाकर, अपने सामान के साथ कुछ उपहार देकर, स्क्रैच कार्ड के द्वारा, विज्ञापन देकर या सामान की खूबियाँ बताकर। उदाहरण 1. सेल-सेल-सेल कपड़ों पर भारी सेल।। 2. एक सूट के साथ कमीज फ्री। बिलकुल फ्री। 3. ये कपड़े त्वचा को नुकसान नहीं पहुँचाते, ये नरम और मुलायम कपड़े हैं। पूरी तरह से सूती । यदि मुझे सामान बेचना पड़े तो मैं बेची जाने वाली वस्तु के गुणों का प्रचार करूंगा/करूंगी ताकि ग्राहक अपनी समझ से वस्तु खरीदे।।

भाषा की बात

प्रश्न 1. विभिन्न परिस्थितियों में भाषा का प्रयोग भी अपना रूप बदलता रहता है कभी औपचारिक रूप में आती है तो कभी अनौपचारिक रूप में। पाठ में से दोनों प्रकार के तीन-तीन उदाहरण छाँटकर लिखिए। उत्तर: औपचारिक रूप 1. मैंने कहा – यह क्या? बोले – यह जो साथ थी। 2. बोले – बाज़ार देखते रहे। मैंने कहा – बाज़ार क्या देखते रहे। 3. यह दोपहर के पहले के गए गए बाजार से कहीं शाम को वापिस आए।

  • कुछ लेने का मतलब था शेष सबकुछ छोड़ देना।
  • बाजार आमंत्रित करता है कि आओ मुझे लूटो और लूटो।
  • पैसे की व्यंग्य शक्ति भी सुनिए।

प्रश्न 2. पाठ में अनेक वाक्य ऐसे हैं, जहाँ लेखक अपनी बात कहता है कुछ वाक्य ऐसे हैं जहाँ वह पाठक-वर्ग को संबोधित करता है। सीधे तौर पर पाठक को संबोधित करने वाले पाँच वाक्यों को छाँटिए और सोचिए कि ऐसे संबोधन पाठक से रचना पढ़वा लेने में मददगार होते हैं? उत्तर: 1. बाज़ार में एक जादू है। वह जादू आँख की राह काम करता है। 2. जेब खाली पर मन भरा न हो, तो भी जादू चल जाएगा। 3. यहाँ एक अंतर चिह्न लेना ज़रूरी है। 4. कहीं आप भूल नहीं कर बैठिएगा। 5. पैसे की व्यंग्य शक्ति सुनिए। वह दारूण है। अवश्य ऐसे संबोधनों के कारण पाठकों के मन में जिज्ञासा उत्पन्न होती है। वह अपनी जिज्ञासा को शांत करना चाहता है। इसीलिए ऐसे संबोधन पाठक से रचना पढ़वा लेने में सहायक सिद्ध होते हैं।

प्रश्न 3. नीचे दिए गए वाक्यों को पढ़िए। (क) पैसा पावर है। (ख) पैसे की उस पर्चेजिंग पावर के प्रयोग में ही पावर का रस है। (ग) मित्र ने सामने मनीबैग फैला दिया। (घ) पेशगी ऑर्डर कोई नहीं लेते। ऊपर दिए गए इन वाक्यों की संरचना तो हिंदी भाषा की है लेकिन वाक्यों में एकाध शब्द अंग्रेजी भाषा के आए हैं। इस तरह के प्रयोग को कोड मिक्सिंग कहते हैं। एक भाषा के शब्दों के साथ दूसरी भाषा के शब्दों का मेलजोल ! अब तक। आपने जो पाठ पढ़े उसमें से ऐसे कोई पाँच उदाहरण चुनकर लिखिए। यह भी बताइए कि आगत शब्दों की जगह उनके हिंदी पर्यायों का ही प्रयोग किया जाए तो संप्रेषणीयता पर क्या प्रभाव पड़ता है ? उत्तर: 1. पैसे की गरमी या एनर्जी। 2. वह तत्व है मनी बैग 3. अपनी पर्चेजिंग पावर के अनुपात में आया है। 4. तो एकदम बहुत से बंडल थे। 5. वह पैसे की पावर को इतना निश्चय समझते हैं कि उसके प्रयोग की परीक्षा का उन्हें दरकार नहीं है। यदि इस वाक्य में एनर्जी की जगह उत्साह शब्द का प्रयोग किया जाता है तो वाक्य की प्रेषणीयता अधिक प्रभावी होती है। इसी प्रकार ‘मनी बैग’ की जगह नोटों से भरा थैला, पर्चेजिंग पावर की जगह खरीदने की शक्ति, बंडल की जगह गट्ठर और पावर की जगह ऊर्जा या उत्साह प्रभावी होगा क्योंकि हिंदी, पर्यायों के प्रयोग से संप्रेषणीयता ज्यादा बढ़ जाती है।

प्रश्न 4. नीचे दिए गए वाक्यों के रेखांकित अंश पर ध्यान देते हुए उन्हें पढ़िए। (क) निर्बल ही धन की ओर झुकता है। (ख) लोग संयमी भी होते हैं। (ग) सभी कुछ तो लेने को जी होता था। ऊपर दिए गए वाक्यों के रेखांकित अंश ‘ही’, ‘भी’, ‘तो’ निपात हैं जो अर्थ पर बल देने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। वाक्य में इनके होने-न-होने और स्थान क्रम बदल देने से वाक्य के अर्थ पर प्रभाव पड़ता है, जैसे मुझे भी किताब चाहिए (मुझे महत्त्वपूर्ण है।) मुझे किताब भी चाहिए। (किताब महत्त्वपूर्ण है।) आप निपात (ही, भी, तो) का प्रयोग करते हुए तीन-तीन वाक्य बनाइए। साथ ही ऐसे दो वाक्यों का निर्माण कीजिए जिसमें ये तीनों निपात एक साथ आते हों। उत्तर: ही – 1. उसे ही यह टिकट दे दो। 2. मैं वैसे ही उससे मिला। 3. तुमने ही मुझे उसके बारे में बताया।

भी – 1. कुछ लोग दुष्ट भी होते हैं। 2. वह भी उनसे मिल गया। 3. उसने भी मेरा साथ छोड़ दिया।

तो – 1. रामलाल ने कुछ तो कहा होता। 2. तुम लोग कुछ तो शर्म किया करो। 3. तुम लोगों को तो फाँसी दे देनी चाहिए।

1. मैंने ही नारायण शंकर को वहाँ भेजा था लेकिर उसने भी वह किया, कृपा शंकर तो उसे पहले ही कर दिया था। 2. आर्यन तो दिल्ली जाना चाहता था लेकिन मैं तो उसे भेजना नहीं चाहता था। तभी तो वह नाराज हो गया।

प्रश्न 1. पर्चेजिंग पावर से क्या अभिप्राय है? बाजार की चकाचौंध से दूर पर्चेजिंग पावर का सकारात्मक उपयोग किस प्रकार किया जा सकता है? आपकी मदद के लिए संकेत दिया जा रहा है (क) सामाजिक विकास के कार्यों में (ख) ग्रामीण आर्थिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने में ……। उत्तर: पर्चेजिंग पावर से अभिप्राय है कि खरीदने की क्षमता। कहने का भाव है कि खरीददारी करने का सामर्थ्य लेकिन पर्चेजिंग पावर का सकारात्मक प्रयोग किया जा सकता है। वह भी बाजार की चकाचौंध से कोसों दूर। इसका सकारात्मक प्रयोग सामाजिक कार्य करके और ग्रामीण आर्थिक व्यवस्था को सुदृढ़ करके। सामाजिक विकास के कार्य जैसे स्कूल, अस्पताल, धर्मशालाएँ। खुलवाकर उस पैसे का उपयोग किया जा सकता है जो कि लोग फिजूल के सामान पर खर्च करते हैं। आज शॉपिंग माल्स में लगभग 30 प्रतिशत फिजूल पैसा लोग खर्चते हैं क्योंकि वे अपनी शानो शौकत रखने के लिए खरीददारी करते हैं। यदि इसी पैसे को सामाजिक विकास के कार्यों में लगा दिया जाए तो समाज न केवल उन्नति करेगा बल्कि वह अमीरी गरीबी के अंतर से भी बाहर निकलेगा। दूसरे इस पैसे का ग्रामीण आर्थिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए उपयोग किया जा सकता है। गाँवों को मूलभूत सुविधाएँ इसी पैसे से प्रदान की जा सकती हैं। यह पैसा गाँवों की तस्वीर बदल सकता है।

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. ‘बाज़ारे दर्शन’ निबंध की भाषा के बारे में बताइए। उत्तर: बाजार दर्शन जैनेंद्र द्वारा लिखा गया एक सार्थक निबंध है। इसमें निबंधकार ने सहज, सरल और प्रभावी भाषा का प्रयोग किया है। शब्दावली में कुछेक अन्य भाषाओं के शब्द भी आए हैं। लेकिन ये शब्द कठिन नहीं हैं। पाठक सहजता से इन्हें ग्रहण कर लेता है। भाषा की दृष्टि से यह एक सफल और प्रभावशाली निबंध है। वाक्य छोटे-छोटे हैं जो निबंध को अधिक संप्रेषणीय बनाते हैं।

प्रश्न 2. ‘बाज़ार दर्शन’ निबंध किस प्रकार का है? उत्तर: निबंध प्रकार की दृष्टि से बाजार दर्शन को वर्णनात्मक निबंध कहा जा सकता है। निबंधकार ने हर स्थिति, घटाने का वर्णन किया है। प्रत्येक बात को विस्तारपूर्वक प्रस्तुत किया है। वर्णनात्मकता के कारण निबंध में रोचकता और स्पष्टता दोनों आ गए हैं। वर्णनात्मक निबंध प्रायः उलझन पैदा करते हैं लेकिन इस निबंध में यह कमी नहीं है।

प्रश्न 3. इस निबंध में अन्य भाषाओं के शब्द भी आए हैं, उनका उल्लेख कीजिए। उत्तर: निबंधकार ने हिंदी के अतिरिक्त अंग्रेज़ी, उर्दू, फारस भाषा के शब्दों का स्वाभाविक प्रयोग किया है। इन शब्दों के प्रयोग से निबंध की रोचकता और सार्थकता बढ़ी है। अंग्रेज़ी के शब्द-एनर्जी, बैंक, पर्चेजिंग पावर, मनी बैग, रेल टिकट, फैंसी स्टोर, शॉपिंग मॉल, ऑर्डर आदि। उर्दू फारसी के शब्द-नाहक, पेशगी, कमज़ोर, बेहया, हरज, बाज़ार, खलल, कायल, दरकार, माल-असबाब।

प्रश्न 4. निबंध में किस प्रकार की शैली का प्रयोग किया गया है। उत्तर: प्रस्तुत निबंध में जैनेंद्र जी ने मुख्य रूप से वर्णनात्मक, व्याख्यात्मक, उदाहरण आदि शैलियों का प्रयोग किया है। इन शैलियों के प्रयोग से निबंध की भाव संप्रेषणीयता बढ़ी है। साथ ही स्पष्टता और सरलता के गुण भी आ गए हैं। निबंधकार ने इन शैलियों का प्रयोग स्वाभाविक ढंग से किया है। इस कारण निबंध की रोचकता में वृद्धि हुई है। इनके कारण पाठक एक बैठक में निबंध को पढ़ लेना चाहता है।

प्रश्न 5. बाजार दर्शन से क्या अभिप्राय है? उत्तर: बाजार दर्शन से लेखक का अभिप्राय है बाज़ार के दर्शन करवाना अर्थात् बाज़ार के बारे में बताना कि कौन-कौन सी चीजें मिलती हैं कि वस्तुओं की बिक्री ज्यादा होती है। यह बाज़ार किस तरह आकर्षित करता है। लोग क्यों बाज़ार से ही आकर्षित होते हैं।

प्रश्न 6. उपभोक्तावादी संस्कृति क्या है? उत्तर: उपभोक्तावादी संस्कृति वास्तव में उपभोक्ताओं का समूह है। उपभोक्ता बाज़ार से सामान खरीदते हैं। यह वर्ग ही बाजार पैदा करता है। लोग अपने उपभोग की सारी वस्तुएँ बाज़ार से खरीदकर उनका उपभोग करते हैं। बाज़ार का सारा कारोबार इन्हीं पर निर्भर होता है।

प्रश्न 7. कौन-से लोग फिजूल खर्ची नहीं करते? उत्तर: लेखक कहता है कि संयमी लोग फिजूल खर्ची नहीं करते। वे उसी वस्तु को खरीदते हैं जिनकी उन्हें ज़रूरत होती है। बाजार के आकर्षण में ये कभी नहीं हँसते। उन्हें अपनी ज़रूरत से मतलब है न कि बाजारूपन से। जो चाहिए वही खरीदा नहीं तो छोड़ दिया।

प्रश्न 8. भगत जी के बारे में बताइए। उत्तर: लेखक ने भगत जी पात्र का वर्णन इस निबंध में किया है। उसके माध्यम से लेखक ने संतोष का पाठ पढ़ाया है। भगत जी केवल उतना ही सामान बेचते हैं जितना की बेचकर खर्चा चलाया जा सके। जब खर्चे लायक पैसे आ गए तो सामान बेचना बंद कर दिया। कभी किसी गरीब बच्चे को मुफ्त चूरन दे दिया। लेकिन ज्यादा सामान बेचने का लालच नहीं था।

प्रश्न 9. किस तरह का बाज़ार आदमी को ज्यादा आकर्षित करता है? उत्तर: लेखक के अनुसार ‘शॉपिंग मॉल’ व्यक्ति को ज्यादा आकर्षित करता है। उनकी सजावट देखकर व्यक्ति उनसे बहुत प्रभावित हो जाता है। वह उनके आकर्षण के जाल में फँस जाता है। इसी कारण वह उन चीजों को भी खरीद लेता है जिसकी उसे कोई जरूरत नहीं होती। वास्तव में, शॉपिंग मॉल ऊँचे रेटों पर सामान बेचते हैं।

प्रश्न 10. बाज़ार का जादू क्या है? उसके चढ़ने-उतरने का मनुष्य पर क्या प्रभाव पड़ता है? ‘बाज़ार दर्शन’ पाठ के आधार पर उत्तर लिखिए। (CBSE-2009) उत्तर: बाजार की चमक-दमक व उसके आकर्षण में फँसकर व्यक्ति खरीददारी करता है तो यही बाजार का जादू है। बाजार का जादू मनुष्य पर तभी चलता है जब उसके पास धन होता है तथा वस्तुएँ खरीदने की निर्णय क्षमता नहीं होती। वह आराम वे अपनी शक्ति दिखाने के लिए निरर्थक चीजें खरीदता है। जब पैसे खत्म हो जाते हैं तब उसे पता चलता है कि आराम के नाम पर जो गैर जरूरी वस्तुएँ उसने खरीदी हैं, वे अशांति उत्पन्न करने वाली है। वह झल्लाता है, परंतु उसका अभिमान उसे तुष्ट करता है।

प्रश्न 11. भगत जी बाज़ार को सार्थक व समाज को शांत कैसे कर रहे हैं? अथवा ‘बाज़ार दर्शन’ के लेखक ने भगत जी का उदाहरण क्यों दिया है? स्पष्ट कीजिए। उत्तर: लेखक ने इस निबंध में भगत जी का उदाहरण दिया है जो बाज़ार से काला नमक व जीरा लाकर वापस लौटते हैं। इन पर बाज़ार का आकर्षण काम नहीं करता क्योंकि इन्हें अपनी ज़रूरत का ज्ञान है। इससे पता चलता है कि मन पर नियंत्रण वाले व्यक्ति पर बाजार का कोई प्रभाव नहीं होता। ऐसे व्यक्ति बाजार को सही सार्थकता प्रदान करते हैं। दूसरे, उनका यह रुख समाज में शांति पैदा करता है क्योंकि यह पैसे की पावर नहीं दिखाता। यह प्रतिस्पर्धा नहीं उत्पन्न करता।

प्रश्न 12. खाली मन तथा भरी जेब से लेखक का क्या आशय है? ये बातें बाजार को कैसे प्रभावित करती हैं? (CBSE-2014) उत्तर: खाली मन तथा जेब भरी होने से लेखक का आशय है कि मन में किसी निश्चित वस्तु को खरीदने की निर्णय शक्ति का न होना तथा मनुष्य के पास धन होना। ऐसे व्यक्तियों पर बाज़ार अपने चमकदमक से कब्जा कर लेता है। वे गैर ज़रूरी चीजें खरीदते हैं।

प्रश्न 13. ‘बाज़ार दर्शन’ पाठ के आधार पर ‘पैसे की व्यंग्य शक्ति’ कथन को स्पष्ट कीजिए। (CBSE-2015, 2016) उत्तर: लेखक बताता है कि पैसे में व्यंग्य शक्ति होती है। यदि कोई समर्थ व्यक्ति दूसरे के सामने किसी महंगी वस्तु को खरीदे तो दूसरा व्यक्ति स्वयं को हीन महसूस करता है। पैदल या दोपहिया वाहन चालक के पास से धूल उड़ाती कार चली जाए तो वह परेशान हो उठता है। वह स्वयं को कोसता रहता है। वह भी कार खरीदने के पीछे लग जाता है। इसी कारण बाज़ार में माँग बढ़ती है।

प्रश्न 14. ‘बाज़ार दर्शन’ पाठ के आधार पर बताइए कि पैसे की पावर का रस किन दो रूपों में प्राप्त किया जाता है? उत्तर: पैसे की पावर का रस फिजूल की वस्तुएँ खरीदने, माल असबाब, मकान-कोठी आदि के द्वारा लिया जाता है। यदि पैसा खर्च न भी किया जाए तो अधिक धन पास रहने से भी गर्व का अनुभव किया जा सकता है।

प्रश्न 15. ‘बाज़ार दर्शन’ निबंध उपभोक्तावाद एवं बाज़ारवाद की अंतर्वस्तु को समझाने में बेजोड़ है।’-उदाहरण देकर इस कथन पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए। (CBSE-2013) उत्तर: यह निबंध उपभोक्तावाद एवं बाजारवाद की अंतर्वस्तु को समझाने में बेजोड़ है। लेखक बताता है कि बाजार का आकर्षण मानव मन को भटका देता है। वह उसे ऐशोआराम की वस्तुएँ खरीदने की तरह आकर्षित करता है। लेखक ने भगत जी के माध्यम से नियंत्रित खरीददारी का महत्त्व भी प्रतिपादित किया है। बाजार मनुष्य की ज़रूरतें पूरी करें। इसी में उसकी सार्थकता है, अन्यथा यह समाज में ईर्ष्या, तृष्णा, असंतोष, लूटखसोट को बढ़ावा देता है।

प्रश्न 16. बाज़ार जाते समय आपको किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? ‘बाज़ार दर्शन’ पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए। (CBSE-2014) उत्तर: बाज़ार जाते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए

  • हमें ज़रूरत के सामान की सूची बनानी चाहिए।
  • हमें बाजार के आकर्षण से बचना चाहिए।
  • हमारा मन निश्चित खरीददारी के लिए होना चाहिए।
  • बाज़ार में क्रयक्षमता का प्रदर्शन ने करके जरूरत का सामान लेना चाहिए।
  • बाजार में असंतोष व हीन भावना से दूर रहना चाहिए।

We hope the given NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 12 बाजार दर्शन will help you. If you have any query regarding NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 12 बाजार दर्शन, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

Free Resources

NCERT Solutions

Quick Resources

Voice speed

Text translation, source text, translation results, document translation, drag and drop.

presentation se kya abhipray hai

Website translation

Enter a URL

Image translation

HindiKiDuniyacom

स्वच्छता पर निबंध (Cleanliness Essay in Hindi)

स्वच्छता

नरेन्द्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान के उद्देश्य को पूरा करने के लिये एक बड़ा कदम हो सकता है हर भारतीय नागरिक का एक छोटा सा कदम। रोजमर्रा के जीवन में हमें अपने बच्चों को साफ-सफाई के महत्व और इसके उद्देश्य को सिखाना चाहिये। अच्छा स्वास्थ्य किसी के जीवन को बेहतक बना सकता है और वह हमें बेहतर तरीके से सोचने और समझने की ताकत प्रदान करता है और अच्छे स्वास्थ्य का मूल मंत्र स्वच्छता है।

स्वच्छता पर छोटे तथा बड़े निबंध (Short and Long Essay on Cleanliness in Hindi, Swachhata par Nibandh Hindi mein)

निबंध 1 (250 शब्द).

स्वच्छता कोई काम नहीं है, जो पैसे कमाने के लिये किया जाए बल्कि, ये एक अच्छी आदत है जिसे हमें अच्छे स्वास्थ्य और स्वस्थ जीवन के लिये अपनाना चाहिये। स्वच्छता पुण्य का काम है जिसे जीवन का स्तर बढ़ाने के लिये, एक बङी जिम्मेदारी के रुप में हर व्यक्ति को इसका अनुकरण करना चाहिये। हमें अपनी व्यक्तिगत स्वच्छता, पालतू जानवरों की स्वच्छता, पर्यावरण की स्वच्छता, अपने आस-पास की स्वच्छता, और कार्यस्थल की स्वच्छता आदि करनी चाहिये। हमें पेड़ों को नहीं काटना चाहिये और पर्यावरण को स्वच्छ बनाए रखने के लिये पेड़ लगाना चाहिये।

ये कोई कठिन कार्य नहीं है, लेकिन हमें इसे शांतिपूर्ण तरीके से करना चाहिये। ये हमें मानसिक, शारीरिक, समाजिक और बौद्धिक रुप से स्वस्थ रखता है। सभी के साथ मिलकर उठाया गया कदम एक बड़े कदम के रुप में परिवर्तित हो सकता है। जब एक छोटा बच्चा सफलतापूर्वक चलना, बोलना, दौड़ना सीख सकता है और यदि अभिभावकों द्वारा इसे बढ़ावा दिया जाए, तो वो बहुत आसानी से स्वच्छता संबंधी आदतों को बचपन में ग्रहण कराया जा सकता है।

माता-पिता अपने बच्चे को चलना सीखाते हैं, क्योंकि ये पूरे जीवन को जीने के लिये बहुत जरुरी है। उन्हें जरुर समझना चाहिये कि स्वच्छता एक स्वस्थ जीवन और लंबी आयु के लिये भी बहुत जरुरी होता है, इसलिये उन्हें अपने बच्चों में साफ-सफाई की आदत भी डालनी चाहिये। हम अपने अंदर ऐसे छोटे-छोटे बदलाव अगर ले आएं तो शायद वो दिन दूर नहीं जब पूरा भारत स्वच्छ हो। बच्चों में क्षमता होती है, कि वे कोई भी आदत जल्दी सीख लेते हैं। इस लिये उन्हे स्वच्छता का पालन करने के लिये बचपन से प्रेरित करें।

निबंध 2 (300 शब्द)

स्वच्छता एक अच्छी आदत है जो हम सभी के लिये बहुत जरुरी है। अपने घर, पालतू जानवर, अपने आस-पास, पर्यावरण, तालाब, नदी, स्कूल आदि सहित सबकी सफाई करते हैं। हमें सदैव साफ, स्वच्छ और अच्छे से कपड़े पहनना चाहिये। ये समाज में अच्छे व्यक्तित्व और प्रभाव को बनाने में मदद करता है, क्योंकि ये आपके अच्छे चरित्र को दिखाता है। धरती पर हमेशा के लिये जीवन को संभव बनाने के लिये अपने शरीर की सफाई के साथ पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों (भूमि, पानी, खाद्य पदार्थ आदि) को भी साफ बनाए रखना चाहिये।

स्वच्छता हमें मानसिक, शारीरिक, सामाजिक और बौद्धिक हर तरीके से स्वस्थ बनाता है। सामान्यत:, हमने हमेशा अपने घर में ये ध्यान दिया होगा कि हमारी दादी और माँ पूजा से पहले स्वच्छता को लेकर बहुत सख्त होती हैं, तब हमें यह व्यवहार कुछ अलग नहीं लगता, क्यों कि वो बस साफ-सफाई को हमारी आदत बनाना चाहती हैं। लेकिन वो गलत तरीका अपनाती हैं, क्योंकि वो स्वच्छता के उद्देश्य और फायदे को नहीं बताती हैं, इसी वजह से हमें स्वच्छता का अनुसरण करने में समस्या आती है। हर अभिवावक को तार्किक रुप से स्वच्छता के उद्देश्य, फायदे और जरुरत आदि के बारे में अपने बच्चों से बात करनी चाहिये। उन्हे जरुर बताना चाहिये कि स्वच्छता हमारे जीवन में खाने और पानी की तरह पहली प्राथमिकता है।

अपने भविष्य को चमकदार और स्वस्थ बनाने के लिये हमें हमेशा खुद का और अपने आसपास के पर्यावरण का ख्याल रखना चाहिये। हमे साबुन से नहाना, नाखुनों को काटना, साफ और इस्त्री किये हुए कपड़े आदि कार्य रोज करना चाहिये। घर को कैसे स्वच्छ और शुद्ध बनाए ये हमें अपने माता-पिता से सीखना चाहिये। हमें अपने आसपास के वातावरण को साफ रखना चाहिये ताकि किसी प्रकार की बीमारी न फैले। कुछ खाने से पहले और खाने के बाद साबुन से हाथ धोना चाहिये। हमें पूरे दिन साफ और शुद्ध पानी पीना चाहिये, हमें बाहर के खाने से बचना चाहिये, साथ ही ज्यादा मसालेदार और तैयार पेय पदार्थों से परहेज करना चाहिये। इस प्रकार हम खुद को स्वच्छ के साथ-साथ स्वस्थ भी रख सकते हैं।

Essay on Cleanliness in Hindi

निबंध 3 (400 शब्द)

स्वच्छता एक क्रिया है जिससे हमारा शरीर, दिमाग, कपड़े, घर, आसपास और कार्यक्षेत्र साफ और शुद्ध रहते है। हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिये साफ-सफाई बेहद जरुरी है। अपने आसपास के क्षेत्रों और पर्यावरण की सफाई सामाजिक और बौद्धिक स्वास्थ्य के लिये बहुत जरुरी है। हमें साफ-सफाई को अपनी आदत में लाना चाहिये और कूड़े को हमेशा कूड़ेदान में ही डालना चाहिये, चाहिये क्योंकि गंदगी वह जड़ है जो कई बीमारियों को जन्म देती है। जो रोज नहीं नहाते, गंदे कपड़े पहनते हों, अपने घर या आसपास के वातावरण को गंदा रखते हैं, ऐसे लोग हमेशा बीमार रहते हैं। गंदगी से आसपास के क्षेत्रों में कई तरह के कीटाणु, बैक्टीरिया वाइरस तथा फंगस आदि पैदा होते हैं जो बीमारियों को जन्म देते हैं।

जिन लोगों की गंदी आदतें होती हैं वो भी खतरनाक और जानलेवा बीमारियों को फैलाते है। संक्रमित रोग बड़े क्षेत्रों में फैलाते हैं और लोगों को बीमार करते हैं, कई बार तो इससे मौत भी हो जाती है। इसलिये, हमें नियमित तौर पर अपने स्वच्छता का ध्यान रखना चाहिये। हम जब भी कुछ खाने जाएँ तो अपने हाथों को साबुन से धो लें। अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिये हमें बिल्कुल साफ-सुथरे कपड़े पहनने चाहिये। स्वच्छता से हमारा आत्म-विश्वास बढ़ता है और दूसरों का भी हम पर भरोसा बनता है। ये एक अच्छी आदत है जो हमें हमेशा खुश रखेगी। ये हमें समाज में बहुत गौरान्वित महसूस कराएगी।

हमारे स्वस्थ जीवन शैली और जीवन के स्तर को बनाए रखने के लिये स्वच्छता बहुत जरुरी है। ये व्यक्ति को प्रसिद्ध बनाने में अहम रोल निभाती है। पूरे भारत में आम जन के बीच स्वच्छता को प्रचारित व प्रसारित करने के लिये भारत की सरकार द्वारा कई सारे कार्यक्रम और सामाजिक कानून बनाए गये और लागू किये गये है। हमें बचपन से स्वच्छता की आदत को अपनाना चाहिये और पूरे जीवन उनका पालन करना चाहिये। एक व्यक्ति अच्छी आदत के साथ अपने बुरे विचारों और इच्छाओं को खत्म कर सकता है।

घर या अपने आसपास संक्रमण फैलने से बचाने और गंदगी के पूर्ण निपटान के लिये हमें ध्यान रखना चाहिये कि कूड़ा केवल कूड़ेदान में ही डालें। साफ-सफाई केवल एक व्यक्ति की जिम्मेदारी नहीं है बल्कि ये घर, समाज, समुदाय, और देश के हर नागरिक की जिम्मेदारी है। हमें इसके महत्व और फायदों को समझना चाहिये। हमें कसम खानी चाहिये कि, न तो हम खुद गंदगी फैलाएंगे और किसी को फैलाने देंगे।

निबंध 4 (600 शब्द)

स्वच्छता किसी भी व्यक्ति के लिए बहुत जरुरी होता है। चाहे वह कोई भी क्षेत्र क्यों न हो, हमें सदैव इसका पालन करना चाहिये। स्वच्छता कई प्रकार की हो सकती है जैसे कि, सामाजिक, व्यक्तिगत, वैचारिक आदि। हमें हर क्षेत्र में इसे अपनाना चाहिये क्यों कि सबके मायने अलग होते हैं। विचारों कि स्वच्छता हमें एक अच्छा इंसान बनाती है, तो वहीं व्यक्तिगत स्वच्छता हमें हानिकारक बिमारियों से बचाती है। इस लिये स्वच्छता के सार्वभौमिक विकास हेतु हमें सदैव प्रयासरत रहना चाहिये।

स्वच्छता का महत्व

चाहे व्यक्ति छोटा हो या बड़ा, हर उम्र में उन्हें कुछ स्वच्छता संबंधीत नियमों का पालन करना आवश्यक होता है जैसे कि, सदैव खाने से पहले और बाद में हाथों को साबुन से धुलना, रोज नहाना, अपने दांतो को साफ करना, नीचे गिरे वस्तुओं को न खाना, अपने घर को साफ रखना, घर में उचित सूर्य के प्रकाश कि व्यवस्था हो, आपने नाखूनों को साफ रखना, केवल घर ही नहीं अपितु आस-पास के परिवेश को भी स्वच्छ रखना, अपने स्कूल, कॉलेज या कोई भी सार्वजनिक स्थान पर कूड़ा न फैलाना। सूखे और गीले कचड़े को अलग-अलग हरे और नीले कूड़ेदान में डालना। इस प्रकार और भी कई काम हैं जिनके जरिये आप अपने अंदर स्वच्छता संबंधी आदतों को विकसित कर सकते हैं।

स्वच्छता से होने वाले फायदे

स्वच्छता के कई फायदे हैं जैसे कि स्वच्छता संबंधी अच्छी आदतें हमे कई बीमारियों से बचाती हैं। कोई भी बीमारी न केवल शरीर के लिए हानिकारक होता है, अपितु खर्च भी बढ़ा देता है। गंदे पानी व भोजन के सेवन से पीलिया, टाइफाइड, कॉलेरा जैसी खतरनाक बीमारियां फैलती हैं। गंदे परिवेश मे मच्छर पनपते हैं जो मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया जैसी जानलेवा बीमारियां फैलाते हैं।

व्यर्थ के बीमारियों को बढ़ाने से अच्छा है कि हम स्वच्छता संबंधी नियमों का पालन करें। ऐसा कर के हम देश के लाखों रुपये, जो बीमारियों पर खर्च होते हैं बचा सकते हैं। व्यक्तिगत स्वच्छता के साथ-साथ वैचारिक स्वच्छता हमें एक अच्छा इंसान बनाता है। जो सदैव अपने विकास के साथ दूसरों का भी भला सोचता है और जब देश के सभी लोग ऐसी भावन के साथ जीने लगेंगे, तो वो दिन दूर नहीं जब देश स्वच्छता के साथ-साथ प्रगति के पथ पर भी तेजी से आगे बढ़ने लगेगा।

स्वच्छता संबंधी अभियान

भारत सरकार ने स्वच्छता की आवश्यकता को समझते हुए स्वच्छ भारत नामक अभियान को भी चलाया जिसकी शुरुआत 2 अक्टूबर 2014 को गांधी जयंती के मौके पर की गई। पर कोई भी अभियान केवल सरकार मात्र नहीं चला सकती, आवश्यकता है वहां के नागरिकों में जागरुकता फैलाने की।

इस अभियान के तहत सरकार ने शहर एवं ग्रामीण दोनो क्षेत्रों मे स्वच्छता को बढ़ावा दिया है और पूरे भारत को खुले मे शौच मुक्त करने का प्रण लिया है। अब तक 98 प्रतिशत भारत को खुले में शौचमुक्त बनाया जा चुका है। इसी प्रकार कई अन्य अभियान हैं जैसे निर्मल भारत, बाल स्वच्छता अभियान आदि। सबका उद्देश्य भारत में स्वच्छता को बढ़ावा देना है।

हम यह कह सकते हैं कि स्वच्छता हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा है और स्वच्छता संबंधी आदतों से हम स्वस्थ जीवन जी सकते हैं। और जब हमारा स्वास्थ्य ठीक रहेगा तो हम अपने परिवेश कि भी सफाई आसानी से कर पाएंगे। जब हमारा पूरा परिवेश साफ रहेगा तो नतीजन देश भी साफ रहेगा और इस प्रकार एक छोटी सी कोशिश मात्र से हम पूरे देश को साफ कर सकते हैं।

हमें बच्चों में छोटे समय से स्वच्छता संबंधी आदतें डालनी चाहिए, क्यों कि वे देश के भविष्य हैं और एक अच्छी आदत देश में बदलाव ला सकता है। जिस देश के बच्चे सामाजिक, वैचारिक और व्यक्तिगत रूप से स्वच्छ होंगे उस देश को आगे बढ़ने से कोइ नहीं रोक सकता। एक जिम्मेदार नागरिक बनें और देश के विकास में अपना योगदान दें। स्वच्छता अपनाएं और देश को आगे बढ़ाएं।

सम्बंधित जानकारी:

बाल स्वच्छता अभियान पर निबंध

स्वच्छता भक्ति से भी बढ़कर है

संबंधित पोस्ट

मेरी रुचि

मेरी रुचि पर निबंध (My Hobby Essay in Hindi)

धन

धन पर निबंध (Money Essay in Hindi)

समाचार पत्र

समाचार पत्र पर निबंध (Newspaper Essay in Hindi)

मेरा स्कूल

मेरा स्कूल पर निबंध (My School Essay in Hindi)

शिक्षा का महत्व

शिक्षा का महत्व पर निबंध (Importance of Education Essay in Hindi)

बाघ

बाघ पर निबंध (Tiger Essay in Hindi)

Dr. Charan's Competition Platform

Let's Learn to Succeed

छायावाद : अर्थ, परिभाषा व प्रवृत्तियां ( Chhayavad : Arth, Paribhasha V Pravrittiyan )

छायावाद : अर्थ, परिभाषा एवं प्रवृत्तियाँ

▶️   द्विवेदी युग ( 1900 ईo से 1920 ईo)

▶️  छायावाद (1920 ईo से 1936 ईo)

▶️ प्रगतिवाद (1936 ईo से 1943 ईo)

▶️  प्रयोगवाद या नई कविता  (1943 ईo से 1960 ईo)

▶️ साठोत्तरी कविता (1960 ईo  से आगे )

प्रस्तुत प्रश्न में ‘छायावाद’ का विवेचन करना अपेक्षित है |

⚫️  छायावाद : आधुनिक हिंदी काव्य में छायावाद को ‘आधुनिक हिंदी साहित्य का स्वर्ण युग’ कहा जा सकता है  | यह युग साहित्य के क्षेत्र में एक क्रांति था जिसमें कला पक्ष तथा भाव पक्ष दोनों दृष्टिकोण से उत्कर्ष का चरम दिखाई देता है|  सन 1920 से सन 1936 तक के काव्य को छायावाद कहा जाता है |

 छायावाद का आरंभ – मुकुटधर पांडेय ने 1920 ईo में  जबलपुर से प्रकाशित होने वाली पत्रिका ‘श्री शारदा’ में ‘हिंदी में छायावाद’ शीर्षक से चार निबंध एक श्रृंखला के रूप में छपवाए थे  जो छायावाद के संबंध में सर्वप्रथम लेख हैं |

इसके अतिरिक्त 1921 ईo में ‘सरस्वती’  पत्रिका में सुशील कुमार   ने ‘हिंदी में छायावाद’   शीर्षक से एक संवादात्मक निबंध लिखा था |

इस प्रकार सर्वप्रथम छायावाद शब्द का प्रयोग मुकुटधर पांडेय ने किया था | छायावाद को ‘मिस्टिसिजम’ के अर्थ के रूप में प्रयोग किया गया था | आरंभ में छायावाद शब्द का प्रयोग व्यंग्य के रूप में किया गया था लेकिन बाद में इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया गया |

जयशंकर प्रसाद ( Jaishankar Prasad )   के काव्य ‘ आँसू’ को छायावाद की पहली रचना माना जाता है |

🔷 छायावाद का अर्थ व परिभाषा  : छायावाद के अर्थ को लेकर विद्वानों में मतभेद है आचार्य शुक्ल छायावाद का संबंध रहस्यवाद और विशेष काव्य-शैली से जोड़ते हैं |

 आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने 1927 ईस्वी में ‘सरस्वती’ पत्रिका में ‘सुकवि किंकर’   छदम नाम से ‘आजकल के हिंदी कवि और कविता’ नामक लेख लिखा था इसमें उन्होंने छायावाद के संबंध में लिखा था  –  “छायावाद से लोगों का क्या मतलब है कुछ समझ में नहीं आता | शायद उनका मतलब है कि किसी कविता के भावों की छाया यदि कहीं अन्यत्र जाकर पड़े तो उसे छायावादी कविता कहना चाहिए |” 

छायावाद के सुप्रसिद्ध कवि सुमित्रानंदन पंत  ने छायावाद को ‘चित्र भाषा पद्धति’  कहा है |

डॉ रामकुमार वर्मा भी छायावाद को  रहस्यवाद से जोड़ते हैं | वे कहते हैं- “जब परमात्मा की छाया आत्मा में पड़ने लगती है और आत्मा की छाया परमात्मा में तो यही छायावाद है |”

नंददुलारे वाजपेई ने ‘हिंदी साहित्य : बीसवीं सदी’   पुस्तक में इसे आध्यात्मिक छाया का भान कहा है | उनके अनुसार  – “छायावाद  सांसारिक वस्तुओं में दिव्य सौंदर्य का प्रत्यय है |”

डॉ नगेंद्र के अनुसार- “स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह  ही छायावाद है |”

मुख्यतः विभिन्न विद्वानों ने छायावाद के संदर्भ में निम्नलिखित विशेषताएं उद्घाटित की हैं : – 1. छायावाद पद्धति विशेष है| 2. यह आध्यात्मिकता से युक्त है| 3. यह एक दार्शनिक अनुभूति है | 4. यह प्रेम और सौंदर्य की अभिव्यक्ति   है | 5. यह रूढ़िवाद का विद्रोह है | 6. यह एक प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति है | 7. यहां स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह है |

            छायावाद के प्रमुख कवि 

🔹 जयशंकर प्रसाद ( 1889 ईo से 1937 ईo ) – कानन कुसुम, महाराणा का महत्व,  करुणालय, प्रेम पथिक, झरना, आंसू, लहर, कामायनी |  

🔹  सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ( 1899 ईo – 1961 ईo ) – अनामिका, परिमल, गीतिका, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, अणिमा, नए पत्ते, बेला,  अर्चना, आराधना,  गीत कुंज,  सांध्य-काकली |

🔹 सुमित्रानंदन पंत ( 1990 ईo से 1977 ईo ) – गिरजे का घंटा ( पंत कि पहली कविता ), ग्रंथि, पल्लव, वीणा,  गुंजन,  युगांत, युगवाणी,  ग्राम्या,  स्वर्ण किरण, स्वर्ण धूली,  युगपथ,  उत्तरा,  अतिमा,  वाणी,  पतझर,  कला और बूढ़ा चांद, लोकायतन, सत्यकाम |

🔹 महादेवी वर्मा ( 1907 ईo से 1987 ईo ) – निहार,  रश्मि, नीरजा,  सांध्यगीत, यामा ( इसमें पहली चारों काव्य शंकर को एक साथ संकलित किया गया है ), दीपशिखा |

       ⚫️ छायावादी काव्य की प्रवृत्तियां⚫️

छायावादी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियां निम्नलिखित हैं : 1️⃣ व्यक्तिवाद की प्रधानता: छायावादी काव्य में व्यक्तिवाद की प्रधानता है | शायद आधुनिक युग की अनेक समस्याओं के कारण व्यक्तिवाद का जन्म हुआ | छायावादी काव्य में किसी जाति,  महाजाति के सुख-दुख की नहीं अपितु साधारण व्यक्ति के सुख-दुख की बात है | कवि अपनी कविता की विषय-वस्तु की खोज बाहर से नहीं अपितु अपने भीतर से करता है | इसीलिए छायावादी काव्य में कहीं-कहीं अहम भावना की अति है परंतु यह अहम भाव असामाजिक नहीं है इसमें ‘सर्व’ मिला हुआ है | इस कविता में कवि का रोना या हंसना  उसका व्यक्तिगत नहीं है अपितु प्रत्येक संघर्षरत व्यक्ति का रोना या हंसना है | यथा :- “मैंने ‘मैं’ शैली अपनाई       देखा सब दुखी निज भाई |”

2️⃣ मानवतावाद : छायावाद का सबसे उज्ज्वल पक्ष मानवतावाद है |  वह युग वास्तव में विश्वयुद्ध और मानवतावाद का युग था | युद्ध के भयंकर परिणामों को देखकर अनेक महापुरुष मानवतावाद का प्रचार कर रहे थे | प्रसाद की ‘कामायनी’ और निराला की ‘तुलसीदास’   रचनाएं मानवतावाद की भावना से ओतप्रोत रचनाएं हैं | छायावादी काव्य में राष्ट्रवाद की भावना भी संकीर्ण नहीं अपितु मानवतावादी है |  यही कारण है कि छायावादी काव्य में मानव-प्रेम,  उदारता,  करुणा और विश्व-बंधुत्व की भावना आदि के दर्शन होते हैं | पंत जी मानव प्रेम के विषय में कहते हैं :-  “सुंदर है विहग,  सुमन सुंदर     मानव तुम सबसे सुंदरतम |”

3️⃣ प्रकृति-चित्रण : छायावादी कवियों ने प्रकृति का सुंदर चित्रण किया है | इनके काव्य में प्रकृति का आलंबनगत व  उद्दीपनगत दोनों रूपों  में वर्णन किया गया है | इन्होंने अपने काव्य में प्रकृति का मानवीकरण किया है | सभी प्रमुख छायावादी कवियों ने प्रकृति का चित्रण नारी रूप में किया है | छायावादी कवियों ने प्रकृति के माध्यम से सुंदर व सात्विक चित्र खींचे हैं परंतु कहीं-कहीं इनके प्रकृति-चित्रण में भी अश्लीलता के दर्शन होते हैं | निराला की कविता  ‘जूही की कली’ को कुछ लोग भले ही प्रकृति- चित्रण का श्रेष्ठ उदाहरण मानें लेकिन वास्तव में इस कविता में पुरुष-नारी के संगम का चित्रण है | एक उदाहरण देखिए :- ” सरकाती पट खिसकाती लट शरमाती झट वह नमित दृष्टि से देख उरोजों के युग घट” |

4️⃣ रहस्यवाद : छायावादी काव्य की एक प्रमुख प्रवृत्ति है-रहस्यवाद| यही कारण है कि कुछ विद्वानों ने तो छायावाद को रहस्यवाद से जोड़कर ही इस को परिभाषित किया है | उदाहरण के लिए आचार्य रामचंद्र शुक्ल छायावाद को रहस्यवाद से जोड़ते हैं |  डॉक्टर रामकुमार वर्मा भी रहस्यवाद को की छायावाद मानते हैं | वे कहते हैं –  “जब परमात्मा की छाया आत्मा पर तथा आत्मा की छाया परमात्मा पर पड़ने लगती है तो यही छायावाद है |” वस्तुतः सभी छायावादी कवियों ने अपने काव्य में आध्यात्मिकता को स्थान दिया है  | इन कवियों ने आंतरिक अनुभूतियों को प्रकट करने के लिए रहस्यवाद का सहारा लिया है |  प्रसाद ने परम सत्ता को बाहर खोजा,  महादेवी वर्मा ने प्रेम और वेदना में,  पंत ने प्रकृति में तथा निराला ने तत्वज्ञान में ; लेकिन इनमें से किसी का भी रहस्यवाद कबीर या दादू जैसा गहरा नहीं  | इनके रहस्यवाद में मार्मिकता का अभाव है |

5️⃣ स्वच्छंदतावाद : छायावादी कवियों ने अहमवादी व व्यक्तिवादी होने के कारण स्वच्छंदतावादी प्रकृति को अपनाया है | उन्होंने काव्य-रचना करते समय किसी भी प्रकार के शास्त्रीय बंधनों को स्वीकार नहीं किया |  विषय का चयन करते समय भी उन्होंने इसी नियम को अपनाया | यही कारण है कि छायावादी काव्य में विषयगत विविधता है | सौंदर्य वर्णन,  प्रेम-चित्रण,  प्रकृति-वर्णन, राष्ट्रप्रेम,  रहस्यवाद, वेदना,  निराशा, उत्साह आदि सभी विषयों पर इन्होंने अपनी लेखनी चलायी |

6️⃣ वेदना और निराशा : छायावादी काव्य में वेदना और निराशा सर्वत्र अभिव्यक्त हुई है | कुछ आलोचक मानते हैं कि यह निराशा तत्कालीन वातावरण की देन है क्योंकि उस समय भारत अंग्रेजों का गुलाम था और आंदोलन असफल हो रहे थे |  दूसरा, छायावादी कवि मानते थे कि वेदना और निराशा से ही काव्य उपजता है | पंत जी लिखते हैं :- “ वियोगी होगा पहला कवि  आह से उपजा होगा गान उमड़ कर आंखों से चुपचाप बही होगी कविता अनजान |”

7️⃣ नारी प्रेम और सौंदर्य का चित्रण : छायावादी कवियों ने नारी-प्रेम और सौंदर्य के अनेक चित्र प्रस्तुत किए हैं |  नारी सौंदर्य का चित्रण कहीं-कहीं दैहिक बन पड़ा है | यथा :- “नील परिधान बीच सुकुमार  खुल रहा मृदुल अधखुला अंग |”

छायावादी कवियों ने नारी के करुणा,  दया, ममता आदि भावों का भी सुंदर चित्रण किया है | प्रसाद ने नारी के विषय में लिखा है :- “नारी तुम केवल श्रद्धा हो |”

8️⃣ स्वतंत्रता प्रेम : छायावादी कवियों के काव्य में राष्ट्रीय जागरण का स्वर भी मिलता है | यह कवि अनेक स्थानों पर स्वतंत्रता का आह्वान भी करते हैं |  राष्ट्रीय आंदोलन का प्रभाव इन कवियों पर पड़ना स्वाभाविक ही है | प्रसाद के काव्य तथा नाटक दोनों में ही राष्ट्रीय भावना देखने को मिलती है |  माखनलाल चतुर्वेदी की राष्ट्रीय भावना का एक उदाहरण देखिए :- “मुझे तोड़ लेना वनमाली उस पथ पर तुम देना फेंक मातृभूमि पर शीश चढ़ाने  जिस पथ जाएं वीर अनेक |”

9️⃣ कला पक्ष : कला पक्ष के दृष्टिकोण से भी छायावादी काव्य उतना ही उत्कृष्ट है जितना भाव पक्ष के दृष्टिकोण से | छायावादी काव्य में खड़ी बोली हिंदी अपने चरम उत्कर्ष पर पहुंच गई | इन कवियों की भाषा चित्रात्मक है | इन कवियों ने कोमलकांत शब्दावली का प्रयोग किया है व संस्कृतनिष्ठ भाषा पर बल दिया है | छंदों के दृष्टिकोण से छायावादी कवियों ने परंपराओं को तोड़ा है |  निराला ने काव्य में ‘मुक्त छंद’   की नींव रखी | फिर भी गेयता इन कवियों की कविताओं की प्रमुख विशेषता रही है |  रहस्यवादी भावना के कारण किन कवियों की कविताओं में प्रतीकात्मकता व सांकेतिकता मिलती है | इन कवियों ने शब्दालंकार अर्थालंकार दोनों प्रकार के अलंकारों का प्रयोग किया है | इन कवियों ने अपने काव्य में अनुप्रास, यमक,  श्लेष, पुनरुक्ति,  रूपक,  उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक,  अतिशयोक्ति, मानवीकरण आदि  अलंकारों का सुंदर प्रयोग किया है |

◼️ निष्कर्षत:  कहा जा सकता है कि छायावाद आधुनिक हिंदी कविता का स्वर्ण युग था | छायावादी कवियों ने खड़ी बोली हिंदी को चरम उत्कर्ष प्रदान किया | हिंदी कविता को नई प्रतिष्ठा मिली  | प्रसाद,  पंत, निराला,  महादेवी वर्मा जैसे महान कवियों ने इस काल में हिंदी कविता को नए आयाम प्रदान किए |  इस काल की कविता को पढ़कर पहली बार लोगों ने माना कि खड़ी बोली का माधुर्य ब्रज या अवधी से कम नहीं है | आधुनिक काल का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य ‘कामायनी’ इसी काल की देन है |

Other Related Posts

भारतेंदु हरिश्चंद्र के नाटक ( Bhartendu Harishchandra Ke Natak )

द्विवेदी युग : समय-सीमा, प्रमुख कवि तथा प्रवृत्तियाँ ( Dvivedi Yug : Samay Seema, Pramukh Kavi V Pravrittiyan )

प्रगतिवाद : अर्थ, आरम्भ, प्रमुख कवि व प्रवृतियां ( Pragativad : Arth, Aarambh, Pramukh Kavi V Pravritiyan )

प्रयोगवादी कविता ( नई कविता ) की सामान्य प्रवृतियां ( Prayogvadi kaviata / Nai Kavita Ki Samanya Pravrittiyan )

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का साहित्यिक परिचय

जयशंकर प्रसाद का साहित्यिक परिचय ( Jaishankar Prasad Ka Sahityik Parichay )

आँसू ( Aansu ) : जयशंकर प्रसाद

वे आँखें : सुमित्रानंदन पंत ( Ve Aankhen : Sumitranandan Pant )

दुख की बदली ( Dukh Ki Badli ) : महादेवी वर्मा

8 thoughts on “छायावाद : अर्थ, परिभाषा व प्रवृत्तियां ( Chhayavad : Arth, Paribhasha V Pravrittiyan )”

  • Pingback: हिंदी-साहित्य के आधुनिक काल की परिस्थितियां ( Hindi Sahitya Ke Adhunik Kal Ki Paristhitiyon ) – Dr. Charan's Competition Platform
  • Pingback: प्रयोगवादी कविता ( नई कविता ) की सामान्य प्रवृतियां ( Prayogvadi kaviata / Nai Kavita Ki Samanya Pravrittiyan ) – Dr. Charan's Competition Platform
  • Pingback: प्रगतिवाद : अर्थ, आरम्भ, प्रमुख कवि व प्रवृतियां ( Pragativad : Arth, Aarambh, Pramukh Kavi V Pravritiyan ) – Dr. Charan's Competition Platform
  • Pingback: प्रगतिवाद : अर्थ, आरम्भ, प्रमुख कवि व प्रवृतियां
  • Pingback: प्रयोगवादी कविता या नई कविता
  • Pingback: यू जी सी नेट - हिंदी ( दिसंबर - 2006)
  • Pingback: महत्त्वपूर्ण प्रश्न ( बी ए पंचम सेमेस्टर - हिंदी ) - Dr. Charan's Competition Platform
  • Pingback: भारतेन्दु युग : प्रमुख कवि व विशेषताएँ ( Bhartendu Yug : Pramukh Kavi V Visheshtayen ) - Dr. Charan's Competition Platform

Leave a Comment Cancel reply

Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.

presentation se kya abhipray hai

जैव विविधता के महत्व, कारण और संरक्षण | Biodiversity Conservation in Hindi

presentation se kya abhipray hai

दुनिया में कुल कितनी प्रजातियाँ हैं यह ज्ञात से परे है, लेकिन एक अनुमान के अनुसार इनकी संख्या 30 लाख से 10 करोड़ के बीच है। विश्व में 14,35,662 प्रजातियों की पहचान की गयी है। यद्यपि बहुत सी प्रजातियों की पहचान अभी भी होना बाकी है। पहचानी गई मुख्य प्रजातियों में 7,51,000 प्रजातियाँ कीटों की, 2,48,000 पौधों की, 2,81,000 जन्तुओं की, 68,000 कवकों की, 26,000 शैवालों की, 4,800 जीवाणुओं की तथा 1,000 विषाणुओं की हैं। पारितंत्रों के क्षय के कारण लगभग 27,000 प्रजातियाँ प्रतिवर्ष विलुप्त हो रही हैं। इनमें से ज्यादातर ऊष्णकटिबंधीय छोटे जीव हैं। अगर जैव-विविधता क्षरण की वर्तमान दर कायम रही तो विश्व की एक-चौथाई प्रजातियों का अस्तित्व सन 2050 तक समाप्त हो जायेगा। Abstract : Exactly how many species of life exists is not known to anybody. Estimate ranges from 3 million to 100 million. There are 14,35,662 identified species all over the world, however, a large number of species are still unidentified. They include 7,51,000 species of insects, 2,48,000 of flowering plants, 2,81,000 of animals, 68,000 of fungi, 26,000 of algae, 4,800 of bacteria and 1,000 of viruses. Approximately 27,000 species become extinct every year due to loss of ecosystems. Majority of them are small tropical organisms. If this trend of bio-diversity depletion continues, 25 percent of the world’s species may vanish by the year 2050. 1. परिचय- जैव-विविधता (जैविक-विविधता) जीवों के बीच पायी जाने वाली विभिन्नता है जोकि प्रजातियों में, प्रजातियों के बीच और उनकी पारितंत्रों की विविधता को भी समाहित करती है। जैव-विविधता शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम वाल्टर जी. रासन ने 1985 में किया था। जैव-विविधता तीन प्रकार की हैं। (i) आनुवंशिक विविधता, (ii) प्रजातीय विविधता; तथा (iii) पारितंत्र विविधता। प्रजातियों में पायी जाने वाली आनुवंशिक विभिन्नता को आनुवंशिक विविधता के नाम से जाना जाता है। यह आनुवंशिक विविधता जीवों के विभिन्न आवासों में विभिन्न प्रकार के अनुकूलन का परिणाम होती है। प्रजातियों में पायी जाने वाली विभिन्नता को प्रजातीय विविधता के नाम से जाना जाता है। किसी भी विशेष समुदाय अथवा पारितंत्र (इकोसिस्टम) के उचित कार्य के लिये प्रजातीय विविधता का होना अनिवार्य होता है। पारितंत्र विविधता पृथ्वी पर पायी जाने वाली पारितंत्रों में उस विभिन्नता को कहते हैं जिसमें प्रजातियों का निवास होता है। पारितंत्र विविधता विविध जैव-भौगोलिक क्षेत्रों जैसे- झील, मरुस्थल, ज्वारनद्मुख आदि में प्रतिबिम्बित होती है।

ये भी पढ़े :-    जलवायु परिवर्तन के कारक

2. जैव-विविधता का महत्त्व- जैव-विविधता का मानव जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान है। जैव-विविधता के बिना पृथ्वी पर मानव जीवन असंभव है। जैव-विविधता के विभिन्न लाभ निम्नलिखित हैं- 1. जैव-विविधता भोजन, कपड़ा, लकड़ी, ईंधन तथा चारा की आवश्यकताओं की पूर्ति करती है। विभिन्न प्रकार की फसलें जैसे गेहूँ (ट्रिटिकम एस्टिवम), धान (ओराइजा सेटाइवा), जौ (हारडियम वलगेयर), मक्का (जिया मेज), ज्वार (सोरघम वलगेयर), बाजरा (पेनिसिटम टाईफाइडिस), रागी (इल्यूसिन कोरकेना), अरहर (कैजनस कैजान), चना (साइसर एरियन्टिनम), मसूर (लेन्स कुलिनेरिस) आदि से हमारी भोजन की आवश्यकताओं की पूर्ति होती है जबकि कपास (गासिपियम हरसुटम) जैसी फसल हमारे कपड़े की आवश्यकताओं की पूर्ति करती है। सागवान (टेक्टोना ग्रान्डिस), साल (शोरिया रोबस्टा), शीशम (डेलवर्जिया सिसू) आदि जैसे वृक्षों की प्रजातियाँ निर्माण कार्यों हेतु लकड़ी की आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं। बबूल (अकेसिया नाइलोटिका), शिरीष (एल्बिजिया लिबेक), सफेद शिरीष (एल्बिजिया प्रोसेरा), जामुन (साइजिजियम क्यूमिनाई), खेजरी (प्रोसोपिस सिनेरेरिया), हल्दू (हेल्डिना कार्डिफोलिया), करंज (पानगैमिया पिन्नेटा) आदि वृक्षों की प्रजातियों से हमारी ईंधन संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति होती है जबकि शिरीष (एल्बिजिया लिबेक),घमार (मेलाइना आरबोरिया), सहजन (मोरिंगा आलिफेरा), शहतूत (मोरस अल्बा), बेर (जिजिफस जुजुबा), बबूल (अकेसिया नाइलोटिका), करंज (पानगैमिया पिन्नेटा), नीम (एजाडिराक्टा इण्डिका) आदि वृक्षों की प्रजातियों से पशुओं के लिये चारा संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। 2. जैव-विविधता कृषि पैदावार बढ़ाने के साथ-साथ रोगरोधी तथा कीटरोधी फसलों की किस्मों के विकास में सहायक होती हैं। हरित क्रांति के लिये उत्तरदायी गेहूँ की बौनी किस्मों का विकास जापान में पाये जाने वाली नारीन-10 नामक गेहूँ की प्रजाति की मदद से किया गया था। इसी प्रकार धान की बौनी किस्मों का विकास ताइवान में पाये जाने वाली डी-जिओ-ऊ-जेन नामक धान की प्रजाति से किया गया था। सन 1970 के प्रारम्भिक वर्षों में विषाणु के संक्रमण से होने वाली धान की ग्रासी स्टन्ट नामक बीमारी के कारण एशिया महाद्वीप में 1,60,000 हेक्टेयर से भी ज्यादा फसल को नुकसान पहुँचाया था। धान की जातियों में इस बीमारी के प्रति प्रतिरोधी क्षमता विकसित करने हेतु मध्य भारत में पायी जाने वाली जंगली धान की प्रजाति ओराइजा निभरा का उपयोग किया गया था। आई आर 36 नामक विश्व प्रसिद्ध धान की जाति के भी विकास में ओराइजा निभरा का उपयोग किया गया है। 3. वानस्पतिक जैव-विविधता औषधीय आवश्यकताओं की पूर्ति भी करती है। एक अनुमान के अनुसार आज लगभग 30 प्रतिशत उपलब्ध औषधियों को उष्णकटिबंधीय वनस्पतियों से प्राप्त किया जाता है। उष्णकटिबंधीय शाकीय वनस्पति सदाबहार (कैथरेन्थस रोसियस) विनक्रिस्टीन तथा विनव्लास्टीन नामक क्षारों का स्रोत होता है जिनका उपयोग रक्त कैंसर के उपचार में होता है। सर्पगंधा (राओल्फिया सरपेन्टीना) पादप रेसर्पीन नामक महत्त्वपूर्ण क्षार का स्रोत होता है जिसका उपयोग उच्च-रक्तचाप के उपचार में किया जाता है। गुग्ल (कामीफेरा बिटाई) नामक पौधे से प्राप्त गोंद का उपयोग गठिया के इलाज में किया जाता है। सिनकोना (सिनकोना कैलिसिया) वृक्ष की छाल से प्राप्त कुनैन नामक क्षार का उपयोग मलेरिया ज्वर के उपचार में किया जाता है। इसी प्रकार आर्टिमिसिया एनुआ नामक पौधे से प्राप्त आर्टिमिसिनीन नामक रसायन का उपयोग मस्तिष्क मलेरिया के उपचार में होता है। जंगली रतालू (डायसकोरिया डेल्टाइडिस) से प्राप्त डायसजेनीन नामक रसायन का उपयोग स्त्री गर्भनिरोधक के रूप में होता है।

संबधित लेख भी पढ़े:-  रिसर्च : जैव विविधता पर संकट

    4. जैव-विविधता पर्यावरण प्रदूषण के निस्तारण में सहायक होती है। प्रदूषकों का विघटन तथा उनका अवशोषण कुछ पौधों की विशेषता होती है। सदाबहार (कैथरेन्थस रोसियस) नामक पौधे में ट्राइनाइट्रोटालुइन जैसे घातक विस्फोटक को विघटित करने की क्षमता होती है। सूक्ष्म-जीवों की विभिन्न प्रजातियाँ जहरीले बेकार पदार्थों के साफ-सफाई में सहायक होती हैं। सूक्ष्म-जीवों की स्यूडोमोनास प्यूटिडा तथा आर्थोबैक्टर विस्कोसा में औद्योगिक अपशिष्ट से विभिन्न प्रकार के भारी धातुओं को हटाने की क्षमता होती है। पौधों की कुछ प्रजातियों में मृदा से भरी धातुओं जैसे कॉपर, कैडमियम, मरकरी, क्रोमियम के अवशोषण तथा संचयन की क्षमता पायी जाती है। इन पौधों का उपयोग भारी धातुओं के निस्तारण में किया जा सकता है। भारतीय सरसों (ब्रैसिका जूनसिया) में मृदा से क्रोमियम तथा कैडमियम के अवशोषण की क्षमता पायी जाती है। जलीय पौधे जैसे जलकुम्भी (आइकार्निया कैसपीज), लैम्ना, साल्विनिया तथा एजोला का उपयोग जल में मौजूद भारी धातुओं (कॉपर, कैडमियम, आयरन एवं मरकरी) के निस्तारण में होता है। 5. जैव-विविधता में संपन्न वन पारितंत्र कार्बन डाइऑक्साइड के प्रमुख अवशोषक होते हैं। कार्बन डाइऑक्साइड हरित गृह गैस है जो वैश्विक तपन के लिये उत्तरदायी है। उष्णकटिबंधीय वनविनाश के कारण आज वैश्विक तापमान में निरंतर वृद्धि हो रही है जिसके कारण भविष्य में वैश्विक जलवायु के अव्यवस्थित होने का खतरा दिनोंदिन बढ़ रहा है। 6. जैव-विविधत मृदा निर्माण के साथ-साथ उसके संरक्षण में भी सहायक होती है। जैव-विविधता मृदा संरचना को सुधारती है, जल-धारण क्षमता एवं पोषक तत्वों की मात्रा को बढ़ाती है। जैव-विविधता जल संरक्षण में भी सहायक होती है क्योंकि यह जलीय चक्र को गतिमान रखती है। वानस्पतिक जैव-विविधता, भूमि में जल रिसाव को बढ़ावा देती है जिससे भूमिगत जलस्तर बना रहता है। 7. जैव-विविधता पोषक चक्र को गतिमान रखने में सहायक होती है। वह पोषक तत्वों की मुख्य अवशोषक तथा स्रोत होती है। मृदा की सूक्ष्मजीवी विविधता पौधों के मृत भाग तथा मृत जन्तुओं को विघटित कर पोषक तत्वों को मृदा में मुक्त कर देती है जिससे यह पोषक तत्व पुनः पौधों को प्राप्त होते हैं। 8. जैव-विविधता पारितंत्र को स्थिरता प्रदान कर पारिस्थितिक संतुलन को बरकरार रखती है। पौधे तथा जन्तु एक दूसरे से खाद्य शृंखला तथा खाद्य जाल द्वारा जुड़े होते हैं। एक प्रजाति की विलुप्ति दूसरे के जीवन को प्रभावित करती है। इस प्रकार पारितंत्र कमजोर हो जाता है। 9. पौधे शाकभक्षी जानवरों के भोजन के स्रोत होते हैं जबकि जानवरों का मांस मनुष्य के लिये प्रोटीन का महत्त्वपूर्ण स्रोत होता है। 10. समुद्र के किनारे खड़ी जैव-विविधता संपन्न ज्वारीय वन (मैंग्रोव वन) प्राकृतिक आपदाओं जैसे समुद्री तूफान तथा सुनामी के खिलाफ ढाल का काम करते हैं। 11. जैव-विविधता विभिन्न सामाजिक लाभ भी हैं। प्रकृति, अध्ययन के लिये सबसे उत्तम प्रयोगशाला है। शोध, शिक्षा तथा प्रसार कार्यों का विकास, प्रकृति एवं उसकी जैव-विविधता की मदद से ही संभव है। इस बात को साबित करने के लिये तमाम साक्ष्य हैं कि मानव संस्कृति तथा पर्यावरण का विकास साथ-साथ हुआ है। अतः सांस्कृतिक पहचान के लिये जैव-विविधता का होना अति आवश्यक है। 12. जैविक रूप से संपन्न वन पारितंत्र, वन्य-जीवों तथा आदिवासियों का घर होता है। आदिवासियों की संपूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति वनों द्वारा होती है। वनों के क्षय से न सिर्फ आदिवासी संस्कृति प्रभावित होगी अपितु वन्य-जीवन भी प्रभावित होगा।

संबधित लेख भी पढ़े:-    जीवित हुए जलस्रोत, तो जी उठी जैव विविधता 3. जैव-विविधता का क्षरण - पृथ्वी पर जैविक संसाधनों के क्षय को जैव विविधता क्षरण के नाम से जाना जाता है। पृथ्वी का जैविक धन जैव-विविधता लगभग 400 करोड़ वर्षों के विकास का परिणाम है। इस जैविक धन के निरंतर क्षय ने मनुष्य के अस्तित्व के लिये गम्भीर खतरा पैदा कर दिया है। दुनिया के विकासशील देशों में जैव-विविधता क्षरण चिन्ता का विषय है। एशिया, मध्य अमेरिका, दक्षिण अमेरिका तथा अफ्रीका के देश जैव-विविधता संपन्न हैं जहाँ तमाम प्रकार के पौधों तथा जन्तुओं की प्रजातियाँ पायी जाती हैं। विडम्बना यह है कि अशिक्षा, गरीबी, वैज्ञानिक विकास का अभाव, जनसंख्या विस्फोट आदि ऐसे कारण हैं जो इन देशों में जैव-विविधता क्षरण के लिये जिम्मेदार हैं। दुनिया में कुल कितनी प्रजातियाँ हैं यह ज्ञात से परे है लेकिन एक अनुमान के अनुसार इनकी संख्या 30 लाख से 10 करोड़ के बीच है। दुनिया में 14,35,662 प्रजातियों की पहचान की गयी है। हालाँकि बहुत सी प्रजातियों की पहचान अभी भी होना बाकी है। पहचानी गई मुख्य प्रजातियों में 7,51,000 प्रजातियाँ कीटों की, 2,48,000 पौधों की, 2,81,000 जन्तुओं की, 68,000 कवकों की 26,000 शैवालों की, 4,800 जीवाणुओं की तथा 1,000 विषाणुओं की हैं। पारितंत्रों के क्षय के कारण लगभग 27,000 प्रजातियाँ प्रतिवर्ष विलुप्त हो रही हैं। इनमें से ज्यादातर उष्णकटिबंधीय छोटे जीव हैं। अगर जैव-विविधता क्षरण की वर्तमान दर कायम रही तो विश्व की एक-चौथाई प्रजातियों का अस्तित्व सन 2050 तक समाप्त हो जायेगा। पृथ्वी के पूर्व के 50 करोड़ वर्ष के इतिहास में छः बड़ी विलुप्ति लहरों ने पहले ही दुनिया की बहुत सी प्रजातियों को समाप्त कर दिया जिनमें छिपकली परिवार के विशालकाय डायनासोर भी शामिल हैं। विलुप्ति लहरों के क्रमवार काल में पहला आर्डोविसियन काल (50 करोड़ वर्ष पूर्व), दूसरा डेवोनियन काल (40 करोड़ वर्ष पूर्व), तीसरा परमियन काल (25 करोड़ वर्ष पूर्व), चौथा ट्रायसिक काल (18 करोड़ वर्ष पूर्व) है। पाँचवा क्रिटेसियस काल (6.5 करोड़ वर्ष पूर्व), छठवां प्लाइस्टोसीन काल (10 लाख वर्ष पूर्व) था। जुरासिक काल में पृथ्वी पर राज करने वाले विशाल जीव डायनासोर क्रिटेसियस काल में ही इस पृथ्वी से विलुप्त हो गये। विलुप्ति की छठवीं लहर में विशाल स्तनधारियों एवं पक्षियों की बहुत सी प्रजातियों का पृथ्वी से पतन हो गया। उक्त सभी छः विलुप्ति लहरों का प्रमुख कारण प्राकृतिक था जबकि सातवीं विलुप्ति का वर्तमान दौर मानव की विध्वंसक गतिविधियाँ हैं। उष्णकटिबंधीय वर्षा वन, जैव विविधता संपन्न होते हैं जिन्हें ‘पृथ्वी का फेफड़ा’ कहा जाता है क्योंकि ये ऑक्सीजन के प्रमुख उत्सर्जक तथा कार्बन डाइऑक्साइड के अवशोषक होते हैं। इनका विस्तार पृथ्वी की कुल 7 प्रतिशत भौगोलिक भूमि पर है। दुनिया की कुल 50 प्रतिशत पहचानी गई प्रजातियाँ इन्हीं वनों में पायी जाती हैं। चूँकि ज्यादातर वर्षा वन दुनिया के विकासशील देशों में पाये जाते हैं इसलिये जनसंख्या विस्फोट इन वनों के विनाश का प्रमुख कारण है। समय रहते अगर संरक्षण को नहीं अपनाया गया तो बहुत जल्द इनमें 90 प्रतिशत आवासों का विनाश होगा परिणामस्वरूप 15,000 से 50,000 प्रजातियों की क्षति प्रतिवर्ष होगी। उष्णकटिबंधीय वनविनाश आने वाले अगले 50 वर्षों में जैव-विविधता क्षरण का प्रमुख कारण होगा।

संबधित लेख भी पढ़े:-    कैसे होगा जैव विविधता का विकास और संरक्षण ? संपूर्ण विश्व में पौधों की लगभग 60,000 प्रजातियाँ तथा जन्तुओं की 2,000 प्रजातियाँ विलुप्ति के कगार पर खड़ी हैं। यद्यपि इसमें से ज्यादातर प्रजातियाँ पौधों की हैं पर इसमें कुछ प्रजातियाँ जन्तुओं की भी हैं। इनमें मछलियाँ (343), जलथलचारी (50), सरीसृप (170), अकेशरुकी (1,355), पक्षियाँ (1,037) तथा स्तनपायी (497) शामिल हैं। जीन कोष से जीन के क्षति को आनुवंशिक क्षरण कहते हैं जिससे पृथ्वी के आनुवंशिक संसाधनों में कमी होती है। पिछली सदी, फसलों में 75 प्रतिशत आनुवंशिक विविधता की क्षति की गवाह रही है। पिछली सदी के अंत तक अधिक पैदावार देने वाली किस्मों ने गेहूँ तथा धान की खेती वाले क्षेत्रों के 50 प्रतिशत क्षेत्रफल पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था। आनुवंशिक क्षरण के निम्नलिखित दो प्रमुख कारण हैं- 1. फसल संख्या- पूर्व में अधिक संख्या में पौधों का उपयोग विभिन्न कार्यों हेतु होता था लेकिन धीरे-धीरे इन पौधों की संख्या में गिरावट आयी। उदाहरण के लिये 3,000 भोजन पौधों की प्रजातियों में केवल 150 का वाणिज्यीकरण हुआ। कृषि में 12 प्रजातियों का प्रभुत्व है जिनमें 4 फसलों की प्रजातियाँ कुल पैदावार का 50 प्रतिशत पैदा करती हैं। (धान, गेहूँ मक्का एवं आलू)। 2. फसलों के प्रकार - आज एक ही प्रकार की फसल में ज्यादा से ज्यादा अच्छे गुणों को समावेश करने का चलन है। जैसे ही नई प्रकार की फसल विकसित होती है उसका बड़े पैमाने पर उपयोग होता है परिणामस्वरूप स्थानीय देसी किस्मों का प्रयोग बन्द हो जाता है जिससे स्थानीय प्रजातियाँ विलुप्त हो जाती हैं। आनुवंशिक क्षरण गंभीर चिन्ता का विषय है क्योंकि यह भविष्य में फसलों के सुधार कार्यक्रम को प्रभावित करेगा। फसलों की स्थानीय तथा पारंपरिक प्रजातियों में उपयोगी गुण होते हैं जिनका उपयोग फसलों की वर्तमान प्रजातियों के विकास में किया जा सकता है। इसलिये फसलों की विविधता को बनाए रखना अति आवश्यक है। आनुवंशिक क्षरण गंभीर चिन्ता का विषय है क्योंकि इसका प्रत्यक्ष प्रभाव फसल प्रजनन कार्यक्रम पर पड़ेगा। फसलों की पारंपरिक किस्में तथा उनकी जंगली प्रजातियों में बहुत से उपयोगी जींस होते हैं जिनका उपयोग फसलों की वर्तमान किस्मों के सुधार में किया जा सकता है। 4. जैव-विविधता क्षरण के कारण - जैव-विविधता क्षरण के विभिन्न कारण हैं जिनमें आवास विनाश, आवास विखण्डन, पर्यावरण प्रदूषण, विदेशी मूल के पौधों का आक्रमण, अति-शोषण, वन्य-जीवों का शिकार, वनविनाश, अति-चराई, बीमारी, चिड़ियाघर तथा शोध हेतु प्रजातियों का उपयोग नाशीजीवों तथा परभक्षियों का नियंत्रण, प्रतियोगी अथवा परभक्षी प्रजातियों का प्रवेश प्रमुख है-

संबधित लेख भी पढ़े:-   राजाजी टाइगर रिजर्व: हिमालय की तलहटी में एक अद्वितीय जैव विविधता का भंडार  

1. आवास विनाश- मानव जनसंख्या वृद्धि एवं मानव गतिविधियाँ आवास विनाश का प्रमुख कारण हैं। आवास की क्षति वर्तमान में अकशेरुकी जीवों के विलुप्ति का एक प्रमुख कारण है। बहुत से देशों में विशेषकर द्वीपों पर जब मानव जनसंख्या घनत्व में वृद्धि होती है तो अधिकतर प्राकृतिक आवास नष्ट हो जाते हैं। दुनिया के 61 में से 41 प्राचीन विश्व उष्णकटिबंधीय देशों में 50 प्रतिशत से ज्यादा वन्य-जीवों के आवास नष्ट हो चुके हैं। ज्यादातर स्थितियों में आवास विनाश के प्रमुख कारक औद्योगिक तथा वाणिज्यिक गतिविधियाँ हैं जिनका संबंध वैश्विक अर्थव्यवस्स्था जैसे- खनन, पशु पालन, कृषि, वानिकी, बहुउद्देश्यीय परियोजनाओं की स्थापना आदि से है। वर्षा वन, उष्णकटिबंधीय शुष्क वन, नमभूमियाँ, ज्वारीय वन तथा घास के मैदान जोखिमग्रस्त आवास हैं। 2. आवास विखण्डन - आवास विखण्डन वह प्रक्रिया है जिसमें एक विशाल क्षेत्र का आवास क्षेत्रफल कम हो जाता है और प्रायः दो या अधिक टुकड़ों में बंट जाता है। जब आवास नष्ट हो जाता है तो टुकड़े बहुधा एक दूसरे से अलग-अलग क्षरित अवस्था में प्रकट होते हैं। आवास विखण्डन प्रजातियों के विस्तार तथा स्थापना को सीमित कर देता है, जिससे जैव विविधता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। 3. पर्यावरण प्रदूषण - बढ़ता पर्यावरण प्रदूषण जैव-विविधता क्षरण का एक प्रमुख कारण बनता जा रहा है। नाशिजीवनाशक (पेस्टीसाइड), औद्योगिक रसायन तथा अपशिष्ट आदि पर्यावरण प्रदूषण के लिये मुख्यतः उत्तरदायी हैं। नाशिजीवनाशक प्रदूषण के परिणामस्वरूप मृदा के सूक्ष्मजीवी वनस्पतियों तथा जन्तुओं की मृत्यु हो जाती है। इसके अतिरिक्त जल वर्षा के बहाव से जब नाशिजीवनाशक जलस्रोतों में पहुँचते हैं तो वहाँ भी सूक्ष्मजीवी वनस्पतियों तथा जंतुओं को मार देते हैं। परिणामस्वरूप जैव-विविधता का क्षय होता है। नाशिजीवनाशक डी.डी.टी. (डाईक्लोरो डाईफिनाइल ट्राईक्लोरोइथेन) पक्षियों की गिरती आबादी का एक प्रमुख कारण हैं। डी.डी.टी. खाद्य शृंखला के माध्यम से पक्षियों के शरीर में पहुँचता है जहाँ वह इसट्रोजेन नामक हार्मोन की गतिविधि को प्रभावित करता है जिससे अण्डे की खोल कमजोर हो जाती है, परिणामस्वरूप अण्डा समय से पहले फूट जाता है जिससे भ्रूण की मृत्यु हो जाती है। अम्ल वर्षा के कारण नदियों तथा झीलों का अम्लीकरण जलीय जीवों के लिये एक प्रमुख खतरा बनता जा रहा है। 4. विदेशी मूल की वनस्पतियों का आक्रमण - विदेशी मूल की वनस्पतियों के आक्रमण के परिणामस्वरूप जैव विविधता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है इसलिये इन्हें ‘जैविक प्रदूषक’ की संज्ञा दी जाती है। सफल विदेशी मूल की वनस्पति की प्रजाति देसी प्रजातियों को विस्थापित कर उन्हें विलुप्ति के स्तर तक पहुँचा देती हैं। इसके अतिरिक्त वह आवास पर विपरीत प्रभाव डालकर देसी प्रजाति के अस्तित्व के लिये खतरा पैदा कर देती है। भारत में बहुत से विदेशी मूल की वनस्पतियाँ जैसे गाजर घास (पार्थिनियम हिट्रोफोरस), कुर्री (लैंटाना कमरा), काबुली कीकर (प्रोसोपिस जूलिफ्लोरा) आदि जैव-विविधता क्षरण के प्रमुख कारण साबित हो रहे हैं।

संबधित लेख भी पढ़े:-   जैव विविधता क्षेत्रों में छेड़छाड़ से नए संक्रमण का खतरा 

5. अतिशोषण - बढ़ती मनव जनसंख्या के कारण जैविक संसाधनों का दोहन भी बढ़ा है। संसाधनों का उपयोग तब ज्यादा बढ़ जाता है जब पूर्व में उपयोग नहीं हुई अथवा स्थानीय उपयोग वाली प्रजाति के लिये वाणिज्यिक बाजार विकसित हो जाता है। अतिशोषण दुनिया के लगभग एक-तिहाई लुप्तप्राय कशेरुकी जीवों के लिये प्रमुख खतरा हैं। बढ़ती ग्रामीण बेरोजगारी, उन्नत शोषण विधियों का विकास तथा अर्थव्यवस्था के वैश्वीकरण ने बहुत सी प्रजातियों को विलुप्ति के शीर्ष पर पहुँचा दिया है। अगर प्रजाति पूरी तरह से समाप्त नहीं होती है तो भी उसकी जनसंख्या उस स्तर तक घट जाती है जहाँ से वह अपना पुनरुत्थान करने में अक्षम होती है। 6. शिकार - जन्तुओं का शिकार आमतौर से दांत, सींग, खाल, कस्तूरी आदि े लिये किया जाता है। अंधाधुंध शिकार के कारण जानवरों की बहुत सी प्रजातियाँ लुप्तप्राय जन्तुओं की श्रेणी में पहुँच चुकी है। असम राज्य में एक सींग वाले गैण्डे की जनसंख्या में अभूतपूर्व गिरावट दर्ज की गयी है क्योंकि इसका शिकार इसकी सींग के लिये किया जाता है जिसका उपयोग कामोत्तेजक दवाओं के निर्माण में होता है। इसी प्रकार पूर्वोत्तर राज्यों विशेषकर मणिपुर में चीरू नामक जानवर का शिकार उसकी खाल के लिये किया जाता है जिससे शाहतूस शाल का निर्माण होता है। बाघ, तेन्दुआ, चिंकारा, अजगर, कृष्ण मृग तथा मगरमच्छ का शिकार भी खाल के लिये किया जाता है। हाथियों का शिकार दाँत के लिये किया जाता है जबकि बारहसिंगा का शिकार सींग के लिये किया जाता है। कस्तूरी मृग का शिकार कस्तूरी के लिये किया जाता है। 7. वन विनाश - विकास कार्यों तथा कृषि के विस्तार के कारण उष्णकटिबंधीय देशों में जंगलों को बड़े पैमाने पर नष्ट किया गया है जिसके परिणामस्वरूप उष्णकटिबंधीय वनों में जैव-विविधता का क्षरण हुआ है। उष्णकटिबंधीय देशों में आदिवासियों द्वारा की जाने वाली झूम कृषि (स्थानान्तरी कृषि) भी जैव-विविधता क्षरण का एक प्रमुख कारण रही है। भारत के आदिवासी बहुत पूर्वोत्तर राज्यों में झूम कृषि के कारण वनों के क्षेत्रफल में अभूतपूर्व गिरावट दर्ज की गयी है। 8. अति-चराई - शुष्क तथा अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में चराई जैव-विविधता क्षरण का एक प्रमुख कारण है। भेड़ों, बकरियों तथा अन्य शाकभक्षी पशुओं द्वारा चराई के कारण पौधों की प्रजातियों को नुकसान पहुँचता है। अति-चराई के कारण पौधों का प्रकाश-संश्लेषण वाला भाग नष्ट हो जाता है जिससे पौधों की मृत्यु हो जाती है। बहुत सी कमजोर प्रजातियाँ शाकभक्षी पशुओं द्वारा कुचल दी जाती हैं। भारी चराई, प्रजाति को समुदाय से नष्ट कर देती है। 9. बीमारी - मानव गतिविधियाँ वन्य-जीवों की प्रजातियों में बीमारियों को बढ़ावा देती हैं। जब कोई जानवर एक प्राकृतिक संरक्षित क्षेत्र तक सीमित होता है तब उसमें बीमारी के प्रकोप की संभावना ज्यादा होती है। दबाव में जानवर बीमारी के प्रति काफी संवेदनशील होते हैं। ठीक इसी प्रकार मनुष्य की कैद में वन्य-जीव बीमारियों के प्रति अत्यन्त ही संवेदनशील होते हैं। 10. चिड़ियाघर तथा शोध हेतु प्रजातियों का उपयोग- चिकित्सा शोध, वैज्ञानिक शोध तथा चिड़ियाघर के लिये कुछ विशिष्ट जानवरों को प्राकृतिक वास से पकड़ना प्रजाति के लिये खतरनाक साबित होता है क्योंकि इससे इनकी जनसंख्या में गिरावट होने की संभावना रहती है जिससे ये जानवर विलुप्ति के कगार पर पहुँच सकते हैं। चिकित्सा शोध महत्त्वपूर्ण क्रिया है लेकिन यह संकटग्रस्त जंगली प्राइमट्स जैसे गुरिल्ला, चिम्पांजी तथा ओरांगुटान के लिये खतरनाक है। 11. नाशीजीवों तथा परभक्षियों का नियन्त्रण - फसलों तथा पशुओं का नाशीजीवों तथा परभक्षियों से सुरक्षा ने भी बहुत से प्रजातियों को विलुप्ति के कगार पर पहुँचा दिया है। विष के प्रयोग से एक विशेष प्रजाति को नष्ट करने के प्रयास में कभी-कभी उस प्रजाति के परभक्षी भी विष के शिकार हो जाते हैं जिससे पारितंत्र में खाद्य शृंखला अव्यवस्थित हो जाती है और नियंत्रित प्रजाति नाशीजीव (पेस्ट) का रूप धारण कर जैव-विविधता को क्षति पहुँचाती है। 12. प्रतियोगी अथवा परभक्षी प्रजातियों का प्रवेश - प्रवेश कराई गयी प्रजाति दूसरी प्रजातियों को उनके शिकार, भोजन के लिये प्रतियोगिता, आवास को नष्टकर अथवा पारिस्थितिक संतुलन को अव्यवस्थित कर उन्हें प्रभावित कर सकती है। उदाहरणस्वरूप हवाई द्वीप में वर्ष 1883 में गन्ने की फसल को बर्बाद कर रहे चूहों के नियंत्रण हेतु नेवलों को जानबूझकर प्रवेश कराया गया था जिसके फलस्वरूप बहुत से अन्य स्थानीय प्रजातियाँ भी प्रभावित हुई थी।

संबधित लेख भी पढ़े:- हिमालयी जैव विविधता पर खतरा है काली बासिंग

5. जैव-विविधता का संरक्षण - जैव विविधता संरक्षण का आशय जैविक संसाधनों के प्रबंधन से है जिससे उनके व्यापक उपयोग के साथ-साथ उनकी गुणवत्ता भी बनी रहे। चूँकि जैव-विविधता मानव सभ्यता के विकास की स्तम्भ है इसलिये इसका संरक्षण अति आवश्यक है। जैव-विविधता हमारे भोजन, कपड़ा, औषधीय, ईंधन आदि की आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। जैव-विविधता पारिस्थितिक संतुलन को बनाये रखने में सहायक होती है। इसके अतिरिक्त यह प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, सूखा आदि से राहत प्रदान करती है। वास्तव में जैव-विविधता प्रकृति की स्वभाविक संपत्ति है और इसका क्षय एक प्रकार से प्रकृति का क्षय है। अतः प्रकृति को नष्ट होने से बचाने के लिये जैव-विविधता को संरक्षण प्रदान करना समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है। 5. जोखिमग्रस्त प्रजातियाँ - मेस तथा स्टुअर्ट एवं अन्तरराष्ट्रीय प्रकृति एवं प्राकृतिक संसाधन संघ (आई.यू.सी.एन. 1994 डी) ने वनस्पतियों एवं जन्तुओं की कम होती प्रजातियों को संरक्षण हेतु निम्नलिखित श्रेणियों में बाँटा है- 1. असहाय प्रजाति - वे प्रजातियाँ जो कि संकटग्रस्त प्रजातियाँ बन सकती हैं अगर वर्तमान कारक का प्रकोप जारी रहा जो इनकी जनसंख्या के गिरावट के लिये जिम्मेदार है। भारत में भालू (स्लाथ बीयर) इसका उदाहरण है। 2. दुर्लभ प्रजाति - यह वे प्रजातियाँ होती हैं जिनकी संख्या कम होने के कारण उनकी विलुप्ति का खतरा बना रहता है। भारत में शेर (एशियाटिक लायन) इसका उदाहरण है। 3. अनिश्चित प्रजाति- वे प्रजातियाँ जिनकी विलुप्ति का खतरा है लेकिन कारण अज्ञात हैं। मेक्सिकन प्रेरी कुत्ता इसका उदाहरण है। 4. संकटग्रस्त प्रजाति - वे प्रजातियाँ जिनके विलुप्ति का निकट भविष्य में खतरा है। इन प्रजातियों की जनसंख्या गम्भीर स्तर तक घट चुकी है तथा इनके प्राकृतिक आवास भी बुरी तरह घट चुके हैं। गंगा डॉल्फिन तथा नीला ह्वेल इसके प्रमुख उदाहरण हैं। 5. गंभीर संकटग्रस्त प्रजाति - वे प्रजातियाँ जो निकट भविष्य में जंगली अवस्था में विलुप्त होने के खतरे का सामना कर रही हो। भारत में ग्रेट इण्डियन बस्टर्ड (सोहन चिड़िया) तथा गंगा शार्क इसके उदाहरण हैं। 6. विलुप्त प्रजाति - वे प्रजातियाँ जिनका अस्तित्व पृथ्वी से समाप्त हो चुका है। डाइनासोर तथा डोडो इसके प्रमुख उदाहरण हैं। 7. अपर्याप्त रूप से ज्ञात प्रजाति - वे प्रजातियाँ जो संभवतः किसी एक संरक्षण श्रेणी से संबद्ध होती हैं लेकिन अपर्याप्त जानकारी के अभाव में उन्हें किसी विशेष प्रजातीय श्रेणी में रखा गया है। 8. जंगली अवस्था में विलुप्त प्रजाति - वे प्रजातियाँ जो वर्तमान में खेती अथवा कैद में होने के कारण ही जीवित हैं। ये प्रजातियाँ अपने पूर्व के प्राकृतिक आवास से विलुप्त हो चुकी हैं। 9. संरक्षण आधारित प्रजाति - ये वे प्रजातियाँ होती हैं जो आवास आधारित संरक्षण कार्यक्रम पर निर्भर होती हैं। अगर संरक्षण कार्यक्रम रुक जाता है तो ये प्रजातियाँ पाँच वर्ष के भीतर किसी भी जोखिमग्रस्त श्रेणी के अंतर्गत आ सकती हैं। 10. लगभग जोखिमग्रस्त प्रजाति - ये वे प्रजातियाँ हैं जो दुर्लभ श्रेणी में पहुँचने के करीब होती हैं। 11. कम महत्त्व वाली प्रजाति - वे प्रजातियाँ, जो न तो गम्भीर संकटग्रस्त, संकटग्रस्त अथवा असहाय होती हैं न तो वह संरक्षण आधारित अथवा लगभग संकटग्रस्त के योग्य होती हैं। 12. आंकड़ों की अभाव वाली प्रजाति - वे प्रजातियाँ जिनके विषय में पर्याप्त आंकड़ों के अभाव के कारण इनको किसी श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। 13. अमूल्यांकित प्रजाति - वे प्रजातियाँ जिनका आकलन किसी भी मापदण्ड के अनुसार नहीं किया गया है।

संबधित लेख भी पढ़े:-  जैव-विविधता का खजाना पचमढ़ी बायोस्फीयर रिजर्व

विश्व संरक्षण रणनीति ने जैव-विविधता संरक्षण के लिये निम्नलिखित सुझाव दिये हैं- 1. उन प्रजातियों के संरक्षण का प्रयास होना चाहिए जो कि संकटग्रस्त हैं। 2. विलुप्ति पर रोक के लिये उचित योजना तथा प्रबंधन की आवश्यकता। 3. खाद्य फसलों, चारा पौधों, मवेशियों, जानवरों तथा उनके जंगली रिश्तेदारों को संरक्षित किया जाना चाहिए। 4. प्रत्येक देश की वन्य प्रजातियों के आवास को चिंहित कर उनकी सुरक्षा को सुनिश्चित करना चाहिए। 5. उन आवासों को सुरक्षा प्रदान करना चाहिए जहाँ प्रजातियाँ भोजन, प्रजनन तथा बच्चों का पालन-पोषण करती हैं। 6. जंगली पौधों तथा जन्तुओं के अन्तरराष्ट्रीय व्यापार पर नियंत्रण होना चाहिए। वनस्पतियों एवं जन्तुओं की प्रजातियों तथा उनके आवास को बचाने के लिये समयबद्ध कार्यक्रम को लागू करने की आवश्यकता है जिससे जैव-विविधता संरक्षण को बढ़ावा मिल सके। अतः संरक्षण की कार्ययोजना आवश्यक रूप से निम्नलिखित दिशा में होनी चाहिए- 1. द्वीपों सहित देश के विभिन्न क्षेत्रों में पाये जाने वाले जैविक संसाधनों को सूचीबद्ध करना। 2. संरक्षित क्षेत्र के जाल जैसे राष्ट्रीय पार्क, जैवमण्डल रिजर्व, अभ्यारण्य, जीन कोष आदि के माध्यम से जैव-विविधता का संरक्षण। 3. क्षरित आवास का प्राकृतिक अवस्था में पुनरुत्थान। 4. प्रजाति को किसी दूसरी जगह उगाकर उसे मानव दबाव से बचाना। 5. संरक्षित क्षेत्र बनने से विस्थापित आदिवासियों का पुनर्वास। 6. जैव-प्रौद्योगिकी तथा ऊतक संवर्धन की आधुनिक तकनीकों से लुप्तप्राय प्रजातियों का गुणन। 7. देसी आनुवंशिक विविधता संरक्षण हेतु घरेलू पौधों तथा जन्तुओं की प्रजातियों की सुरक्षा। 8. जोखिमग्रस्त प्रजातियों का पुनरुत्थान। 9. बिना विस्तृत जाँच के विदेशी मूल के पौधों के प्रवेश पर रोक। 10. एक ही प्रकार की प्रजाति का विस्तृत क्षेत्र पर रोपण को हतोत्साहन। 11. उचित कानून के जरिये प्रजातियों के अतिशोषण पर लगाम। 12. प्रजाति व्यापार संविदा के अंतर्गत अतिशोषण पर नियन्त्रण। 13. आनुवंशिक संसाधनों के संपोषित उपयोग तथा उचित कानून के द्वारा सुरक्षा। 14. संरक्षण में सहायक पारंपरिक ज्ञान तथा कौशल को प्रोत्साहन।

संबधित लेख भी पढ़े:-  जैव विविधता पर खतरा और विलुप्त होती मछलियाँ 5. जैव-विविधता संरक्षण की विधियाँ - जैव-विविधता संरक्षण की मुख्यतः दो विधियाँ होती हैं जिन्हें यथास्थल संरक्षण तथा बहिःस्थल संरक्षण के नाम से जाना जाता है। जो कि निम्नवत हैं- 1. यथास्थल संरक्षण - इस विधि के अंतर्गत प्रजाति का संरक्षण उसके प्राकृतिक आवास तथा मानव द्वारा निर्मित पारितंत्र में किया जाता है जहाँ वह पायी जाती है। इस विधि में विभिन्न श्रेणियों के सुरक्षित क्षेत्रों का प्रबंधन विभिन्न उद्देश्यों से समाज के लाभ हेतु किया जाता है। सुरक्षित क्षेत्रों में राष्ट्रीय पार्क, अभ्यारण्य तथा जैवमण्डल रिजर्व आदि प्रमुख हैं। राष्ट्रीय पार्क की स्थापना का मुख्य उद्देश्य वन्य-जीवन को संरक्षण प्रदान करना होता है जबकि अभ्यारण्य की स्थापना का उद्देश्य किसी विशेष वन्य-जीव की प्रजाति को संरक्षण प्रदान करना होता है। जैवमण्डल रिजर्व बहुउपयोगी संरक्षित क्षेत्र होता है जिसमें आनुवंशिक विविधता को उसके प्रतिनिधि पारितंत्र में वन्य-जीवन जनसंख्या, आदिवासियों की पारंपरिक जीवन शैली आदि को सुरक्षा प्रदान कर संरक्षित किया जाता है। भारत ने यथास्थल संरक्षण में उल्लेखनीय कार्य किया है। देश में कुल 89 राष्ट्रीय पार्क हैं जो 41 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल पर फैले हैं। जबकि देश में कुल 500 अभ्यारण्य हैं जो कि लगभग 120 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल पर फैले हैं। देश में कुल 17 जैवमण्डल रिजर्व हैं। नीलगिरि जैवमण्डल रिजर्व भारत का पहला जैवमण्डल रिजर्व था जिसकी स्थापना सन 1986 में की गयी थी। यूनेस्को ने भारत के सुन्दरवन रिजर्व, मन्नार की खाड़ी रिजर्व तथा अगस्थमलय जैवमण्डल रिजर्व को विश्व जैवमण्डल रिजर्व का दर्जा दिया है। 2. बहिःस्थल संरक्षण - यह संरक्षण कि वह विधि है जिसमें प्रजातियों का संरक्षण उनके प्राकृतिक आवास के बाहर जैसे वानस्पतिक वाटिकाओं जन्तुशालाओं, आनुवंशिक संसाधन केन्द्रों, संवर्धन संग्रह आदि स्थानों पर किया जाता है। इस विधि द्वारा पौधों का संरक्षण सुगमता से किया जा सकता है। इस विधि में बीज बैंक, वानस्पतिक वाटिका, ऊतक संवर्धन तथा आनुवंशिक अभियान्त्रिकी की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। जहाँ तक फसल आनुवंशिक संसाधन का संबंध है भारत ने बहिःस्थल संरक्षण में भी प्रसंशनीय कार्य किया है। जीन कोष में 34,000 से ज्यादा धान्य फसलों (गेहूँ, धान, मक्का, जौ एवं जई) तथा 22,000 दलहनी फसलों का संग्रह किया गया है जिन्हें भारत में उगाया जाता है। इसी तरह का कार्य पशुधन कुक्कुट पालन तथा मत्स्य पालन के भी क्षेत्र में किया गया है। 7. निष्कर्ष - मानव सभ्यता के विकास की धुरी जैव-विविधता मुख्यतः आवास विनाश, आवास विखण्डन, पर्यावरण प्रदूषण, विदेशी मूल के वनस्पतियों के आक्रमण, अतिशोषण, वन्य-जीवों का शिकार, वनविनाश, अति-चराई, बीमारी आदि के कारण खतरे में है। अतः पारिस्थितिक संतुलन, मनुष्य की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति एवं प्राकृतिक आपदाओं (बाढ़, सूखा, भू-स्खलन आदि) से मुक्ति के लिये जैव-विविधता का संरक्षण आज समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है।

संबधित लेख भी पढ़े:-  वास्तु शास्त्र भी बढ़ा रहा है दुर्लभ प्रजाति के कछुओं की तस्करी​​​​​​​

1. विल्सन, ई.ओ. एवं पिटर्स, एफ.एम. (1988) बायोडाइवर्सिटी (संपादित), नेशनल एकेडमी प्रेस, वाशिंगटन डी.सी.। 2. हेवुड, वी.एच. एवं वाटसन, आर.टी. (1995) ग्लोबल बायोडाइवर्सिटी असेस्मेन्ट (संपादित), यूनाइटेड नेशन इन्वायरन्मेण्ट प्रोग्राम, कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस, कैम्ब्रीज, यू.के.। 3. भरुचा, ई. (2005) टेक्स्टबुक ऑफ एनवायरनमेन्टल स्टडीज, यूनिवर्सिटी प्रेस प्राइवेट लिमिटेड, इण्डिया। 4. शर्मा, पी.डी. (2004) इकोलॉजी एण्ड एनवायरन्मेन्ट, रस्तोगी पब्लिकेशन्स, मेरठ, इण्डिया। 5. सिंह, ए. (2007) वोरहेविया डिफ्यूजा: एन ओवर-ऐक्सप्लॉयटेड प्लाण्ट ऑफ मेडिसिनल इमपॉरटेन्स इन रूरल एरियाज ऑफ ईस्टर्न उत्तर प्रदेश, करेण्ट साइन्स, खण्ड-93, अक-4. पृ. 446। 6. मेस, जी.एम. तथा स्टुअर्ट, एस. (1994), ड्राफ्ट आई यू सी एन रेड लिस्ट कटेगरीज, वरजन 2.2 स्पीसीज 21/22: मु.पृ. 13-14। 7. आई यू सी एन (1994 डी) आई यू सी एन रेड लिस्ट कटेगरीज, आई यू सी एन, इंग्लैण्ड।

संबधित लेख भी पढ़े:-  जैव विविधता पर टूटता कहर​​​​​​​

अरविन्द सिंह वनस्पति विज्ञान विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी 221005, उ.प्र. भारत, [email protected]; [email protected] प्राप्त तिथि-01.05.2016 स्वीकृत तिथि-02.09.2016

presentation se kya abhipray hai

Drishti IAS

  • मासिक मैगज़ीन
  • इंटरव्यू गाइडेंस
  • ऑनलाइन कोर्स
  • कक्षा कार्यक्रम
  • दृष्टि वेब स्टोर
  • नोट्स की सूची
  • नोट्स बनाएँ
  • माय प्रोफाइल
  • माय बुकमार्क्स
  • माय प्रोग्रेस
  • पासवर्ड बदलें
  • संपादक की कलम से
  • नई वेबसाइट का लाभ कैसे उठाए?
  • डिस्टेंस लर्निंग प्रोग्राम
  • बिगनर्स के लिये सुझाव

एचीवर्स कॉर्नर

  • टॉपर्स कॉपी
  • टॉपर्स इंटरव्यू

हमारे बारे में

  • सामान्य परिचय
  • 'दृष्टि द विज़न' संस्थान
  • दृष्टि पब्लिकेशन
  • दृष्टि मीडिया
  • प्रबंध निदेशक
  • इंफ्रास्ट्रक्चर
  • प्रारंभिक परीक्षा
  • प्रिलिम्स विश्लेषण
  • 60 Steps To Prelims
  • प्रिलिम्स रिफ्रेशर प्रोग्राम 2020
  • डेली एडिटोरियल टेस्ट
  • डेली करेंट टेस्ट
  • साप्ताहिक रिवीज़न
  • एन. सी. ई. आर. टी. टेस्ट
  • आर्थिक सर्वेक्षण टेस्ट
  • सीसैट टेस्ट
  • सामान्य अध्ययन टेस्ट
  • योजना एवं कुरुक्षेत्र टेस्ट
  • डाउन टू अर्थ टेस्ट
  • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी टेस्ट
  • सामान्य अध्ययन (प्रारंभिक परीक्षा)
  • सीसैट (प्रारंभिक परीक्षा)
  • मुख्य परीक्षा (वर्षवार)
  • मुख्य परीक्षा (विषयानुसार)
  • 2018 प्रारंभिक परीक्षा
  • टेस्ट सीरीज़ के लिये नामांकन
  • फ्री मॉक टेस्ट
  • मुख्य परीक्षा
  • मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न
  • निबंध उपयोगी उद्धरण
  • टॉपर्स के निबंध
  • साप्ताहिक निबंध प्रतियोगिता
  • सामान्य अध्ययन
  • हिंदी साहित्य
  • दर्शनशास्त्र
  • हिंदी अनिवार्य
  • Be Mains Ready
  • 'AWAKE' : मुख्य परीक्षा-2020
  • ऑल इंडिया टेस्ट सीरीज़ (यू.पी.एस.सी.)
  • मेन्स टेस्ट सीरीज़ (यू.पी.)
  • उत्तर प्रदेश
  • मध्य प्रदेश

टेस्ट सीरीज़

  • UPSC प्रिलिम्स टेस्ट सीरीज़
  • UPSC मेन्स टेस्ट सीरीज़
  • UPPCS प्रिलिम्स टेस्ट सीरीज़
  • UPPCS मेन्स टेस्ट सीरीज़

करेंट अफेयर्स

  • डेली न्यूज़, एडिटोरियल और प्रिलिम्स फैक्ट
  • डेली अपडेट्स के लिये सबस्क्राइब करें
  • संसद टीवी संवाद
  • आर्थिक सर्वेक्षण

दृष्टि स्पेशल्स

  • चर्चित मुद्दे
  • महत्त्वपूर्ण संस्थान/संगठन
  • मैप के माध्यम से अध्ययन
  • महत्त्वपूर्ण रिपोर्ट्स की जिस्ट
  • पीआरएस कैप्सूल्स
  • एनसीईआरटी बुक्स
  • एनआईओएस स्टडी मैटिरियल
  • इग्नू स्टडी मैटिरियल
  • योजना और कुरुक्षेत्र
  • इन्फोग्राफिक्स
  • मासिक करेंट अपडेट्स संग्रह

वीडियो सेक्शन

  • मेन्स (जी.एस.) डिस्कशन
  • मेन्स (ओप्शनल) डिस्कशन
  • करेंट न्यूज़ बुलेटिन
  • मॉक इंटरव्यू
  • टॉपर्स व्यू
  • सरकारी योजनाएँ
  • ऑडियो आर्टिकल्स
  • उत्तर लेखन की रणनीति
  • कॉन्सेप्ट टॉक : डॉ. विकास दिव्यकीर्ति
  • दृष्टि आईएएस के बारे में जानें

सिविल सेवा परीक्षा

  • परीक्षा का प्रारूप
  • सिविल सेवा ही क्यों?
  • सिविल सेवा परीक्षा के विषय में मिथक
  • वैकल्पिक विषय
  • परीक्षा विज्ञप्ति
  • राष्ट्रीय संस्थान/संगठन

Make Your Note

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission)

  • 29 Jun 2019
  • 11 min read

 Last Updated: July 2022 

“लोगों को उनके मानवाधिकारों से वंचित करना उनकी मानवता को चुनौती देना है।”

- नेल्सन मंडेला

क्या है राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग?

  • राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission-NHRC) एक स्वतंत्र वैधानिक संस्था है, जिसकी स्थापना मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के प्रावधानों के तहत 12 अक्टूबर, 1993 को की गई थी।
  • मानवाधिकार आयोग का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है और 12 अक्टूबर, 2018 को इसने अपनी स्थापना के 25 वर्ष पूरे किये।
  • यह संविधान द्वारा दिये गए मानवाधिकारों जैसे - जीवन का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार और समानता का अधिकार आदि की रक्षा करता है और उनके प्रहरी के रूप में कार्य करता है।

क्या होते हैं मानवाधिकार?

  • संयुक्त राष्ट्र (UN) की परिभाषा के अनुसार ये अधिकार जाति, लिंग, राष्ट्रीयता, भाषा, धर्म या किसी अन्य आधार पर भेदभाव किये बिना सभी को प्राप्त हैं।
  • मानवाधिकारों में मुख्यतः जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार, गुलामी और यातना से मुक्ति का अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार और काम एवं शिक्षा का अधिकार, आदि शामिल हैं।
  • कोई भी व्यक्ति बिना किसी भेदभाव के इन अधिकारों को प्राप्त करने का हक़दार होता है।

मानवाधिकारों का इतिहास

  • मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (Universal Declaration of Human Rights- UDHR) एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक दस्तावेज़ है, जिसे संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 10 दिसंबर, 1948 को पेरिस में अपनाया गया था।
  • मानव अधिकारों के इतिहास में यह बहुत महत्त्वपूर्ण घोषणा है, क्योंकि इसके द्वारा ही पहली बार मानव अधिकारों को सुरक्षित करने का प्रयास किया गया था।
  • हर साल 10 दिसंबर को UDHR की सालगिरह के रूप में मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है।
  • 1991 में पेरिस में हुई संयुक्त राष्ट्र की बैठक ने सिद्धांतों का एक समूह (जिन्हें पेरिस सिद्धांतों के नाम से जाना जाता है) तैयार किया जो आगे चलकर राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थाओं की स्थापना और संचालन की नींव साबित हुए।
  • इन्हीं अधिकारों का अनुसरण करते हुए भारत में मानवाधिकारों में अधिक जवाबदेही और मज़बूती लाने के उद्देश्य से मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 बनाया गया।
  • यह अधिनियम सभी राज्य सरकारों को भी राज्य मानवाधिकार आयोग बनाने का अधिकार देता है।

मानवाधिकार परिषद

  • मानवाधिकार परिषद एक अंतर-सरकारी निकाय है जिसका गठन 15 मार्च, 2006 को संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव द्वारा किया गया था।
  • इसे पूर्व में रहे संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग के स्थान पर लाया गया था।
  • यह पूरी दुनिया में मानवाधिकारों के संवर्द्धन और संरक्षण को बढ़ावा देने के लिये उत्तरदायी है। इसी के साथ यह संस्था मानव अधिकार के उल्लंघनों की भी जाँच करती है।
  • इसके पास मानव अधिकार से जुड़े सभी महत्त्वपूर्ण मुद्दों और विषयों पर चर्चा करने का अधिकार है।
  • यह परिषद संयुक्त राष्ट्र महासभा में चुने गए 47 सदस्य देशों से मिलकर बनती है। 

NHRC की संरचना

  • NHRC एक बहु-सदस्यीय संस्था है जिसमें एक अध्यक्ष, पाँच पूर्णकालिक सदस्य तथा दो डीम्ड सदस्य होते हैं।
  • यह आवश्यक है कि 7 सदस्यों में कम-से-कम 3 पदेन (Ex-officio) सदस्य हों।
  • अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली उच्चस्तरीय कमेटी की सिफारिशों के आधार पर की जाती है।
  • अध्यक्ष और सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्षों या 70 वर्ष की उम्र, जो भी पहले हो, तक होता है।
  • इन्हें केवल तभी हटाया जा सकता है जब सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश की जाँच में उन पर दुराचार या असमर्थता के आरोप सिद्ध हो जाएं।
  • इसके अतिरिक्त आयोग में पाँच विशिष्ट विभाग (विधि विभाग, जाँच विभाग, नीति अनुसंधान और कार्यक्रम विभाग, प्रशिक्षण विभाग और प्रशासन विभाग) भी होते हैं।
  • राज्य मानवाधिकार आयोग में अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा राज्य के मुख्यमंत्री, गृह मंत्री, विधानसभा अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष के परामर्श पर की जाती है। 

NHRC के कार्य और शक्तियाँ

  • मानवाधिकारों के उल्लंघन से संबंधित कोई मामला यदि NHRC के संज्ञान में आता है या शिकायत के माध्यम से लाया जाता है तो NHRC को उसकी जाँच करने का अधिकार है।
  • इसके पास मानवाधिकारों के उल्लंघन से संबंधित सभी न्यायिक मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार है।
  • आयोग किसी भी जेल का दौरा कर सकता है और जेल में बंद कैदियों की स्थिति का निरीक्षण एवं उसमे सुधार के लिये सुझाव दे सकता है।
  • NHRC संविधान या किसी अन्य कानून द्वारा मानवाधिकारों को बचाने के लिये प्रदान किये गए सुरक्षा उपायों की समीक्षा कर सकता है और उनमें बदलावों की सिफारिश भी कर सकता है।
  • NHRC मानवाधिकार के क्षेत्र में अनुसंधान का कार्य भी करता है।
  • आयोग प्रकाशनों, मीडिया, सेमिनारों और अन्य माध्यमों से समाज के विभिन्न वर्गों के बीच  मानवाधिकारों से जुड़ी जानकारी का प्रचार करता है और लोगों को इन अधिकारों की सुरक्षा के लिये प्राप्त उपायों के प्रति भी जागरूक करता है।
  • आयोग के पास दीवानी अदालत की शक्तियाँ हैं और यह अंतरिम राहत भी प्रदान कर सकता है।
  • इसके पास मुआवज़े या हर्जाने के भुगतान की सिफ़ारिश करने का भी अधिकार है।
  • NHRC की विश्वसनीयता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसके पास हर साल बहुत बड़ी संख्या में शिकायतें दर्ज़ होती हैं।
  • यह राज्य तथा केंद्र सरकारों को मानवाधिकारों के उल्लंघन को रोकने के लिये महत्त्वपूर्ण कदम उठाने की सिफ़ारिश भी कर सकता है। 
  • आयोग अपनी रिपोर्ट भारत के राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत करता है जिसे संसद के दोनों सदनों में रखा जाता है।

NHRC की सीमाएँ

  • NHRC के पास जाँच करने के लिये कोई भी विशेष तंत्र नहीं है। अधिकतर मामलों में यह संबंधित सरकार को मामले की जाँच करने का आदेश देता है।
  • पीड़ित पक्ष को व्यावहारिक न्याय देने में असमर्थ होने के कारण भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी ने इसे ‘India’s teasing illusion’ की संज्ञा दी है।
  • NHRC के पास किसी भी मामले के संबंध में मात्र सिफारिश करने का ही अधिकार है, वह किसी को निर्णय लागू करने के लिये बाध्य नहीं कर सकता।
  • कई बार धन की अपर्याप्ता भी NHRC के कार्य में बाधा डालती है।
  • NHRC उन शिकायतों की जाँच नहीं कर सकता जो घटना होने के एक साल बाद दर्ज कराई जाती हैं और इसीलिए कई शिकायतें बिना जाँच के ही रह जाती हैं।
  • अक्सर सरकार या तो NHRC की सिफारिशों को पूरी तरह से खारिज कर देती है या उन्हें आंशिक रूप से ही लागू किया जाता है।
  • राज्य मानवाधिकार आयोग केंद्र सरकार से किसी भी प्रकार की सूचना नहीं मांग सकते, जिसका सीधा सा अर्थ यह है कि उन्हें  केंद्र के तहत आने वाले सशस्त्र बलों की जाँच करने से रोका जाता है।
  • केंद्रीय सशस्त्र बलों के संदर्भ में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की शक्तियों को भी काफी सीमित कर दिया गया है।
  • NHRC को सही मायनों में मानवाधिकारों के उल्लंघन का एक कुशल प्रहरी बनाने के लिये उसमें कई सुधार करने की आवश्यकता है।
  • सरकार द्वारा आयोग के निर्णयों को पूरी तरह से लागू करके उसकी प्रभावशीलता में वृद्धि की जा सकती है।  
  • NHRC की संरचना में भी परिवर्तन करने की आवश्यकता है तथा इसमें आम नागरिकों और सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों को भी शामिल किया जाना चाहिए।
  • NHRC को जाँच के लिये उचित अनुभव वाले कर्मचारियों का एक नया काडर तैयार करना चाहिए ताकि सभी मामलों की स्वतंत्र जाँच की जा सके।
  • भारत में मानवाधिकार स्थितियों को सुधारने और मजबूत करने के लिये राज्य अभिकर्त्ताओं और गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं (State & Non-state Actors) को एक साथ मिलकर काम करना होगा।

presentation se kya abhipray hai

MyQuestionIcon

भाषी में झारखंडीपन से क्या अभिप्राय है?

भाषी में झारखंडीपन से अभिप्राय अपनी स्थानीय भाषा को संभाले रखना है। हमारी बोली में यह स्वरूप दिखाई देता है।.

flag

'भूख मीठी कि भोजन मीठा' से क्या अभिप्राय है? - Hindi Course - A

Advertisements.

'भूख मीठी कि भोजन मीठा' से क्या अभिप्राय है?

Solution Show Solution

इस बात का आशय है जब मनुष्य भूखा होता है तो उस भूख के कारण उसे बासी रोटी भी मीठी लगती है। यदि मनुष्य को भूख न हो तो उसे कुछ भी स्वादिष्ट भोजन या खाने की वस्तु दे दी जाए तो वह उसमें नुक्स निकाल ही देता है। परन्तु भूख लगने पर साधारण खाना या बासी खाना भी उसे स्वादिष्ट व मीठा लगेगा। इसलिए बुजुर्गों ने कहा है - भूख मीठी की भोजन मीठा। अर्थात् भूख स्वयं में ही मिठास होती है जो भोजन में भी मिठास उत्पन्न कर देती है।

RELATED QUESTIONS

यदि उमा की स्थिति कम पढ़ी-लिखी लड़कियों जैसी होती तो एकांकी का अंत किस तरह अलग होता?

गोपाल प्रसाद और शंकर के सामने गीत गाती उमा ने अपना गीत अधूरा क्यों छोड़ दिया?

'लेकिन औरत जात पर सींग चलाना मना है, यह भूल जाते हो।'-हीरा के इस कथन के माध्यम से स्त्री के प्रति प्रेमचंद के दृष्टिकोण को स्पष्ट कीजिए।

आशय स्पष्ट कीजिए -

क) अवश्य ही उनमें कोई ऐसी गुप्त शक्ति थी, जिससे जीवों में श्रेष्ठता का दावा करने वाला मनुष्य वंचित है।

(ख) उस एक रोटी से उनकी भूख तो क्या शांत होती; पर दोनों के हृदय को मानो भोजन मिल गया।

पाठ में कागज़, अक्षर, मैदान के आगे क्रमश: मोटे, अच्छे और विशाल शब्दों का प्रयोग हुआ है। इन शब्दों से उनकी विशेषता उभर कर आती है। पाठ में से कुछ ऐसे ही और शब्द छाँटिए जो किसी की विशेषता बता रहे हों।

तिब्बत यात्रा के दौरान लेखक ने क्या-क्या नए अनुभव प्राप्त किए?

तिब्बत का प्राकृतिक सौंदर्य अनुपम है। स्पष्ट कीजिए।

इस पाठ में लेखक ने सालिम अली के व्यक्तित्व का जो चित्र खींचा है उसे अपने शब्दों में लिखिए।

प्रेमचंद का जूता फटने के प्रति लेखक ने क्या-क्या आशंका प्रकट की है?

गुरुदेव को श्रीनिकेतन के पुराने आवास में ले जाने में परेशानी क्यों हो रही थी?

Download the Shaalaa app from the Google Play Store

  • Maharashtra Board Question Bank with Solutions (Official)
  • Balbharati Solutions (Maharashtra)
  • Samacheer Kalvi Solutions (Tamil Nadu)
  • NCERT Solutions
  • RD Sharma Solutions
  • RD Sharma Class 10 Solutions
  • RD Sharma Class 9 Solutions
  • Lakhmir Singh Solutions
  • TS Grewal Solutions
  • ICSE Class 10 Solutions
  • Selina ICSE Concise Solutions
  • Frank ICSE Solutions
  • ML Aggarwal Solutions
  • NCERT Solutions for Class 12 Maths
  • NCERT Solutions for Class 12 Physics
  • NCERT Solutions for Class 12 Chemistry
  • NCERT Solutions for Class 12 Biology
  • NCERT Solutions for Class 11 Maths
  • NCERT Solutions for Class 11 Physics
  • NCERT Solutions for Class 11 Chemistry
  • NCERT Solutions for Class 11 Biology
  • NCERT Solutions for Class 10 Maths
  • NCERT Solutions for Class 10 Science
  • NCERT Solutions for Class 9 Maths
  • NCERT Solutions for Class 9 Science
  • CBSE Study Material
  • Maharashtra State Board Study Material
  • Tamil Nadu State Board Study Material
  • CISCE ICSE / ISC Study Material
  • Mumbai University Engineering Study Material
  • CBSE Previous Year Question Paper With Solution for Class 12 Arts
  • CBSE Previous Year Question Paper With Solution for Class 12 Commerce
  • CBSE Previous Year Question Paper With Solution for Class 12 Science
  • CBSE Previous Year Question Paper With Solution for Class 10
  • Maharashtra State Board Previous Year Question Paper With Solution for Class 12 Arts
  • Maharashtra State Board Previous Year Question Paper With Solution for Class 12 Commerce
  • Maharashtra State Board Previous Year Question Paper With Solution for Class 12 Science
  • Maharashtra State Board Previous Year Question Paper With Solution for Class 10
  • CISCE ICSE / ISC Board Previous Year Question Paper With Solution for Class 12 Arts
  • CISCE ICSE / ISC Board Previous Year Question Paper With Solution for Class 12 Commerce
  • CISCE ICSE / ISC Board Previous Year Question Paper With Solution for Class 12 Science
  • CISCE ICSE / ISC Board Previous Year Question Paper With Solution for Class 10
  • Entrance Exams
  • Video Tutorials
  • Question Papers
  • Question Bank Solutions
  • Question Search (beta)
  • More Quick Links
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Shaalaa App
  • Ad-free Subscriptions

Select a course

  • Class 1 - 4
  • Class 5 - 8
  • Class 9 - 10
  • Class 11 - 12
  • Search by Text or Image
  • Textbook Solutions
  • Study Material
  • Remove All Ads
  • Change mode

IMAGES

  1. Presentation Skills

    presentation se kya abhipray hai

  2. Creativity se kya abhipray hai? education mai isake kya importance hai

    presentation se kya abhipray hai

  3. प्रतियोगिता से kya abhipray h

    presentation se kya abhipray hai

  4. EDUSAT से क्या अभिप्राय है ? Edusat Se Kya Abhipray Hai ?

    presentation se kya abhipray hai

  5. Abhipray Ka Paryayvachi

    presentation se kya abhipray hai

  6. Abhipray Ka Paryayvachi Shabd यहां पर मिलेगा

    presentation se kya abhipray hai

COMMENTS

  1. 'भाषा को सहूलियत' से बरतने से क्या अभिप्राय है?

    Question. 'भाषा को सहूलियत' से बरतने से क्या अभिप्राय है? Answer in Brief. Solution. इसका अभिप्राय है कि हमें भाषा का प्रयोग उचित प्रकार से करना चाहिए। भाषा ...

  2. अभिप्राय का पर्यायवाची शब्द

    Abhipray ka Paryayvachi Shabd आशय, अभिप्राय, तात्पर्य, मतलब और निर्मित आदि आम तौर पर उपयोग किए जाते हैं। यहां आप अभिप्राय का पर्यायवाची शब्द (Abhipray ka Paryayvachi Shabd) क्या है, अभिप्राय ...

  3. भाषा को सहूलियत से बरतने से क्या अभिप्राय है?

    मगही किस भाषा की बोली है - Magahi Kis Bhasha ki Boli Hai? Sursagar Kis Bhasha Ki Rachna Hai - सूरसागर किस भाषा की रचना है? Thanks Ka Reply Kya Hoga - थैंक्स का रिप्लाई क्या होगा?

  4. व्यवस्था सिद्धांत से क्या अभिप्राय है ? डेविड ईस्टन द्वारा प्रतिपादित

    व्यवस्था सिद्धांत से क्या अभिप्राय है ? डेविड ईस्टन द्वारा प्रतिपादित आगत-निर्गत सिद्धांत की व्याख्या कीजिए। 00Monday 24 January 20222022-01-24T08:31:00-08:00Edit this post

  5. 13 Effective Tips to Improve Public Speaking in Hindi

    Kya aapko public speaking se dar lagta hai? Jane effective tips public speaking improve karne ki aur humesha ke liye dar bhagane ki.

  6. कार्यालयी हिंदी/कार्यालयी हिंदी

    कार्यालयी हिन्दी का अभिप्राय. भाषा मनुष्य की अभिव्यक्ति का एक माध्यम है। अलग-अलग क्षेत्रों में भाषा का रूप भी बदलता है। दैनिक जीवन ...

  7. भाषा को सहूलियत से बरतने से क्या अभिप्राय है / bhasha ko sahuliyat se

    In this videoआज इस वीडियो में आपको मैने most important questions भाषा को सहूलियत से बरतने से क्या ...

  8. नेत्र की समंजन क्षमता से क्या अभिप्राय है? netra ki samanjan kshamta se

    नेत्र की समंजन क्षमता से क्या अभिप्राय है? netra ki samanjan kshamta se kya abhipray hai? STUDY WITH ANIL KUMAR 595 subscribers 71

  9. NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 12 बाजार दर्शन

    बाजार में असंतोष व हीन भावना से दूर रहना चाहिए।. We hope the given NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 12 बाजार दर्शन will help you. If you have any query regarding NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 12 बाजार ...

  10. Google Translate

    Google's service, offered free of charge, instantly translates words, phrases, and web pages between English and over 100 other languages.

  11. स्वच्छता पर निबंध (Cleanliness Essay in Hindi)

    स्वच्छता पर निबंध (Cleanliness Essay in Hindi) नरेन्द्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान के उद्देश्य को पूरा करने के लिये एक बड़ा कदम हो सकता है हर भारतीय ...

  12. छायावाद : अर्थ, परिभाषा व प्रवृत्तियां ( Chhayavad : Arth, Paribhasha V

    जयशंकर प्रसाद ( Jaishankar Prasad ) के काव्य 'आँसू' को छायावाद की पहली रचना माना जाता है |. छायावाद का अर्थ व परिभाषा : छायावाद के अर्थ को लेकर ...

  13. बजट: अर्थ, कार्य और सिद्धांत

    बजट: अर्थ, कार्य और सिद्धांत | Read this article in Hindi to learn about:- 1. बजट का अर्थ (Meaning of Budget) 2. बजट का कार्य (Functions of Budget) 3. बजटिंग के प्रणालियाँ (Systems of Budgeting) 4. बजटिंग के सिद्धांत (Principles of Budgeting) 5 ...

  14. Biodiversity Conservation in Hindi

    जैव विविधता के महत्व, कारण और संरक्षण के बारे में जानकारी प्राप्त करें और अपने ज्ञान को बढ़ाएं। Get information about the importance, causes and conservation of biodiversity in hindi.

  15. जीव-मण्डल निचय से क्या अभिप्राय है? कोई दो उदाहरण दो

    जीव-मण्डल निचय से क्या अभिप्राय है? कोई दो उदाहरण दो | jeev mandal nichye se kya abhipray hai - YouTube

  16. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission)

    राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission-NHRC) एक स्वतंत्र वैधानिक संस्था है, जिसकी स्थापना मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के प्रावधानों के तहत 12 अक्टूबर ...

  17. शीतल वाणी में आग के होने का क्या अभिप्राय है?

    यह पंक्ति विरोधाभास को दर्शाती है क्योंकि शीतलता के साथ आग का मेल नहीं बैठता। जहाँ आग है, वहाँ शीतलता नहीं मिल सकती। आग का गुण है तपन ...

  18. NCERT Solutions for Class 12 Hindi Chapter 3

    Class 12 Hindi NCERT Solutions for Aroh Chapter 3 Poem Kavita ke Bahane - Baat Sidhi Thi Par Students struggle a lot nowadays for searching a single platform to get complete study material. Students like to have all the gazettes like chapter wise latest CBSE syllabus, preceding year's NCERT solved papers, chapter-wise important questions, sample papers for the practice and concise revision ...

  19. सुषिर-वाद्यों से क्या अभिप्राय है? शहनाई को 'सुषिर वाद्यों में शाह' की

    सुषिर-वाद्यों से क्या अभिप्राय है? शहनाई को 'सुषिर वाद्यों में शाह' की उपाधि क्यों दी गई होगी? - Hindi Course - A Advertisements Question

  20. पाठ 2 मीराबाई

    पाठ 2 मीराबाई | लोक लाज खोने का क्या अभिप्राय है | Lok Laaj khone ka kya abhipray hai | mp boarf Sanju Teach Yt 15.1K ...

  21. पर्यावरण (परिभाषा, विशेषताएँ, प्रकार, संरचना और संघटक)

    पर्यावरण क्या है? (Paryavaran Kya Hai) पर्यावरण के कार्य और कार्य करने की जो भी विधियां है, वो प्रकृति प्रदत्त साधनों से होती है। पर्यावरण के सभी तत्व एक दूसरे से ...

  22. भाषी में झारखंडीपन से क्या अभिप्राय है?

    भाषी में झारखंडीपन से अभिप्राय अपनी स्थानीय भाषा को संभाले रखना है। हमारी बोली में यह स्वरूप दिखाई देता है। Suggest Corrections 93

  23. 'भूख मीठी कि भोजन मीठा' से क्या अभिप्राय है?

    Short Note. Advertisements. Solution. इस बात का आशय है जब मनुष्य भूखा होता है तो उस भूख के कारण उसे बासी रोटी भी मीठी लगती है। यदि मनुष्य को भूख न हो तो उसे कुछ ...