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स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Swami Vivekananda Essay in Hindi)

स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद एक महान हिन्दू संत और नेता थे, जिन्होंने रामकृष्ण मिशन और रामकृष्ण मठ की स्थापना की थी। हम उनके जन्मदिन पर प्रत्येक वर्ष 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस मनाते हैं। वह आध्यात्मिक विचारों वाले अद्भूत बच्चे थे। इनकी शिक्षा अनियमित थी, लेकिन इन्होंने स्कॉटिश चर्च कॉलेज से बीए की डिग्री पूरी की। श्री रामकृष्ण से मिलने के बाद इनका धार्मिक और संत का जीवन शुरु हुआ और उन्हें अपना गुरु बना लिया। इसके बाद इन्होंने वेदांत आन्दोलन का नेतृत्व किया और भारतीय हिन्दू धर्म के दर्शन से पश्चिमी देशों को परिचित कराया।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध (100 – 200 शब्द) – Swami Vivekananda par Nibandh

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था। उनका असली नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। वे एक महान भारतीय संत, विचारक और समाज सुधारक थे। उनके गुरु, श्री रामकृष्ण परमहंस, ने उनके जीवन में गहरा प्रभाव डाला। स्वामी विवेकानंद ने भारतीय संस्कृति और अध्यात्म का प्रचार पूरी दुनिया में किया।

उन्होंने 1893 में शिकागो में विश्व धर्म महासभा में भारत का प्रतिनिधित्व किया और उन्होंने भारत की महानता को दुनिया के सामने रखा, वहां उनके भाषण ने सभी को प्रभावित किया। उन्होंने कहा, “उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए”, उनके ये शब्द आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करते हैं।

स्वामी विवेकानंद ने 1897 में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जो आज भी समाज सेवा, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है। उनका जीवन हमें सिखाता है कि सच्ची सफलता सेवा और परिश्रम से मिलती है। उनका निधन 4 जुलाई 1902 को हुआ, लेकिन उनकी शिक्षाएं और विचार आज भी हमें प्रेरित करते हैं। वे हमेशा युवाओं को उनके लक्ष्य की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा देते रहेंगे। उनके जीवन और कार्यों से हमें सच्ची देशभक्ति और मानवता की सेवा का पाठ मिलता है।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध (250 – 300 शब्द) – Essay on Swami Vivekananda in Hindi

स्वामी विवेकानंद भारत में पैदा हुए महापुरुषों में से एक है। अपने महान कार्यों द्वारा उन्होंने पाश्चात्य जगत में सनातन धर्म, वेदों तथा ज्ञान शास्त्र को काफी ख्याति दिलायी और विश्व भर में लोगो को अमन तथा भाईचारे का संदेश दिया।

स्वामी विवेकानंद का प्रारंभिक जीवन

विश्वभर में ख्याति प्राप्त संत, स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ था। वह बचपन में नरेन्द्र नाथ दत्त के नाम से जाने जाते थे। इनकी जयंती को भारत में प्रत्येक वर्ष राष्ट्रीय युवा दिवस के रुप में मनाया जाता है। वह विश्वनाथ दत्त, कलकत्ता उच्च न्यायालय के वकील, और भुवनेश्वरी देवी के आठ बच्चों में से एक थे। वह बहुत धार्मिक और आध्यात्मिक व्यक्ति थे और अपने संस्कृत के ज्ञान के लिए लोकप्रिय थे।स्वामी विवेकानंद सच बोलने वाले, अच्छे विद्वान होने के साथ ही एक अच्छे खिलाड़ी भी थे। वह बचपन से ही धार्मिक प्रकृति वाले थे और परमेश्वर की प्राप्ति के लिए काफी परेशान थे।

स्वामी विवेकानद का ह्रदय परिवर्तन

 एक दिन वह श्री रामकृष्णसे मिले, तब उनके अंदर श्री रामकृष्ण के आध्यात्मिक प्रभाव के कारण बदलाव आया। श्री रामकृष्ण को अपना आध्यात्मिक गुरु मानने के बाद वह स्वामी विवेकानंद कहे जाने लगे।

वास्तव में स्वामी विवेकानंद एक सच्चे गुरुभक्त भी थे क्योंकि तमाम प्रसिद्धि पाने के बाद भी उन्होंने सदैव अपने गुरु को याद रखा और रामकृष्ण मिशन की स्थापना करते हुए, अपने गुरु का नाम रोशन किया।

स्वामी विवेकानंद का शिकागो भाषण

स्वामी विवेकानंद ने अपने ज्ञान तथा शब्दों द्वारा पूरे विश्व भर में हिंदु धर्म के विषय में लोगो का नजरिया बदलते हुए, लोगो को अध्यात्म तथा वेदांत से परिचित कराया। अपने इस भाषण में उन्होंने विश्व भर को भारत के अतिथि देवो भवः, सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकार्यता के विषय से परिचित कराया।

स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुष सदियों में एक बार ही जन्म लेते हैं, जो अपने जीवन के बाद भी लोगो को निरंतर प्रेरित करने का कार्य करते हैं। यदि हम उनके बताये गये बातों पर अमल करें, तो हम समाज से हर तरह की कट्टरता और बुराई को दूर करने में सफल हो सकते हैं।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध (300 – 400 शब्द) – Swami Vivekananda Essay in Hindi

स्वामी विवेकानंद, एक महान भारतीय संन्यासी, दार्शनिक, विचारक और समाज सुधारक थे जिनका जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था। उनका वास्तविक नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। स्वामी विवेकानंद का जीवन और उनकी शिक्षाएँ आज भी लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्रोत हैं।

स्वामी विवेकानंद : प्रेरणादायक जीवन और उनकी शिक्षाएँ

उनका बचपन से ही आध्यात्मिकता की ओर झुकाव था। उन्होंने बचपन में ही वेद, उपनिषद और भगवद गीता का गहन अध्ययन किया। 1881 में, उन्होंने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस से दीक्षा ली और सन्यास का मार्ग अपनाया। रामकृष्ण परमहंस ने उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान और भक्ति का मार्ग दिखाया।

स्वामी विवेकानंद ने भारतीय संस्कृति और धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए विश्व भ्रमण किया। 1893 में, उन्होंने शिकागो, अमेरिका में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत का प्रतिनिधित्व किया था जहां उनके भाषण ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया था। उनके संबोधन “मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों” ने लोगों के दिलों को छू लिया और भारतीय संस्कृति के प्रति आदर और सम्मान उत्पन्न किया।

विवेकानंद ने अपने जीवन में युवाओं को विशेष महत्व दिया। उनका मानना था कि युवा शक्ति ही देश की असली ताकत है। उन्होंने युवाओं को अपने जीवन में अनुशासन, समर्पण और उच्च आदर्शों को अपनाने की प्रेरणा दी। उनका प्रसिद्ध उद्धरण “उठो जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए” आज भी लाखों युवाओं को प्रेरित करता है।

स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण मठ, रामकृष्ण मिशन और वेदांत सोसाइटी की नींव रखी। उनके द्वारा स्थापित रामकृष्ण मिशन आज भी शिक्षा, चिकित्सा और समाज सेवा के क्षेत्र में कार्यरत है। उन्होंने “अद्वैत वेदांत” के सिद्धांत को प्रचारित किया, जो सभी जीवों में एक ही आत्मा की अवधारणा पर आधारित है। उनके अनुसार, सभी धर्म एक ही सत्य की ओर ले जाते हैं और सभी मानव जाति एक है।

स्वामी विवेकानंद का जीवन हमें सिखाता है कि आत्मविश्वास, अनुशासन और समर्पण से हम किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। उनके विचार और शिक्षाएँ आज भी प्रासंगिक हैं और हमें एक सफल और सार्थक जीवन जीने के लिए प्रेरित करती हैं। 4 जुलाई 1902 को मात्र 39 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया, लेकिन उनके विचार और आदर्श सदैव अमर रहेंगे।

स्वामी विवेकानंद के जीवन और उनकी शिक्षाओं से हमें आत्म-निर्भरता, सेवा, और मानवता के प्रति समर्पण का संदेश मिलता है। वे हमारे लिए एक महान प्रेरणा हैं, जिनके पदचिह्नों पर चलकर हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध (500 शब्द)

एक समान्य परिवार में जन्म लेने वाले नरेंद्रनाथ ने अपने ज्ञान तथा तेज के बल पर विवेकानंद बने। अपने कार्यों द्वारा उन्होंने विश्व भर में भारत का नाम रोशन करने का कार्य किया। यहीं कारण है कि वह आज के समय में भी लोगो के प्रेरणास्त्रोत हैं।

भारत के महापुरुष – स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में मकर संक्रांति के त्योहार के अवसर पर, परंपरागत कायस्थ बंगाली परिवार में हुआ था। स्वामी विवेकानंद का बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त (नरेन्द्र या नरेन भी कहा जाता था) था। वह अपने माता-पिता (पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता उच्च न्यायालय में वकील थे और माता भुवनेश्वरी देवी धार्मिक महिला थी) के 9 बच्चों में से एक थे। वह पिता के तर्कसंगत मन और माता के धार्मिक स्वभाव वाले वातावरण के अन्तर्गत सबसे प्रभावी व्यक्तित्व में विकसित हुए।

वह बाल्यकाल से ही आध्यात्मिक व्यक्ति थे और हिन्दू भगवान की मूर्तियों (भगवान शिव, हनुमान आदि) के सामने ध्यान किया करते थे। वह अपने समय के घूमने वाले सन्यासियों और भिक्षुओं से प्रभावित थे। वह बचपन में बहुत शरारती थे और अपने माता-पिता के नियंत्रण से बाहर थे। वह अपनी माता के द्वारा भूत कहे जाते थे, उनके एक कथन के अनुसार, “मैंने भगवान शिव से एक पुत्र के लिए प्रार्थना की थी और उन्होंने मुझे अपने भूतों में से एक भेज दिया।”

उन्हें 1871 (जब वह 8 साल के थे) में अध्ययन के लिए चंद्र विद्यासागर महानगर संस्था और 1879 में प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिल कराया गया। वह सामाजिक विज्ञान, दर्शन, इतिहास, धर्म, कला और साहित्य जैसे विषयों में बहुत अच्छे थे। उन्होंने पश्चिमी तर्क, यूरोपीय इतिहास, पश्चिमी दर्शन, संस्कृत शास्त्रों और बंगाली साहित्य का अध्ययन किया।

स्वामी विवेकानंद के विचार

वह बहुत धार्मिक व्यक्ति थे हिन्दू शास्त्रों (वेद, रामायण, भगवत गीता, महाभारत, उपनिषद, पुराण आदि) में रुचि रखते थे। वह भारतीय शास्त्रीय संगीत, खेल, शारीरिक व्यायाम और अन्य क्रियाओं में भी रुचि रखते थे। उन्हें विलियम हैस्टै (महासभा संस्था के प्राचार्य) के द्वारा “नरेंद्र वास्तव में एक प्रतिभाशाली है” कहा गया था।

वह हिंदू धर्म के प्रति बहुत उत्साहित थे और हिन्दू धर्म के बारे में देश के अन्दर और बाहर दोनों जगह लोगों के बीच में नई सोच का निर्माण करने में सफल हुए। वह पश्चिम में ध्यान, योग, और आत्म-सुधार के अन्य भारतीय आध्यात्मिक रास्तों को बढ़ावा देने में सफल हो गए। वह भारत के लोगों के लिए राष्ट्रवादी आदर्श थे।

उन्होंने राष्ट्रवादी विचारों के माध्यम से कई भारतीय नेताओं का ध्यान आकर्षित किया। भारत की आध्यात्मिक जागृति के लिए श्री अरबिंद ने उनकी प्रशंसा की थी। महान हिंदू सुधारक के रुप में, जिन्होंने हिंदू धर्म को बढ़ावा दिया, महात्मा गाँधी ने भी उनकी प्रशंसा की। उनके विचारों ने लोगों को हिंदु धर्म का सही अर्थ समझाने का कार्य किया और वेदांतों और हिंदु अध्यात्म के प्रति पाश्चात्य जगत के नजरिये को भी बदला।

उनके इन्हीं कार्यों के लिए चक्रवर्ती राजगोपालाचारी (स्वतंत्र भारत के प्रथम गवर्नर जनरल) ने कहा कि स्वामी विवेकानंद ही वह व्यक्ति थे, जिन्होंने हिन्दू धर्म तथा भारत को बचाया था। उन्हें सुभाष चन्द्र बोस के द्वारा “आधुनिक भारत के निर्माता” कहा गया था। उनके प्रभावी लेखन ने बहुत से भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्ताओं; जैसे- नेताजी सुभाष चंद्र बोस, बाल गंगाधर तिलक, अरविंद घोष, बाघा जतिन, आदि को प्रेरित किया। ऐसा कहा जाता है कि 4 जुलाई सन् 1902 में उन्होंने बेलूर मठ में तीन घंटे ध्यान साधना करते हुए अपनें प्राणों को त्याग दिया।

अपने जीवन में तमाम विपत्तियों के बावजूद भी स्वामी विवेकानंद कभी सत्य के मार्ग से हटे नही और अपने जीवन भर लोगो को ज्ञान देने कार्य किया। अपने इन्हीं विचारों से उन्होंने पूरे विश्व को प्रभावित किया तथा भारत और हिंदुत्व का नाम रोशन करने का कार्य किया।

Essay on Swami Vivekananda in Hindi

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स्वामी विवेकानंद जी की सम्पूर्ण जीवनी, Swami Vivekananda jivani

स्वामी विवेकानंद जी का संपूर्ण जीवन परिचय, उनके जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों तथा घटनाओं का भी अध्ययन करेंगे।

यह जीवन परिचय युवा प्रेरणा स्रोत , ऊर्जावान स्वामी विवेकानंद जी के जीवन पर आधारित है। इस लेख के माध्यम से आप नरेंद्र से स्वामी विवेकानंद बनाने की कहानी जान सकेंगे। उनकी स्मरण शक्ति और उनके जीवन शैली को इस लेख के माध्यम से विस्तृत अध्ययन का प्रयत्न किया गया है।

प्रस्तुत लेख स्वामी विवेकानंद जी के संकल्प शक्ति, विचारों के ऊर्जा, अध्यात्म, आत्मविश्वास आदि का विस्तार है। उन्होंने अल्पायु से लेकर अपने जीवन काल तक जिस मार्ग को अपनाया, उसे आज युवा प्रेरणा के रूप में ग्रहण करते हैं। स्वामी जी आज करोड़ों देशवासियों के मार्गदर्शक और प्रेरणा के स्रोत हैं। उनको पसंद करने वाले देश ही नहीं अभी तो विदेश में भी है। उनकी विचारधारा ऐसी थी जिसे भारत ही नहीं विदेश में भी पसंद किया गया।

यह लेख स्वामी जी के जीवन पर विस्तृत प्रकाश डालने में सक्षम है.

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स्वामी विवेकानंद जी का जीवन परिचय – Swami Vivekananda biography in Hindi

स्वामी विवेकानंद जी किसी परिचय के मोहताज नहीं है, उनकी स्मरण शक्ति और दृढ़ प्रतिज्ञा बेजोड़ है। बचपन में उनका नाम नरेंद्र नाथ दत्त हुआ करता था। उनकी कुशाग्र बुद्धि ने उन्हें स्वामी विवेकानंद बनाया। एक छोटे से जगह पर जन्मे और देश-विदेश में अपनी ख्याति को सिद्ध करने वाले स्वामी आज करोड़ों देशवासियों के लिए आदर्श व्यक्ति हैं। देश-विदेश में उनकी ख्याति है , उनको पसंद करने वाले किसी एक सीमा में बंधे नहीं है। स्वामी जी की स्मरण शक्ति इतनी तीव्र थी कि, उन्होंने आधुनिक वेद-वेदांत धर्म आदि की सभी महत्वपूर्ण पुस्तकों का अध्ययन किया था।

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12 जनवरी 1863
कोलकाता ( बांग्ला )
नरेंदर नाथ दत्त
सनातन हिन्दू
भारतीय
भुवनेश्वरी
विश्वनाथ दत्त ( प्रसिद्ध वकील )
दुर्गा चरण दत्त
रामकृष्ण परमहंस
रामकृष्ण मिशन
4 जुलाई 1902 में महासमाधि में लीन हुए ( आयु 39 ) बेलूर मठ पश्चिम बंगाल

स्वामी विवेकानंद जी का पारिवारिक जीवन – Swami Vivekananda family life

Swami Vivekananda jivani and family life

स्वामी विवेकानंद का जन्म कोलकाता के कुलीन बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ। कुछ विद्वानों के अनुसार उनका जन्म मकर संक्रांति के दिन हुआ था। यह दिन हिंदू मान्यता का महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। सूर्य की दिशा कुछ इस प्रकार होती है जो , वर्ष भर में मात्र एक बार अनुभव करने को मिलती है। विवेकानंद जी का परिवार मध्यमवर्गीय था।

जन्म के उपरांत उन्हें वीरेश्वर के नाम से जाना जाता था। 

शिक्षा शिक्षा के लिए औपचारिक नाम नरेंद्रनाथ दत्त रखा गया। विवेकानंद उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस का दिया हुआ नाम था।

जैसा कि उपरोक्त विदित हुआ स्वामी जी का परिवार मध्यमवर्गीय था।

पिता विश्वनाथ दत्त कोलकाता हाईकोर्ट के मशहूर वकीलों में से एक थे। उनकी वकालत काफी लोकप्रिय थी, अधिवक्ता समाज उन्हें आदरणीय मानता था। विवेकानंद जी के दादा दुर्गा चरण दत्त काफी विद्वान थे। उन्होंने कई भाषाओं में अपनी मजबूत पकड़ बनाई हुई थी। उन्हें संस्कृत , फारसी, उर्दू का विद्वान माना जाता था। उनकी रुचि धार्मिक विषयों में अधिक थी, जिसका परिणाम यह हुआ उन्होंने अपने युवावस्था में सन्यास धारण किया।

पच्चीस वर्ष की युवावस्था में दुर्गा चरण दत्त अपना परिवार त्याग कर सन्यासी बन गए।

स्वामी जी की माता भुवनेश्वरी दत्त धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी।

वह विशेष रूप से शिव की उपासना किया करती थी। यही कारण है उनके घर में निरंतर पूजा-पाठ, हवन, कीर्तन-भजन आदि का कार्यक्रम हुआ करता था। रामायण, महाभारत और कथा वाचन नित्य प्रतिदिन का कार्य था।

स्वामी विवेकानंद जी का पालन पोषण इस परिवेश में हुआ।

उनकी जिज्ञासु प्रवृत्ति और धर्म के प्रति लगाव , घर में बने वातावरण के कारण था । वह सदैव जानने की प्रवृत्ति को अपने भीतर रखते थे। वह अपने माता-पिता या कथावाचक आदि से नित्य प्रतिदिन ईश्वर, धर्म और संस्कृति के बारे में प्रश्न पूछा करते थे।

कई बार उनके प्रश्न इस प्रकार हुआ करते थे , जिसका जवाब किसी के पास नहीं होता। स्वामी जी मे दिखने वाली कुशाग्र बुद्धि और जिज्ञासा धर्म-संस्कृति आदि की समझ परिवार की देन ही माना जाएगा।

नरेंद्र से स्वामी विवेकानंद जी कैसे बने – Swami Vivekananda Childhood

नरेंद्र नाथ दत्त बचपन से खोजी प्रवृत्ति के थे, उन्हें किसी एक विषय में रुचि नहीं थी। वह विषय के उद्गम और विस्तार को कारणों सहित जानने के जिज्ञासु थे । नरेंद्र नाथ कि इसी प्रवृत्ति के कारण शिक्षक उनसे प्रभावित रहते थे।

उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस थे बालक नरेंद्र नाथ के जिज्ञासा और उनकी उत्सुकता को अपना प्रेम देते थे।

नरेंद्र नाथ दत्त में बहुमुखी प्रतिभा थी, यह सामान्य बालक से बिल्कुल अलग थे। सामान्य बालक जहां एक विषय के अध्ययन में वर्षों निकाल दिया करते थे। नरेंद्र नाथ पूरी पुस्तक का अध्ययन कुछ ही क्षण में कर लिया करते थे। उनका यह अध्ययन सामान्य नहीं था वह पृष्ठ संख्या और अक्षरसः हुआ करता था। इस प्रतिभा से रामकृष्ण परमहंस प्रसन्न होकर नरेंद्र नाथ दत्त को विवेकानंद कहकर पुकारते थे।

यही विवेकानंद भविष्य में स्वामी विवेकानंद के नाम से प्रसिद्ध हुए। जो विवेक का स्वामी हो वही विवेकानंद।

स्वामी विवेकानंद की शिक्षा – Swami Vivekananda Education

Swami vivekananda education in Hindi - स्वामी विवेकानंद जी की शिक्षा

स्वामी विवेकानंद की आरंभिक शिक्षा कोलकाता में हुई। विद्यालय से पूर्व उनका ज्ञान संस्कार घर पर ही किया गया। दादा तथा माता-पिता की देख-रेख में उन्होंने विद्यालय से पूर्व ही, सामान्य बालकों से अधिक जानकारी प्राप्त कर ली थी।

आठ वर्ष की आयु में, उन्हें ईश्वर चंद्र विद्यासागर मेट्रोपॉलिटन संस्थान कोलकाता में प्राथमिक ज्ञान के लिए विद्यालय भेजा गया। यह समय 1871 का था। कुछ समय पश्चात 1877 में परिवार किसी कारणवश रायपुर चला गया। दो वर्ष के पश्चात 1879 मे कोलकाता वापस आ गया।  यहां स्वामी विवेकानंद ने प्रसिद्ध प्रेसीडेंसी कॉलेज प्रवेश परीक्षा में उच्चतम अंक प्राप्त किए।

यह बेहद ही सराहनीय सफलता थी, अन्य विद्यार्थियों के लिए यह सपना हुआ करता था।

स्वामी विवेकानंद इस समय तक

  • राजनीति विज्ञान
  • समाजिक विज्ञान
  • अनेक हिंदू धर्म के ग्रंथ तथा साहित्य का अक्षरसः गहनता से अध्ययन कर लिया था।

स्वामी जी ने पश्चिमी साहित्य के धार्मिक और विचारों तथा क्रांतिकारी घटनाओं का व्याख्यात्मक विश्लेषण भी सूक्ष्मता से अध्ययन किया था।

स्वामी विवेकानंद शास्त्रीय कला में भी निपुण थे , उन्होंने शास्त्रीय संगीत में परीक्षा को सफलतापूर्वक उत्तीर्ण किया। वह शास्त्रीय संगीत को जीवन का अभिन्न अंग मानते हुए स्वीकार करते हैं। वह जीवन के किसी भी क्षेत्र को नहीं छोड़ना चाहते थे।

यही कारण है उनका स्वयं के शरीर से काफी लगाव था।

वह योग, कसरत, खेल, संगीत आदि को प्रसन्नता पूर्वक स्वीकार किया करते थे। उनका मानना था अगर मस्तिष्क को संतुलित रखना है तो, शरीर को स्वस्थ रखना ही होगा। जिसके लिए वह योग और कसरत पर विशेष बल दिया करते थे। स्वामी जी खेल में भी निपुण थे, वह विभिन्न प्रकार के खेलों में भाग लेते तथा प्रतियोगिता को अपने बाहुबल से जितते भी थे।

स्वामी विवेकानंद ने पश्चिमी देश के धर्म, संस्कृति, विचारधारा और महान लेखकों के साहित्य का विस्तार पूर्वक अध्ययन किया था। उन्होंने यूरोप, अमेरिका, फ्रांस, रूस, जर्मनी आदि विकसित देशों के महान दार्शनिकों की पुस्तकें और उनके शोध को गहनता से अध्ययन किया था।

1881 में विवेकानंद जी ने ललित कला की परीक्षा दी, जिसमें वह सफलतापूर्वक उच्च अंकों के साथ उत्तीर्ण हुए।

1884 में उनका स्नातक भी सफलतापूर्वक पूर्ण हो गया था।

स्वामी जी का शिक्षा के प्रति काफी लगाव था, जिसके कारण उन्होंने संस्कृत के साहित्य को विकसित किया। क्षेत्रीय भाषा बांग्ला में अनेकों साहित्य का अनुवाद किया। संभवत उपन्यास, कहानी, नाटक और महाकाव्य हिंदी साहित्य में बांग्ला साहित्य के माध्यम से ही आया था।

Swami vivekananda biography in Hindi - स्वामी विवेकानंद

सामाजिक दृष्टिकोण – Swami Vivekananda views towards society

स्वामी विवेकानंद की सामाजिक दृष्टि समन्वय भाव की थी। वह सभी जातियों को एक समान दृष्टि से देखते थे। यही कारण है सभी जाती और मानव कल्याण के लिए ब्रह्म समाज की स्थापना की। उन्होंने वेद-वेदांत, धर्म, संस्कृति आदि की शिक्षा प्राप्त की थी। वह ईश्वर को एक मानते थे। उनका मानना था कि ईश्वर एक है, उसे पूजने और मानने का तरीका अलग-अलग है। उन्होंने अनेक मठ की स्थापना धर्म के विकास के लिए ही किया था।

स्वामी जी मूर्ति पूजा का विरोध किया करते थे, उन्होंने अपने भीतर ईश्वर की मौजूदगी का एहसास दिलाया था। उन्होंने स्पष्ट किया था कि ब्रह्मांड की सभी सार्थक शक्तियां व्यक्ति के भीतर निहित होती है। अपनी साधना और शक्ति के माध्यम से उन सभी दिव्य शक्तियों को जागृत किया जा सकता है।

इसलिए वह सदैव कर्मकांड और बाह्य आडंबरों, पुरोहितवाद पर चोट करते थे।

समाज के कल्याण के लिए वह जमीनी स्तर पर कार्य कर रहे थे। जहां एक और समाज में जाति-धर्म व्यवस्था आदि की पराकाष्ठा थी। वही स्वामी जी ने उन सभी जाति धर्म और वर्ण में समन्वय स्थापित करने के लिए अथक प्रयास किया। स्वामी जी ने समाज कल्याण के लिए जमीनी स्तर पर सराहनीय कार्य किया। ब्रह्म समाज की स्थापना कर उन्होंने समाज में बहिष्कृत जाति आदि को मान्यता दी।

स्वामी विवेकानंद एक ऐसे समाज का सपना देखते थे जहां भेदभाव जाति के आधार पर ना हो। वह इसीलिए ब्रह्मावाद, भौतिकवाद, मूर्ति पूजा पर, अंग्रेजों द्वारा फैलाए गए धर्म और अनाचार के विरुद्ध वह सदैव कार्य कर रहे थे। उन्होंने समाज में युवाओं द्वारा किया जा रहा मदिरापान तथा अन्य व्यसनों को दूर करने के लिए कार्य किया। कई उपदेश दिए और अपने सहयोगियों के साथ उन सभी केंद्रों को बंद करवाया।

वह अमीरी-गरीबी, ऊंच-नीच आदि को समाज से दूर करना चाहते थे।

उन्होंने सेठ महाजन ओ आदि के द्वारा किया जा रहा , सामान्य जनता पर अत्याचार आदि को भी दूर करने का प्रयत्न किया । स्वामी जी ने नर सेवा को ही नारायण सेवा मानकर समाज के प्रति अपना सम्मान जनक दृष्टिकोण रखा।

स्वामी विवेकानंद जी की स्मरण शक्ति – Swami Vivekananda memory powers

Swami Vivekananda memory power

स्वामी जी की स्मरण शक्ति अतुलनीय थी। वह बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे, अपनी कक्षा की पाठ्य सामग्री को कुछ ही दिनों में समाप्त कर दिया करते थे। जहां उसके अध्ययन में अन्य बच्चों को पूरा वर्ष लग जाया करता था। बड़े से बड़े धार्मिक ग्रंथ और साहित्य की पुस्तकों को उन्होंने अक्षर से याद किया हुआ था। उनकी स्मरण शक्ति इतनी तीव्र थी कि उनसे पढ़ी हुई पुस्तक को पूछने पर पृष्ठ संख्या सहित प्रत्येक शब्द बता दिया करते थे।

स्मरण शक्ति के पीछे उनके आरंभिक जीवन के ज्ञान का अहम योगदान है।

स्वामी विवेकानंद के दादाजी धार्मिक प्रवृत्ति के थे, उन्होंने संस्कृत और फारसी पर अच्छी पकड़ बनाई हुई थी। वह इन साहित्यों का गहन अध्ययन कर चुके थे। विवेकानंद जी की माता जी धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी। उन्होंने पूजा-पाठ, कीर्तन-भजन और धार्मिक पुस्तकों, वेद आदि को नित्य प्रतिदिन पढ़ना और सुनना अपनी दिनचर्या में शामिल किया हुआ था। पिता प्रसिद्ध वकील थे, उनकी वकालत कोलकाता हाईकोर्ट में उच्च श्रेणी की थी।

इन सभी संस्कारों के कारण स्वामी विवेकानंद कुशाग्र बुद्धि के हुए। उन्होंने ईश्वर के प्रति जानने की इच्छा और स्वयं अपने भीतर के ईश्वर को पहचानने का यत्न किया। जिसके कारण उनकी स्मरण शक्ति अतुलनीय होती गई।

स्वामी विवेकानंद जी की तार्किक शक्ति – Swami Vivekananda Logical thinking

जैसा कि हम जानते हैं स्वामी जी का आरंभिक जीवन वेद-वेदांत, भगवत गीता, रामायण आदि को पढ़ते-सुनते बीता था। वह कुशाग्र बुद्धि के थे, उन्होंने अपने घर आने वाले कथा वाचक को ऐसे-ऐसे प्रश्न जाल में उलझाया था।  जिनका जवाब उनके पास नहीं था। वह जीव, माया, ईश्वर, जगत, दुख आदि के विषय में अनेकों ऐसे प्रश्न जान लिए थे जिनका कोई तोड़ नहीं था।

इस कारण स्वामी जी की बौद्धिक शक्ति का विस्तार हुआ। वह सभ्य समाज में बैठने लगे, उनकी ख्याति दिन प्रतिदिन बढ़ती गई। उनके जवाब इस प्रकार के होते, जिसके आगे सामने वाला व्यक्ति निरुत्तर हो जाता। उसे संतुष्टि हो जाती, इस जवाब के अतिरिक्त कोई और जवाब नहीं हो सकता।

उनकी तर्कशक्ति इतनी प्रसिद्ध थी कि, बड़े से बड़े विद्वान, नीतिवान और चिंतकों ने स्वामी विवेकानंद से शास्त्रार्थ किया।

योग के प्रति स्वामी विवेकानंद जी का दृष्टिकोण – Swami Vivekananda view towards Yoga

Swami Vivekananda views on Yoga in Hindi

स्वामी जी का स्पष्ट मानना था स्वस्थ मस्तिष्क के लिए , स्वस्थ शरीर का होना अति आवश्यक है। योग साधना पर उन्होंने विशेष बल दिया था। योग के माध्यम से व्यक्ति अपने शरीर के भीतर निहितदिव्य शक्तियों को जागृत कर बड़े से बड़ा कार्य कर सकता है। स्वयं स्वामी विवेकानंद प्रतिदिन काफी समय तक योग किया करते थे। उनकी बुद्धि और शरीर सभी उनके नियंत्रण से कार्य करती थी। इस प्रकार की दिव्य साधना स्वामी जी ने एकांतवास में किया था।

वह समाज में योग को विशेष महत्व देते हुए, योग के प्रति प्रेरित करते थे। संसार जहां व्यभिचार और व्यसनों में बर्बाद हो रहा है, वही योग का अनुकरण कर ईश्वर की प्राप्ति होती है। योग के द्वारा माया को दूर भी किया जा सकता है। एक सिद्ध योगी अपने शक्तियों के माध्यम से सांसारिक मोह-माया से बचता है, आत्मा-परमात्मा के बीच का भेद मिटाता है।

स्वामी विवेकानंद जी की दार्शनिक विचारधारा – Swami Vivekananda Philosophy

स्वामी विवेकानंद बचपन से ही धर्म-संस्कृति में विशेष रूचि रखते थे। स्वामी जी ने अपनी बुद्धि का प्रयोग धर्म – संस्कृति तथा जीव , माया , ईश्वर आदि को जानने में प्रयोग किया। वह अद्वैतवाद को मानते थे, जिसका संस्कृत में अर्थ है एकतत्ववाद या जिसका दो अर्थ नहीं हो । जो ईश्वर है वही सत्य है, ईश्वर के अलावा सब माया है।

यह संसार माया है, इसमें पडकर व्यक्ति अपना जीवन बर्बाद कर देता है। ईश्वर उस माया को दूर करता है, इस माया को दूर करने का एक माध्यम ज्ञान है। जिसने ज्ञान को हासिल किया वह इस माया से बच गया।

इस प्रकार के विचार स्वामी विवेकानंद के थे, इसलिए उन्होंने अद्वैत आश्रम का मायावती स्थान पर किया था। अनेक मठों की स्थापना उन्होंने स्वयं की। देश-विदेश का भ्रमण करके उन्होंने ईश्वर सत्य जग मिथ्या पर अपना संदेश लोगों को सुनाया।

लोगों ने इसे स्वीकार करते हुए स्वामी जी के विचारों को अपनाया है।

स्वामी जी मूर्ति पूजा के विरोधी थे, उन्होंने युक्ति संगत बातों को समाज के बीच रखा। वेद-वेदांत, धर्म, उपनिषद आदि का सरल अनुवाद लोगों के समक्ष प्रकट किया। उनके साथ उनकी पूरी टोली कार्य किया करती थी।

संभवत वह केशव चंद्र सेन और देवेंद्र नाथ टैगोर के नेतृत्व में भी कार्य करते थे।

1881 – 1884 के दौरान उन्होंने धूम्रपान, शराब और व्यसन से दूर रहने के लिए युवाओं को प्रेरित किया। उनके दुष्परिणामों को उनके समक्ष रखा। जिससे काफी संख्या में युवा प्रभावित हुए, आज से पूर्व उन्हें इस प्रकार का ज्ञान किसी और ने नहीं दिया था। देश में फैल रहे अवैध रूप से ईसाई धर्म को भी उन्होंने प्रबल इच्छाशक्ति के साथ रोकने का प्रयत्न किया। ईसाई मिशनरी देश की भोली-भाली जनता को प्रलोभन देकर धर्मांतरण करा रही थी।

इसका विरोध भी स्वामी जी ने किया था।

स्वामी विवेकानंद ने ब्रह्म समाज की स्थापना की थी जिसका मूल उद्देश्य वेदो की ओर लोटाना था।

स्वामी विवेकानंद जी थे धर्म-संस्कृति के प्रबल समर्थक

विवेकानंद जी का बाल संस्कार धर्म और संस्कृति पर आधारित था। उन्हें बाल संस्कार के रूप में वेद – वेदांत, भगवत, पुराण, गीता आदि का ज्ञान मिला था। जिस व्यक्ति के पास इस प्रकार का ज्ञान हो वह व्यक्ति महान हो जाता है। समाज में वह पूजनीय स्थान प्राप्त कर लेता है। इस ज्ञान की प्राप्ति के बाद वह किसी और ज्ञान का आश्रित नहीं रह जाता।

उन्होंने विद्यालय शिक्षा अवश्य प्राप्त की थी, किंतु उन्हें विद्यालयी शिक्षा सदैव बोझ लगा। यह केवल समय बर्बादी के अलावा और कुछ नहीं था।  विद्यालयी शिक्षा अंग्रेजी शिक्षा नीति पर आधारित थी। जहां केवल ईसाई धर्म आदि का महिमामंडन किया गया था। यह शिक्षा समाज के लिए नहीं थी।समाज का एक बड़ा वर्ग जहां अशिक्षित था।

शिक्षा की कमी के कारण वह समाज निरंतर विघटन की ओर जा रहा था। 

अतः समाज में ऐसी शिक्षा की कमी थी जो समाज को सन्मार्ग पर ले जाए।

निरंतर सामाजिक मूल्यों का ह्रास हो रहा था, धर्म की हानि हो रही थी। स्वामी जी ने अपने बुद्धि बल का प्रयोग कर समाज को एकजुट करने का प्रयास किया। उन्होंने सभी मोतियों को एक माला में पिरोने का कार्य किया।

विवेकानंद जी ने जगह-जगह घूमकर धर्म-संस्कृति का प्रचार-प्रसार किया।

लोगों को, समाज को यह विश्वास दिलाया कि वह महान और दिव्य कार्य कर सकते हैं। बस उन्हें इच्छा शक्ति जागृत करनी है। उन्होंने माया और जगत मिथ्या हे लोगों के समक्ष प्रस्तुत किया।

ईश्वर की सत्ता को परम सत्य के रूप में प्रकट किया।

स्वामी जी ने मठ तथा आश्रम की स्थापना कर धर्म और संस्कृति के क्षेत्र में अपना विशेष योगदान दिया। उन्होंने ऐसे सहयोगी तथा शिष्य को तैयार किया। जो समाज के बीच जाकर, उनके बीच फैली हुई अज्ञानता को दूर करते थे।

धर्म तथा संस्कृति के वास्तविक मूल्यों को सामने रखने का प्रयत्न किया।

शरीर के प्रति स्वामी विवेकानंद जी के विचार

स्वस्थ शरीर होने की वकालत सदैव स्वामी विवेकानंद जी करते रहे। वह हमेशा कहते थे , स्वस्थ शरीर के रहते हुए ही स्वस्थ कार्य अर्थात अच्छे कार्य किए जा सकते हैं। अच्छी शक्तियां शरीर के भीतर तभी जागृत होती है, जब मन और शरीर स्वच्छ हो। वह स्वयं खेल-कूद और शारीरिक प्रतियोगिता में भाग लिया करते थे।

शारीरिक कसरत उनकी दिनचर्या में शामिल थी। उनका शरीर, कद-काठी उनके ज्ञान की भांति ही मजबूत और शक्तिशाली थी।

स्वामी विवेकानंद जी का वेदों की और लोटो से आशय

स्वामी जी के समय समाज में व्याप्त आडंबर, पुरोहितवाद, मूर्ति पूजा और विदेशी धर्म संस्कृति, भारतीय सनातन संस्कृति की नींव खोद रही थी। उन्होंने स्वयं वेद-वेदांत, पुराण तथा अन्य प्रकार के धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन किया था। इस अध्ययन में वह निपुण हो गए थे। उन्होंने ईश्वर और जगत के बीच माया-मोह का अंतर जाने लिया था। वह सभी लोगों को ईश्वर की ओर अपना ध्यान लगाने के लिए प्रेरित किया। इसीलिए उन्होंने वेदों की ओर लौटो का नारा बुलंद किया।

इस नारे को लेते हुए वह विदेश भी गए, वहां उन्हें काफी सराहना मिली। अमेरिका, यूरोप, रूस, फ्रांस आदि विकसित देशों ने भी स्वामी जी के विचारों को सराहा। उनके विचारों से प्रेरित हुए, जिसके कारण वहां आश्रम तथा मठ की स्थापना हो सकी। वहां ऐसे शिक्षक तैयार हो सके जो स्वामी जी के विचारों को आगे लेकर जाए।

स्वामी विवेकानंद जी की प्रसिद्धि

स्वामी जी की प्रसिद्धि देश ही नहीं अपितु विदेश में भी थी। उनकी कुशाग्र बुद्धि और तर्कशक्ति का लोहा पूरा भारत तो मानता ही था। जब उन्होंने अमेरिका के शिकागो में अपना ऐतिहासिक भाषण धर्म सम्मेलन में दिया।

उनकी ख्याति रातो-रात विदेश में भी बढ़ गई।

स्वामी जी की प्रसिद्धि अब विदेशों में भी हो गई थी।

उनसे मिलने के लिए विदेश के बड़े से बड़े दार्शनिक, चिंतक, आदि लालायित रहा करते थे।

स्वामी जी से मुलाकात किसी भी विद्वान के लिए सौभाग्य की बात हुआ करती थी। स्वामी जी भारतीय सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व करते थे। सनातन धर्म से अपने धर्म को श्रेष्ठ बताने वाले अनेकों दूसरे धर्म के प्रचारक भेंट करने को आतुर रहते। स्वामी जी के तर्कशक्ति के आगे बड़े से बड़ा विचारक, दार्शनिक आदि धाराशाही हो जाते। वह किसी भी साहित्य को बिना खोले बाहर सही अध्ययन करने की क्षमता रखते थे।

इस प्रतिभा ने स्वामी जी को और प्रसिद्धि दिलाई।

फ्रांस, जर्मनी, रूस और अमेरिका तथा अन्य देशों की ऐसी घटनाएं यह साबित करती है कि उनकी प्रसिद्धि किस स्तर पर थी।

फ़्रांस के महान दार्शनिक के घर जब वह आतिथ्य हुए तब उनकी पंद्रह सौ से अधिक पृष्ठ की पुस्तक को एक घंटे में बिना खोलें अध्ययन किया। यह अध्ययन पृष्ठ संख्या सहित, अक्षरसः था।

इस प्रतिभा से फ्रांस का वह दार्शनिक स्वामी जी का शिष्य हो गया।

अंग्रेजी भाषा के प्रतिस्वामी विवेकानंद जी का दृष्टिकोण

स्वामी विवेकानंद अपनी मातृभाषा के प्रति समर्पित थे। वह बांग्ला, संस्कृत, फ़ारसी आदि भाषाओं को जानते थे। इन भाषाओं में वह काफी अच्छा ज्ञान रखते थे। अंग्रेजी भाषा के प्रति उनका दृष्टिकोण अलग था। वह अंग्रेजी भाषा को कभी भी हृदय से स्वीकार नहीं करते थे। उनका मानना था जिन लुटेरों और आतंकियों ने उनकी मातृभूमि को क्षति पहुंचाई है।

उनकी भाषा को जानना भी पाप है।

इस पाप से वह सदैव बचते रहे।

जब आभास हुआ, भारतीय संस्कृति को तथाकथित अंग्रेजी विद्वानों के सामने रखने के लिए उनकी भाषा की आवश्यकता होगी। स्वामी जी ने उनकी भाषा में, उनको समझाने के लिए अंग्रेजी का अध्ययन किया। वह अंग्रेजी में इतने निपुण हो गए, उन्होंने अंग्रेजी के महान दार्शनिक, चिंतकों और विचारकों के साहित्य को विस्तारपूर्वक अक्षर से अध्ययन किया। इतना ही नहीं उनकी महानता को बताने वाले, सभी धार्मिक साहित्य का भी गहनता से अध्ययन किया। जिसका परिणाम हम अनेकों धर्म सम्मेलनों में देख चुके हैं।

मतिभूमि के प्रति स्वामी विवेकानंद जी का प्रेम

विवेकानंद जी की देशभक्ति अतुलनीय थी। एक समय की बात है ,स्वामी जी विदेश यात्रा कर समुद्र मार्ग से अपने देश लौटे। यहां जहाज से उतर कर उन्होंने मातृभूमि को झुककर प्रणाम किया। यह संत यहीं नहीं रुका।जमीन में इस प्रकार लौटने लगा, जैसे प्यास से व्याकुल कोई व्यक्ति। यह प्यास अपनी मातृभूमि से मिलने की थी, जो उद्गार रूप में प्रकट हुई थी। स्वामी जी अपनी मातृभूमि के प्रति निष्ठा और सम्मान की भावना संभवत अपने बाल संस्कारों से लिए थे।

बालक नरेंद्र ने अपने दादा को देखा था।

जिन्होंने पच्चीस वर्ष की अल्पायु में ही अपने परिवार का त्याग कर सन्यास धारण किया था। ऐसा कौन युवा होता है जो इतनी कम आयु में संन्यास लेता है।

संभवत नरेंद्र ने भी राष्ट्रभक्ति का प्रथम अध्याय अपने घर से ही पढ़ा था।

स्वामी विवेकानंद जी के अद्भुत सुविचार

१.  कोई तुम्हारी मदद नहीं कर सकता अपनी मदद स्वयं करो तुम खुद के लिए सबसे अच्छे मित्र हो और सबसे बड़े दुश्मन भी। ।

स्वामी जी कहते हैं तुम्हारी मदद कोई और नहीं कर सकता , जब तक तुम स्वयं की मदद नहीं करते। मनुष्य को यहां तक कि किसी के मदद की आवश्यकता नहीं होती। वह स्वयं अपनी मदद कर सकता है। व्यक्ति स्वयं का जितना अच्छा मित्र होता है, उतना ही बड़ा दुश्मन भी। यह उसके व्यवहार पर निर्भर करता है कि, वह स्वयं से दोस्ती करना चाहता है या दुश्मनी।

२.  हम जितना ज्यादा बाहर जाएंगे और दूसरों का भला करेंगे हमारा हृदय उतना ही शुद्ध होता जाएगा और परमात्मा उसमें निवास करेंगे। ।

भारत में नर सेवा को नारायण सेवा माना गया है। स्वामी जी इसका पुरजोर समर्थन करते हैं, उन्होंने कहा है व्यक्ति जितना बाहर निकल कर दीन – दुखीयों  और आवश्यक लोगों की सेवा करेगा। उस व्यक्ति का हृदय उतना ही पवित्र होगा। पवित्र हृदय में ही परमात्मा का सच्चा निवास होता है। प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए वह दिन दुखियों की सेवा करे।

३. कुछ ऊर्जावान व्यक्ति एक साल में इतना कर देता है , जितना भीड़ एक हजार साल में नहीं कर सकती। ।

बड़ी सफलता और उपलब्धि हासिल करने वाले कुछ ही लोग होते हैं।

ऐसे ऊर्जावान व्यक्ति कुछ ही समय में ऐसा कार्य कर दिखाते हैं, जो बड़े से बड़ा जनसमूह हजारों साल में नहीं कर सकता। वर्तमान समय में भी ऐसे लोग विद्यमान है।

ऐसे ही लोगों के कारण आज का विज्ञान सूरज और चांद से आगे निकल चुका है।

४. कोई एक विचार लो , और उसे ही जीवन बना लो उसी के बारे में सोचो , उसके सपने देखो उसे मस्तिष्क में , मांसपेशियों में , नसों में और शरीर के हर हिस्से में डूब जाने दो। दूसरे सभी विचारों को अलग रख दो यही सफल होने का तरीका है। ।

स्वामी जी का मानना था किसी एक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उसके पीछे दिन-रात की मेहनत लगानी पड़ती है। उसे अपने प्रत्येक इंद्रियों में समाहित करना पड़ता है। उसके प्रति लगन समर्पण का भाव रखना पड़ता है , तब जाकर सफलता प्राप्त होती है। जो इस प्रकार के यत्न नहीं करते उन्हें सफलता दुष्कर लगती है।

५.  विकास ही जीवन है और संकोच ही मृत्यु प्रेम ही विकास है और स्वार्थपरता ही संकोच एतव प्रेम ही जीवन का एकमात्र नियम है जो प्रेम करता है , वह जीता है जो स्वार्थी है , वह मरता है एतव प्रेम के लिए ही प्रेम करो क्योंकि प्रेम ही , जीवन का एकमात्र नियम है। ।

माना जाता है प्रेम से शुद्ध और कोई चीज नहीं होती। व्यक्ति के जीवन में प्रेम अहम भूमिका निभाती है , प्रेम जितना शुद्ध होगा व्यक्ति उतना ही योग्य होगा। जिस व्यक्ति के मन में स्वार्थ और संकोच की भावना होती है , वह मृत्यु के समान बर्ताव करती है। जीवन का एक मात्र सत्य प्रेम है प्रेम के प्रति व्यक्ति को समर्पण भाव रखते हुए स्वीकार करना चाहिए।

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स्वामी विवेकानंद जी के जीवन की महत्वपूर्ण तिथियां

  • 12 जनवरी 1863 – कोलकाता (वर्तमान पश्चिम बंगाल) में जन्म ।
  • 1871 प्राथमिक शिक्षा के लिए ईश्वर चंद्र विद्यासागर मेट्रोपॉलिटन संस्था कोलकाता में दाखिला।
  • 1877 परिवार रायपुर चला गया।
  • 1879 प्रेसिडेंसी कॉलेज प्रवेश परीक्षा में अव्वल हुए।
  • 1880 जनरल असेंबली इंस्टिट्यूट में प्रवेश।
  • 1881 ललित कला की परीक्षा उत्तीर्ण की
  • नवंबर 1881 रामकृष्ण परमहंस से भेंट।
  • 1882 – 86 रामकृष्ण परमहंस के सानिध्य में रहे
  • 1884  स्नातक की परीक्षा सफलतापूर्वक उत्तीर्ण किया
  • 1884 पिता का स्वर्गवास
  • 16 अगस्त 1886 रामकृष्ण परमहंस का निधन
  • 1886 वराहनगर मठ की स्थापना किया
  • 1887 वडानगर मठ से औपचारिक सन्यास धारण किया
  • 1890-93 परिव्राजक के रूप में भारत भ्रमण किया
  • 25 दिसंबर 1892 कन्याकुमारी में निवास किया
  • 13 फरवरी 1893 प्रथम व्याख्यान सिकंदराबाद में दिया
  • 31 मई 1893 मुंबई से अमेरिका के लिए जल मार्ग से रवाना हुए
  • 25 जुलाई 1893 कनाडा पहुंचे
  • 30 जुलाई 1893 शिकागो शहर पहुंचे
  • अगस्त 1893 हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जॉन राइट से मुलाकात हुई
  • 11 सितंबर 1893 विश्व धर्म सम्मेलन शिकागो में ऐतिहासिक व्याख्यान
  • 16 मई 1894 हार्वर्ड विश्वविद्यालय में व्याख्यान
  • नवंबर 1894 न्यूयॉर्क में वेदांत समिति की स्थापना
  • जनवरी 1895 न्यूयॉर्क में धार्मिक कक्षाओं का संचालन आरंभ

अगस्त 1895 वह पेरिस गए

  • अक्टूबर 1895 लंदन में अपना व्याख्यान दिया
  • 6 दिसंबर 1895 न्यूयॉर्क वापस आए
  • 22-25 मार्च 1886 वह पुनः लंदन आ गए
  • मई तथा जुलाई 1896 में हार्वर्ड विश्वविद्यालय में व्याख्यान दिया
  • 28 मई 1896 ऑक्सफोर्ड में मैक्स मूलर से भेंट किया
  • 30 दिसंबर 1896 नेपाल से भारत की ओर रवाना हुए
  • 15 जनवरी 1897 कोलंबो श्री लंका पहुंचे
  • जनवरी 1897 रामेश्वरम में उनका जोरदार स्वागत हुआ साथ ही एक व्याख्यान भी
  • 6- 15 1897 मद्रास में भ्रमण किया
  • 19 फरवरी 1897 वह कोलकाता आ गए
  • 1 मई 1897  रामकृष्ण मिशन की स्थापना की
  • मई- दिसंबर 1897 उत्तर भारत की महत्वपूर्ण यात्रा की
  • जनवरी 1898 कोलकाता वापस हो गए
  • 19 मार्च 1899 अद्वैत आश्रम की स्थापना की
  • 20 जून 1899 पश्चिम देशों के लिए दूसरी यात्रा का आरंभ किया
  • 31 जुलाई 1899 न्यूयॉर्क पहुंचे
  • 22 फरवरी 1900 सैन फ्रांसिस्को में वेदांत की स्थापना की
  • जून 1900 न्यूयॉर्क में अंतिम कक्षा का आयोजन हुआ
  • 26 जुलाई 1900 यूरोप के लिए रवाना हुए
  • 24 अक्टूबर 1900 विएना , हंगरी , कुस्तुनतुनिया , ग्रीस , मिश्र आदि देशों की यात्रा किया
  • 26 नवंबर 1900 भारत को रवाना हुए
  • 6 दिसंबर 1900 बेलूर मठ में आगमन हुआ
  • 10 जनवरी 1901 अद्वैत आश्रम में भ्रमण किया
  • मार्च – मई1901 पूर्वी बंगाल और असम की तीर्थ यात्रा की
  • जनवरी-फरवरी1902 बोधगया और वाराणसी की यात्रा की
  • मार्च 1902 बेलूर मठ वापसी हुई
  • 4 जुलाई 1902 स्वामी विवेकानंद जी ने महासमाधि धारण की

स्वामी विवेकानंद जी पर आधारित कहानी

बालक नरेंदर बुद्धि का धनी था। वह अन्य विद्यार्थियों से बिल्कुल अलग था, जानने की जिज्ञासा उसके भीतर सदैव जागृत रहती थी।

स्वभाव से वह खोजी प्रवृत्ति का था।जब तक किसी विषय के उद्गम-अंत आदि का विस्तार से अध्ययन नहीं करता, चुप नहीं बैठा करता ।

यही कारण है उसका नाम  नरेंद्र नाथ दत्त  से  स्वामी विवेकानंद  हो गया ।

विवेकानंद कहलाने के पीछे भी उनके गुरु की अहम भूमिका है।

नरेंद्र बचपन से ही कुशाग्र और तीक्ष्ण बुद्धि के थे। वह किसी भी विषय को बेहद ही सरल और कम समय में अध्ययन कर लिया करते थे। उनका ध्यान विद्यालय शिक्षा पर अधिक नहीं लगता था।

वह उन्हें अरुचिकर विषय जान पड़ता था। 

विद्यालय पाठ्यक्रम को वह कुछ दिन में ही समाप्त कर लिया करते थे। इसके कारण उन्हें फिर भी अन्य विद्यार्थियों के साथ वर्ष भर इंतजार करना पड़ता था , यह उन्हें बोझिल लगता था।

नरेंद्र की स्मरण शक्ति इतनी तीव्र थी , वह कुछ क्षण में पूरी पुस्तक का अध्ययन अक्षरसः कर लिया करते थे। उनकी इस प्रतिभा से उनके  गुरु रामकृष्ण परमहंस  काफी प्रभावित थे। नरेंद्र की इस प्रतिभा को देखते हुए वह प्यार से  विवेकानंद  पुकारा करते थे।

भविष्य में यही नरेंद्र स्वामी विवेकानंद के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

अल्पायु में स्वामी विवेकानंद ने वेद-वेदांत, गीता, उपनिषद आदि का विस्तार पूर्वक अध्ययन कर लिया था।

यह उनके स्मरण शक्ति का ही परिचय है।

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स्वामी विवेकानंद जी की जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम है। मनुष्य होते हुए भी उनमें आलौकिक गुण विद्यमान थे जो उन्हें औरों से अलग बनाता था। भारतीय ही नहीं बल्कि पुराने जमाने में विदेश में भी उनकी प्रशंसा की जाती थी और वहां के लोग विवेकानंद जी पर किताब लिखते थे और उनकी प्रशंसा करते थे।

ऐसे महान व्यक्ति सदी में एक बार जन्म लेते हैं। इनसे जितना हो सके उतना लोगों को सीखना चाहिए और अपने जीवन को बदलना चाहिए। आशा है यह लेख आपको काफी पसंद आया होगा और आपको बहुत कुछ सीखने को मिला होगा। आप अपने विचार हम तक कमेंट सेक्शन में लिखकर पहुंचा सकते हैं।

आप हमारे द्वारा लिखी अन्य महान लोगों पर जीवनी भी पढ़ सकते हैं नीचे दिए गए लिंक के माध्यम से

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इस लेख को अंत तक पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद।

अगर आपके मन में कोई भी प्रश्न या फिर दुविधा है इस लेख से संबंधित तो आप हमें नीचे कमेंट सेक्शन में लिखकर सूचित कर सकते हैं।

4 thoughts on “स्वामी विवेकानंद जी की सम्पूर्ण जीवनी, Swami Vivekananda jivani”

महान व्यक्तियों में स्वामी विवेकानंद जी को मैं काफी फॉलो करता हूं और वह मेरे लिए काफी बड़े प्रेरणा के स्रोत हैं. उनके द्वारा कहा गया एक एक शब्द एक किताब के बराबर है जिसके मूल्य को नापना बहुत मुश्किल है. उनकी जीवनी लिखकर आपने बहुत अच्छा काम किया है

स्वामी विवेकानंद जी एक महान व्यक्ति थे जिनका चरित्र चित्रण आपने बहुत अच्छे तरीके से किया है. परंतु इसमें कुछ बातें नहीं लिखी जो मैं चाहता हूं कि आप यहां पर लिखें जैसे कि उन्होंने कौन सी स्पीच दी थी।

स्वामी विवेकानंद जी के गुरू रामकृष्ण परमहंस जी थे जो काली के उपासक थे

बहुत बहुत साधुवाद आपकी पुरी टीम को जिन्होंने इतनी मेहनत कर के हम सभी तक स्वामी जी के जीवन की अमुल्य बातें पहुचाई

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  • स्वामी विवेकानन्द
स्वामी विवेकानन्द
नरेंद्रनाथ दत्त (मूल नाम)
,
(वर्तमान )
,
,
विश्वनाथदत्त (पिता)
दार्शनिक, धर्म प्रवर्तक और संत
योग, राजयोग, ज्ञानयोग
, और
स्नातक
आध्यात्मिक गुरु
भारतीय
, ,
भारतविद ए. एल. बाशम ने विवेकानन्द को का पहला व्यक्ति बताया, जिन्होंने पूर्व की आध्यात्मिक संस्कृति के मित्रतापूर्ण प्रत्युत्तर का आरंभ किया और उन्हें आधुनिक विश्व को आकार देने वाला घोषित किया।

स्वामी विवेकानन्द ( अंग्रेज़ी : Swami Vivekananda , जन्म: 12 जनवरी , 1863 , कलकत्ता ; मृत्यु: 4 जुलाई , 1902 बेलूर ) एक युवा संन्यासी के रूप में भारतीय संस्कृति की सुगन्ध विदेशों में बिखेरने वाले साहित्य , दर्शन और इतिहास के प्रकाण्ड विद्वान् थे। विवेकानन्द जी का मूल नाम 'नरेंद्रनाथ दत्त' था, जो कि आगे चलकर स्वामी विवेकानन्द के नाम से विख्यात हुए। युगांतरकारी आध्यात्मिक गुरु, जिन्होंने हिन्दू धर्म को गतिशील तथा व्यावहारिक बनाया और सुदृढ़ सभ्यता के निर्माण के लिए आधुनिक मानव से पश्चिमी विज्ञान व भौतिकवाद को भारत की आध्यात्मिक संस्कृति से जोड़ने का आग्रह किया। कलकत्ता के एक कुलीन परिवार में जन्मे नरेंद्रनाथ चिंतन, भक्ति व तार्किकता, भौतिक एवं बौद्धिक श्रेष्ठता के साथ-साथ संगीत की प्रतिभा का एक विलक्षण संयोग थे। भारत में स्वामी विवेकानन्द के जन्म दिवस को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

विश्वनाथदत्त पाश्चात्य सभ्यता में आस्था रखने वाले व्यक्ति थे। विश्वनाथदत्त के घर में उत्पन्न होने वाला उनका पुत्र नरेन्द्रदत्त पाश्चात्य जगत् को भारतीय तत्वज्ञान का सन्देश सुनाने वाला महान् विश्व-गुरु बना। स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी , 1863 में कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता ), भारत में हुआ। रोमा रोलाँ ने नरेन्द्रदत्त (भावी विवेकानन्द) के सम्बन्ध में ठीक कहा है- "उनका बचपन और युवावस्था के बीच का काल योरोप के पुनरुज्जीवन-युग के किसी कलाकार राजपूत्र के जीवन-प्रभात का स्मरण दिलाता है।" बचपन से ही नरेन्द्र में आध्यात्मिक पिपासा थी। सन् 1884 में पिता की मृत्यु के पश्चात् परिवार के भरण-पोषण का भार भी उन्हीं पर पड़ा। स्वामी विवेकानन्द ग़रीब परिवार के थे। नरेन्द्र का विवाह नहीं हुआ था। दुर्बल आर्थिक स्थिति में स्वयं भूखे रहकर अतिथियों के सत्कार की गौरव-गाथा उनके जीवन का उज्ज्वल अध्याय है। नरेन्द्र की प्रतिभा अपूर्व थी। उन्होंने बचपन में ही दर्शनों का अध्ययन कर लिया। ब्रह्मसमाज में भी वे गये, पर वहाँ उनकी जिज्ञासा शान्त न हुई। प्रखर बुद्धि साधना में समाधान न पाकर नास्तिक हो चली।

1879 में 16 वर्ष की आयु में उन्होंने कलकत्ता से प्रवेश परीक्षा पास की। अपने शिक्षा काल में वे सर्वाधिक लोकप्रिय और एक जिज्ञासु छात्र थे। किन्तु हरबर्ट स्पेन्सर [1] के नास्तिकवाद का उन पर पूरा प्रभाव था। स्नातक उपाधि प्राप्त करने के बाद वे ब्रह्म समाज में शामिल हुए, जो हिन्दू धर्म में सुधार लाने तथा उसे आधुनिक बनाने का प्रयास कर रहा था।

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रामकृष्ण से भेंट

युवावस्था में उन्हें पाश्चात्य दार्शनिकों के निरीश्वर भौतिकवाद तथा ईश्वर के अस्तित्व में दृढ़ भारतीय विश्वास के कारण गहरे द्वंद्व से गुज़रना पड़ा। परमहंस जी जैसे जौहरी ने रत्न को परखा। उन दिव्य महापुरुष के स्पर्श ने नरेन्द्र को बदल दिया। इसी समय उनकी भेंट अपने गुरु रामकृष्ण से हुई, जिन्होंने पहले उन्हें विश्वास दिलाया कि ईश्वर वास्तव में है और मनुष्य ईश्वर को पा सकता है। रामकृष्ण ने सर्वव्यापी परमसत्य के रूप में ईश्वर की सर्वोच्च अनुभूति पाने में नरेंद्र का मार्गदर्शन किया और उन्हें शिक्षा दी कि सेवा कभी दान नहीं, बल्कि सारी मानवता में निहित ईश्वर की सचेतन आराधना होनी चाहिए। यह उपदेश विवेकानंद के जीवन का प्रमुख दर्शन बन गया। कहा जाता है कि उस शक्तिपात के कारण कुछ दिनों तक नरेन्द्र उन्मत्त-से रहे। उन्हें गुरु ने आत्मदर्शन करा दिया था। पचीस वर्ष की अवस्था में नरेन्द्रदत्त ने काषायवस्त्र धारण किये। अपने गुरु से प्रेरित होकर नरेंद्रनाथ ने संन्यासी जीवन बिताने की दीक्षा ली और स्वामी विवेकानंद के रूप में जाने गए। जीवन के आलोक को जगत के अन्धकार में भटकते प्राणियों के समक्ष उन्हें उपस्थित करना था। स्वामी विवेकानंद ने पैदल ही पूरे भारत की यात्रा की।

देश का पुनर्निर्माण

रामकृष्ण की मृत्यु के बाद उन्होंने स्वयं को हिमालय में चिंतनरूपी आनंद सागर में डुबाने की चेष्टा की, लेकिन जल्दी ही वह इसे त्यागकर भारत की कारुणिक निर्धनता से साक्षात्कार करने और देश के पुनर्निर्माण के लिए समूचे भारत में भ्रमण पर निकल पड़े। इस दौरान उन्हें कई दिनों तक भूखे भी रहना पड़ा। इन छ्ह वर्षों के भ्रमण काल में वह राजाओं और दलितों, दोनों के अतिथि रहे। उनकी यह महान् यात्रा कन्याकुमारी में समाप्त हुई, जहाँ ध्यानमग्न विवेकानंद को यह ज्ञान प्राप्त हुआ कि राष्ट्रीय पुनर्निर्माण की ओर रुझान वाले नए भारतीय वैरागियों और सभी आत्माओं, विशेषकर जनसाधारण की सुप्त दिव्यता के जागरण से ही इस मृतप्राय देश में प्राणों का संचार किया जा सकता है। भारत के पुनर्निर्माण के प्रति उनके लगाव ने ही उन्हें अंततः 1893 में शिकागो धर्म संसद में जाने के लिए प्रेरित किया, जहाँ वह बिना आमंत्रण के गए थे, परिषद में उनके प्रवेश की अनुमति मिलनी ही कठिन हो गयी। उनको समय न मिले, इसका भरपूर प्रयत्न किया गया। भला, पराधीन भारत क्या सन्देश देगा- योरोपीय वर्ग को तो भारत के नाम से ही घृणा थी। एक अमेरिकन प्रोफेसर के उद्योग से किसी प्रकार समय मिला और 11 सितंबर सन् 1893 के उस दिन उनके अलौकिक तत्वज्ञान ने पाश्चात्य जगत को चौंका दिया। अमेरिका ने स्वीकार कर लिया कि वस्तुत: भारत ही जगद्गुरु था और रहेगा। स्वामी विवेकानन्द ने वहाँ भारत और हिन्दू धर्म की भव्यता स्थापित करके ज़बरदस्त प्रभाव छोड़ा। 'सिस्टर्स ऐंड ब्रदर्स ऑफ़ अमेरिका' (अमेरिकी बहनों और भाइयो) के संबोधन के साथ अपने भाषण की शुरुआत करते ही 7000 प्रतिनिधियों ने तालियों के साथ उनका स्वागत किया। विवेकानंद ने वहाँ एकत्र लोगों को सभी मानवों की अनिवार्य दिव्यता के प्राचीन वेदांतिक संदेश और सभी धर्मों में निहित एकता से परिचित कराया। सन् 1896 तक वे अमेरिका रहे। उन्हीं का व्यक्तित्व था, जिसने भारत एवं हिन्दू-धर्म के गौरव को प्रथम बार विदेशों में जागृत किया।

धर्म एवं तत्वज्ञान के समान भारतीय स्वतन्त्रता की प्रेरणा का भी उन्होंने नेतृत्व किया। स्वामी विवेकानन्द कहा करते थे- 'मैं कोई तत्ववेत्ता नहीं हूँ। न तो संत या दार्शनिक ही हूँ। मैं तो ग़रीब हूँ और ग़रीबों का अनन्य भक्त हूँ। मैं तो सच्चा महात्मा उसे ही कहूँगा, जिसका हृदय ग़रीबों के लिये तड़पता हो।'

शिष्यों का समूह

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पाँच वर्षों से अधिक समय तक उन्होंने अमेरिका के विभिन्न नगरों, लंदन और पेरिस में व्यापक व्याख्यान दिए। उन्होंने जर्मनी , रूस और पूर्वी यूरोप की भी यात्राएं कीं। हर जगह उन्होंने वेदांत के संदेश का प्रचार किया। कुछ अवसरों पर वह चरम अवस्था में पहुँच जाते थे, यहाँ तक कि पश्चिम के भीड़ भरे सभागारों में भी। यहाँ उन्होंने समर्पित शिष्यों का समूह बनाया और उनमें से कुछ को अमेरिका के 'थाउज़ेंड आइलैंड पार्क' में आध्यात्मिक जीवन में प्रशिक्षित किया। उनके कुछ शिष्यों ने उनका भारत तक अनुसरण किया। स्वामी विवेकानन्द ने विश्व भ्रमण के साथ उत्तराखण्ड के अनेक क्षेत्रों में भी भ्रमण किया जिनमें अल्मोड़ा तथा चम्पावत में उनकी विश्राम स्थली को धरोहर के रूप में सुरक्षित किया गया है।

वेदांत धर्म

1897 में जब विवेकानंद भारत लौटे, तो राष्ट्र ने अभूतपूर्व उत्साह के साथ उनका स्वागत किया और उनके द्वारा दिए गए वेदांत के मानवतावादी, गतिशील तथा प्रायोगिक संदेश ने हज़ारों लोगों को प्रभावित किया। स्वामी विवेकानन्द ने सदियों के आलस्य को त्यागने के लिए भारतीयों को प्रेरित किया और उन्हें विश्व नेता के रूप में नए आत्मविश्वास के साथ उठ खड़े होने तथा दलितों व महिलाओं को शिक्षित करने तथा उनके उत्थान के माध्यम से देश को ऊपर उठाने का संदेश दिया। स्वामी विवेकानन्द ने घोषणा की कि सभी कार्यों और सेवाओं को मानव में पूर्णतः व्याप्त ईश्वर की परम आराधना बनाकर वेदांत धर्म को व्यावहारिक बनाया जाना ज़रूरी है। वह चाहते हैं कि भारत पश्चिमी देशों में भी आध्यात्मिकता का प्रसार करे। स्वामी विवेकानन्द ने घोषणा की कि सिर्फ़ अद्वैत वेदांत के आधार पर ही विज्ञान और धर्म साथ-साथ चल सकते हैं, क्योंकि इसके मूल में अवैयक्तिक ईश्वर की आधारभूत धारणा, सीमा के अंदर निहित अनंत और ब्रह्मांड में उपस्थित सभी वस्तुओं के पारस्परिक मौलिक संबंध की दृष्टि है। उन्होंने सभ्यता को मनुष्य में दिव्यता के प्रतिरूप के तौर पर परिभाषित किया और यह भविष्यवाणी भी की कि एक दिन पश्चिम जीवन की अनिवार्य दिव्यता के वेदांतिक सिद्धान्त की ओर आकर्षित होगा। विवेकानंद के संदेश ने पश्चिम के विशिष्ट बौद्धिकों, जैसे विलियम जेम्स, निकोलस टेसला, अभिनेत्री सारा बर्नहार्ड और मादाम एम्मा काल्व, एंग्लिकन चर्च, लंदन के धार्मिक चिंतन रेवरेंड कैनन विल्वरफ़ोर्स, और रेवरेंड होवीस तथा सर पैट्रिक गेडेस, हाइसिंथ लॉयसन, सर हाइरैम नैक्सिम, नेल्सन रॉकफ़ेलर, लिओ टॉल्स्टॉय व रोम्यां रोलां को भी प्रभावित किया। अंग्रेज़ भारतविद ए. एल बाशम ने विवेकानंद को इतिहास का पहला व्यक्ति बताया, जिन्होंने पूर्व की आध्यात्मिक संस्कृति के मित्रतापूर्ण प्रत्युत्तर का आरंभ किया और उन्हें आधुनिक विश्व को आकार देने वाला घोषित किया।

मसीहा के रूप में

अरबिंदो घोष , सुभाषचंद्र बोस , सर जमशेदजी टाटा , रबींद्रनाथ टैगोर तथा महात्मा गांधी जैसे महान् व्यक्तियों ने स्वामी विवेकानन्द को भारत की आत्मा को जागृत करने वाला और भारतीय राष्ट्रवाद के मसीहा के रूप में देखा। विवेकानंद 'सार्वभौमिकता' के मसीहा के रूप में उभरे। स्वामी विवेकानन्द पहले अंतरराष्ट्रवादी थे, जिन्होंने 'लीग ऑफ़ नेशन्स' के जन्म से भी पहले वर्ष 1897 में अंतर्राष्ट्रीय संगठनों,

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गठबंधनों और क़ानूनों का आह्वान किया, जिससे राष्ट्रों के बीच समन्वय स्थापित किया जा सके।

अतीत के झरोखे से

पश्चिम को योग और ध्यान से परिचित कराने वाले स्वामी विवेकानंद के बारे में वहां कम ही लोग जानते हैं लेकिन भारत में इस बंगाली बुद्धिजीवी का अब भी बहुत सम्मान किया जाता है। न्यूयॉर्क में जहां कभी स्वामी विवेकानंद रहते थे, वो बीबीसी संवाददाता ऐमिली ब्युकानन का ही घर था। बजरी पर कार के टायरों की चरमराहट, आने वाले तूफान की आशंका और हवाओं के साथ झूमते पेड़। 1970 के दशक में ऐमिली ब्युकानन के लिए इन बातों के कोई मायने नहीं थे। उनका नज़रिया हाल में उस वक्त बदला जब इन्हें पता चला कि वह स्वामी भारत के सबसे प्रभावशाली आध्यात्मिक शिक्षकों में से एक थे। स्वामी विवेकानंद ने पश्चिम को पूरब के दर्शन से परिचित कराया था। ऐमिली ब्युकानन के परिवार ने उस जमाने में उन्हें अपने घर में रहने के लिए आमंत्रित किया था और स्वामी जी के काम के प्रकाशन में उनकी सहायता की थी। शिकागो में हुए धर्मों के विश्व संसद से उन्हें दुनिया भर में ख्याति मिली। इस धर्म संसद में विवेकानंद ने सहिष्णुता के पक्ष में और धार्मिक हठधर्मिता को खत्म करने का आह्वान किया। अजीब इत्तफ़ाक़ था कि वह तारीख 11 सितंबर की थी। ‘अमेरिका के भाईयों और बहनों’ कहकर उन्होंने अपनी बात शुरू की थी। प्रवाहपूर्ण अंग्रेज़ी में असरदार आवाज़ के साथ भाषण दे रहे उस संन्यासी ने गेरूए रंग का चोगा पहन रखा था। पगड़ी पहने हुए स्वामी की एक झलक देखने के लिए वहां मौजूद लोग बहुत उत्साह से खड़े हो गए थे। इस भाषण से स्वामी विवेकानंद की लोकप्रियता बढ़ गई और उनके व्याख्यानों में भीड़ उमड़ने लगी। ईश्वर के बारे में यहूदीवाद और ईसाईयत के विचारों के आदी हो चुके लोगों के लिए योग और ध्यान का विचार नया और रोमांचक था। रामकृष्ण परमहंस की अनुयायी कैलिफोर्नियाई नन को वहां 'प्रव्राजिका गीताप्रणा' के नाम से जाना जाता है। वहाँ रिट्रीट सेंटर चला रहीं प्रव्राजिका गीताप्रणा ने ऐमिली ब्युकानन को पूरी जगह दिखाई। घर में साथ टहलते हुए प्रवराजिका ने बताया कि उनका बिस्तर भारत भेज दिया गया है लेकिन यह वही कमरा है जहाँ वो सोया करते थे, इस भोजन कक्ष में वह खाना खाया करते थे। स्वामी विवेकानंद बीबीसी संवाददाता ऐमिली ब्युकानन की परदादी को 'जोई-जोई' कहा करते थे। वह उम्र भर उनकी दोस्त और अनुयायी रहीं। उन दिनों कम ही देखा जाता था कि श्वेत महिलाएं और भारतीय एक साथ यात्राएं करते हों। [2]

स्वामी विवेकानंद द्वारा स्थापित

विवेकानंद ने 1 मई , 1897 में कलकत्ता में रामकृष्ण मिशन और 9 दिसंबर , 1898 को कलकत्ता के निकट गंगा नदी के किनारे बेलूर में रामकृष्ण मठ की स्थापना की। उनके अंग्रेज़ अनुयायी कैप्टन सर्वियर और उनकी पत्नी ने हिमालय में 1899 में ' मायावती अद्वैत आश्रम ' खोला। इसे सार्वभौमिक चेतना के अद्वैत दृष्टिकोण के एक अद्वितीय संस्थान के रूप में शुरू किया गया और विवेकानंद की इच्छानुसार, इसे उनके पूर्वी और पश्चिमी अनुयायियों का सम्मिलन केंद्र बनाया गया। विवेकानंद ने बेलूर में एक दृश्य प्रतीक के रूप में सभी प्रमुख धर्मों के वास्तुशास्त्र के समन्वय पर आधारित रामकृष्ण मंदिर के भावी आकार की रूपरेखा भी बनाई, जिसे 1937 में उनके साथी शिष्यों ने पूरा किया। इन्हें भी देखें : स्वामी विवेकानंद के प्रेरक प्रसंग

ग्रन्थों की रचना

'योग', 'राजयोग' तथा 'ज्ञानयोग' जैसे ग्रंथों की रचना करके विवेकानन्द ने युवा जगत को एक नई राह दिखाई है, जिसका प्रभाव जनमानस पर युगों-युगों तक छाया रहेगा। कन्याकुमारी में निर्मित उनका स्मारक आज भी उनकी महानता की कहानी कह रहा है।

स्वामी विवेकानन्द के ओजस्वी और सारगर्भित व्याख्यानों की प्रसिद्धि विश्वभर में है। जीवन के अंतिम दिन उन्होंने शुक्ल यजुर्वेद की व्याख्या की और कहा "एक और विवेकानंद चाहिए, यह समझने के लिए कि इस विवेकानंद ने अब तक क्या किया है।" प्रत्यदर्शियों के अनुसार जीवन के अंतिम दिन भी उन्होंने अपने ' ध्यान ' करने की दिनचर्या को नहीं बदला और प्रात: दो तीन घंटे ध्यान किया। उन्हें दमा और शर्करा के अतिरिक्त अन्य शारीरिक व्याधियों ने घेर रखा था। उन्होंने कहा भी था, 'ये बीमारियाँ मुझे 40 वर्ष के आयु भी पार नहीं करने देंगी।' 4 जुलाई , 1902 को बेलूर में रामकृष्ण मठ में उन्होंने ध्यानमग्न अवस्था में महासमाधि धारण कर प्राण त्याग दिए। उनके शिष्यों और अनुयायियों ने उनकी स्मृति में वहाँ एक मंदिर बनवाया और समूचे विश्व में विवेकानंद तथा उनके गुरु रामकृष्ण के संदेशों के प्रचार के लिए 130 से अधिक केंद्रों की स्थापना की।

इन्हें भी देखें : स्वामी विवेकानन्द के अनमोल वचन , रामकृष्ण मिशन  एवं विवेकानन्द रॉक मेमोरियल

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  • ↑ HERBERT SPENCER
  • ↑ ब्युकानन, ऐमिली। 'मैं, मेरी दादी और स्वामी विवेकानंद' (हिंदी) (पी.एच.पी) अमर उजाला। अभिगमन तिथि: 20 जनवरी, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

  • भारत के प्रकाशपुंज थे स्वामी विवेकानन्द
  • आज के दौर में स्वामी विवेकानन्द की प्रासंगिकता...
  • स्वामी विवेकानन्द का शैक्षिक चिंतन
  • स्वामी विवेकानन्द की विज्ञान दृष्टि
  • स्वामी विवेकानन्द की पुस्तकें
  • स्वामी विवेकानन्द : मानव सेवा एवं सर्वधर्म समभाव

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भारतीय विचारक: स्वामी विवेकानंद (1863-1902)

  • 12 Sep 2019
  • सामान्य अध्ययन-IV
  • महापुरुषों के नैतिक विचार व उनके जीवन आदर्श

स्वामी विवेकानंद के बारे में

  • स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को हुआ तथा उनके बचपन का नाम नरेंद्र नाथ दत्त था।
  • वह रामकृष्ण परमहंस के एक मुख्य शिष्य और भिक्षु थे।
  • उन्होंने वेदांत और योग के भारतीय दर्शन का परिचय पश्चिमी दुनिया को कराया।

वेदांत दर्शन:

  • वेदांत दर्शन उपनिषद् पर आधारित है तथा इसमें उपनिषद् की व्याख्या की गई है।
  • वेदांत दर्शन में ब्रह्म की अवधारणा पर बल दिया गया है, जो उपनिषद् का केंद्रीय तत्त्व है।
  • इसमें वेद को ज्ञान का परम स्रोत माना गया है, जिस पर प्रश्न खड़ा नहीं किया जा सकता।
  • वेदांत में संसार से मुक्ति के लिये त्याग के स्थान पर ज्ञान के पथ को आवश्यक माना गया है और ज्ञान का अंतिम उद्देश्य संसार से मुक्ति के माध्यम से मोक्ष की प्राप्ति है।
  • वर्ष 1897 में विवेकानंद ने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु के पश्चात् रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। इस मिशन ने भारत में शिक्षा और लोकोपकारी कार्यों जैसे- आपदाओं में सहायता, चिकित्सा सुविधा, प्राथमिक और उच्च शिक्षा तथा जनजातियों के कल्याण पर बल दिया।

स्वामी विवेकानंद के दर्शन की मूल बातें-

  • विवेकानंद का विचार है कि सभी धर्म एक ही लक्ष्य की ओर ले जाते हैं, जो उनके गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस के आध्यात्मिक प्रयोगों पर आधारित है।
  • स्वामी विवेकानंद ने इस बात पर बल दिया कि पश्चिम की भौतिक और आधुनिक संस्कृति की ओर भारतीय आध्यात्मिकता का प्रसार करना चाहिये, जबकि वे भारत के वैज्ञानिक आधुनिकीकरण के पक्ष में भी मजबूती से खड़े हुए।
  • उन्होंने जगदीश चंद्र बोस की वैज्ञानिक परियोजनाओं का भी समर्थन किया। स्वामी विवेकानंद ने आयरिश शिक्षिका मार्गरेट नोबल (जिन्हें उन्होंने 'सिस्टर निवेदिता' का नाम दिया) को भारत आमंत्रित किया ताकि वे भारतीय महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने में सहयोग कर सकें।
  • महात्मा गांधी द्वारा सामाजिक रूप से शोषित लोगों को 'हरिजन' शब्द से संबोधित किये जाने के वर्षों पहले ही स्वामी विवेकानंद ने 'दरिद्र नारायण' शब्द का प्रयोग किया था जिसका आशय था कि 'गरीबों की सेवा ही ईश्वर की सेवा है।‘
  • पश्चिमी राष्ट्रवाद के विपरीत विवेकानंद का राष्ट्रवाद भारतीय धर्म पर आधारित है जो भारतीय लोगों का जीवन रस है। भारतीय संस्कृति के प्रमुख घटक मानववाद एवं सार्वभौमिकतावाद विवेकानंद के राष्ट्रवाद की आधारशिला माने जा सकते हैं।
  • विवेकानंद ने आंतरिक शुद्धता एवं आत्मा की एकता के सिद्धांत पर आधारित नैतिकता की नवीन अवधारणा प्रस्तुत की। विवेकानंद के अनुसार, नैतिकता और कुछ नहीं बल्कि व्यक्ति को एक अच्छा नागरिक बनाने में सहायता करने वाली नियम संहिता है।
  • स्वामी विवेकानंद का मानना है कि किसी भी राष्ट्र का युवा जागरूक और अपने उद्देश्य के प्रति समर्पित हो, तो वह देश किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है।
  • विवेकानंद ने युवाओं को आध्यात्मिक बल के साथ-साथ शारीरिक बल में वृद्धि करने के लिये भी प्रेरित किया।
  • स्वामी विवेकानंद ने ऐसी शिक्षा पर बल दिया जिसके माध्यम से विद्यार्थी की आत्मोन्नति हो और जो उसके चरित्र निर्माण में सहायक हो सके।
  • विवेकानंद एक मानवतावादी चिंतक थे, उनके अनुसार मनुष्य का जीवन ही एक धर्म है। धर्म न तो पुस्तकों में है, न ही धार्मिक सिद्धांतों में, प्रत्येक व्यक्ति अपने ईश्वर का अनुभव स्वयं कर सकता है। विवेकानंद ने धार्मिक आडंबर पर चोट की तथा ईश्वर की एकता पर बल दिया। विवेकानंद के शब्दों में “मेरा ईश्वर दुखी, पीड़ित हर जाति का निर्धन मनुष्य है।

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राष्ट्रीय युवा दिवस

स्वामी विवेकानंद पर निबंध हिंदी में

Swami Vivekananda India में एक आध्यात्मिक नेता और एक हिंदू भिक्षु (Hindu Monk) थे।  वे उच्च विचार और सादा जीवन व्यतीत करते थे। स्वामी जी महान सिद्धांतों और धर्म परायण व्यक्तित्व वाले एक महान दार्शनिक थे। वह रामकृष्ण परमहंस के प्रमुख शिष्य थे और उनके दार्शनिक कार्यों में राजयोग और आधुनिक वेदांत शामिल हैं। Kolkata में रामकृष्ण मिशन और रामकृष्ण मठ के संस्थापक थे। भारत में हर साल 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद जी की जयंती के रूप में राष्ट्रीय युवा दिवस (National Youth Day) मनाया जाता है। स्वामी विवेकानंद ने शिकागो (Chicago) में धर्म संसद में हिंदू धर्म प्रस्तुत किया, जिसने उन्हें काफी प्रसिद्ध बना दिया।

टाइटलस्वामी विवेकानंद पर निबंध हिंदी में 
लेख प्रकारनिबंध
साल2023
स्वामी विवेकानंद का जन्म12 जनवरी 1863 
स्वामी विवेकानंद  जन्म स्थानकोलकाता
स्वामी विवेकानंद बचपन का नामनरेंद्र दत्ता 
स्वामी विवेकानंद  मृत्यु1902 
स्वामी विवेकानंद कौन से मिशन के संस्थापक थेरामकृष्ण मिशन 
स्वामी विवेकानंद जयंती किस नाम से मनाई जाती हैराष्ट्रीय युवा दिवस 
स्वामी विवेकानंद किस के गुरु कौन थेरामकृष्ण परमहंस

स्वामी विवेकानंद पर निबंध 250 शब्द

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय

Swami Vivekananda का जन्म ब्रिटिश सरकार (British Government) के दौरान 12 जनवरी 1863 को Kolkata में नरेंद्रनाथ दत्त के रूप में हुआ था। उनके पिता विश्वनाथ दत्त एक वकील थे, वह बंगाली परिवार से थे। माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था, जो मजबूत चरित्र, गहरी भक्ति के साथ अच्छे गुण वाली महिला थी। स्वामी जी ने 1984 में Kolkata University से Graduation की पढ़ाई पूरी की। विवेकानंद का जन्म योग प्रकृति के साथ हुआ था इसलिए वे हमेशा ध्यान करते थे, जिससे उन्हें मानसिक शक्ति प्राप्त होती थी। उन्होंने इतिहास, संस्कृत, बंगाली साहित्य और पश्चिमी दर्शनशास्त्र सहित विभिन्न विषयों में ज्ञान प्राप्त किया। उन्हें भगवत गीता, वेद, रामायण, उपनिषद और महाभारत जैसे हिंदू शास्त्रों का गहरा ज्ञान था। स्वामी जी एक प्रतिभाशाली व्यक्ति थे, जिन्हे संगीत, अध्ययन, तैराकी और जिमनास्टिक का ज्ञान था।

रामकृष्ण परमहंस से मुलाकात

Swami Vivekananda भगवान को देखने और भगवान के अस्तित्व के बारे में जानने के लिए बहुत उत्सुक थे। जब वे दक्षिणेश्वर में रामकृष्ण से मिले तो उन्होंने पूछा कि क्या उन्होंने भगवान को देखा है? रामकृष्ण ने स्वामी जी के पूर्व कर्मों को देखते हुए कहा कि हां उन्होंने भगवान को देखा है, वैसे ही जैसे मैं तुम्हें देख रहा हूं। Ramkrishna Paramhans ने बताया कि भगवान हर इंसान के भीतर मौजूद है। स्वामी जी ने रामकृष्ण से दीक्षा ली और उन्हें अपना गुरु बनाया और यहीं से एक आध्यात्मिक यात्रा शुरू हुई। जब उन्होंने सन्यास की दीक्षा ली तब वह 25 वर्ष के थे और उनका नाम Swami Vivekananda रखा गया।

बाद में अपने जीवन में उन्होंने रामकृष्ण मिशन (Ramkrishna Mission) की स्थापना की,  जो धर्म, जाति और पंथ के बावजूद गरीबों और संकट ग्रस्त लोगों को सुरक्षित सामाजिक सेवा (Secure social service) प्रदान कर रहा है। 1893 में Chicago में आयोजित विश्व धर्म संसद में विवेकानंद जी ने भाग लिया और विश्व प्रसिद्ध भाषण दिया। अपने भाषण में उन्होंने “अमेरिका के भाइयों और बहनों” के रूप में संबोधित कर सभी का दिल जीत लिया। स्वामी जी का प्रसिद्ध वाक्य है ” उठो जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए”।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध 100 शब्द

स्वामी विवेकानंद की मृत्यु.

Swami Vivekananda  ने 4 जुलाई 1902 को बेलूर मठ में अंतिम सांस ली। उन्होंने घोषणा की कि वह 40 वर्ष की आयु तक नहीं पहुंचेंगे। उन्होंने 39 वर्ष की आयु में अपना नश्वर सभी छोड़ दिया और “महासमाधि” प्राप्त की।  लोगों ने कहा कि वह 31 बीमारियों से पीड़ित थे। उन्होंने India के भीतर और बाहर Hindu Religion का प्रसार किया।

स्वामी विवेकानंद जयंती कैसे मनाई जाती है?

इस दिन India के हर एक स्कूल और विश्वविद्यालयों में Swami Vivekananda के दिए गए भाषण और मोटिवेशनल स्पीच (Motivational Speech) का आयोजन किया जाता है। हर सरकारी विभाग में उनकी फोटो और मूर्तियों पर माल्यार्पण करके इस दिन Youth Day के रूप में मनाया जाता है। युवाओं को विवेकानंद जी के रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित किया जाता है। उनके भाषण और मोटिवेशनल स्पीच से लोगों में एक नई चेतना का जागरण होता है। निराश व्यक्ति भी एक अलग तरह की ऊर्जा से भर जाता है। इस दिन स्कूल कॉलेजों में तरह-तरह के आयोजन किए जाते हैं। लोगों को वेदांत की दीक्षा दी जाती है।

FAQ’s Swami Vivekananda Essay in Hindi

Q. स्वामी विवेकानंद कौन है.

Ans. स्वामी विवेकानंद भारत में एक आध्यात्मिक नेता और एक हिंदू भिक्षु थे।  वे महान दार्शनिक थे।

Q. स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम क्या था?

Ans. नरेंद्रनाथ दत्त स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम था।

Q. स्वामी विवेकानंद के गुरु कौन थे?

Ans.  रामकृष्ण परमहंस स्वामी विवेकानंद के गुरु थे।

Q. स्वामी विवेकानंद का जन्म कब और कहां हुआ था?

Ans. स्वामी जी का जन्म कोलकाता में 12 जनवरी 1863 को हुआ था।  वे बंगाली परिवार से थे।

Q. रामकृष्ण मठ, बेलूर मठ और रामकृष्ण मिशन के संस्थापक कौन थे?

Ans. स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण मठ, बेलूर मठ और रामकृष्ण मिशन के संस्थापक थे।

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स्वामी विवेकानंद पर निबंध / Essay on Swami Vivekananda in Hindi

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स्वामी विवेकानंद पर निबंध / Essay on Swami Vivekananda in Hindi!

स्वामी विवेकानंद की गिनती भारत के महापुरुषों में होती है । उस समय जबकि भारत अंग्रेजी दासता में अपने को दीन-हीन पा रहा था, भारत माता ने एक ऐसे लाल को जन्म दिया जिसने भारत के लोगों का ही नहीं, पूरी मानवता का गौरव बढ़ाया । उन्होंने विश्व के लोगों को भारत के अध्यात्म का रसास्वादन कराया । इस महापुरुष पर संपूर्ण भारत को गर्व है ।

इस महापुरुष का जन्म 12 जनवरी, 1863 ई. में कोलकाता के एक क्षत्रिय परिवार में श्री विश्वनाथ दत्त के यहाँ हुआ था । विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाई कोर्ट के नामी वकील थे । माता-पिता ने बालक का नाम नरेन्द्र रखा । नरेन्द्र बचपन से ही मेधावी थे । उन्होंने 1889 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण कर कोलकाता के ‘ जनरल असेम्बली ’ नामक कॉलेज में प्रवेश लिया । यहाँ उन्होंने इतिहास, दर्शन, साहित्य आदि विषयों का अध्ययन किया । नरेन्द्र ने बी.ए. की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की ।

ADVERTISEMENTS:

नरेन्द्र ईश्वरीय सत्ता और धर्म को शंका की दृष्टि से देखते थे । लेकिन वे जिज्ञासु प्रवृत्ति के थे । वे अपनी जिज्ञासा शांत करने के लिए ब्रह्मसमाज में गए । यहाँ उनके मन को संतुष्टि नहीं मिली । फिर नरेन्द्र सत्रह वर्ष की आयु में दक्षिणेश्वर के संत रामकृष्ण परमहंस के संपर्क में आए । परमहंस जी का नरेन्द्र पर गहरा प्रभाव पड़ा । नरेन्द्र ने उन्हें अपना गुरु बना लिया ।

इन्ही दिनों नरेन्द्र के पिता का देहांत हो गया । नरेन्द्र पर परिवार की जिम्मेदारी आ गई । परंतु अच्छी नौकरी न मिलने के कारण उन्हें आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा । नरेन्द्र गुरु रामकृष्ण की शरण में गए । गुरु ने उन्हें माँ काली से आर्थिक संकट दूर करने का वरदान माँगने को कहा । नरेन्द्र माँ काली के पास गए परंतु धन की बात भूलकर बुद्धि और भक्ति की याचना की । एक दिन गुरु ने उन्हें अपनी साधना का तेज देकर नरेन्द्र से विवेकानन्द बना दिया ।

रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु के बाद विवेकानन्द कोलकाता छोड़ वरादनगर के आश्रम में रहने लगे । यहाँ उन्होंने शास्त्रों और धर्मग्रंथों का अध्ययन किया । इसके बाद वे भारत की यात्रा पर निकल पड़े । वे उत्तर प्रदेश, राजस्थान, जूनागढ़, सोमनाथ, पोरबंदर, बड़ौदा, पूना, मैसूर होते हुए दक्षिण भारत पहुँचे । वहाँ से वे पांडिचेरी और मद्रास पहुँचे ।

सन् 1893 में अमेरिका के शिकागो शहर में विश्व धर्म-सम्मेलन हो रहा था । शिष्यों ने स्वामी विवेकानन्द से उसमें भाग लेकर हिन्दू धर्म का पक्ष रखने का आग्रह किया । स्वामी जी कठिनाइयों को झेलते हुए शिकागो पहुँचे । उन्हें सबसे अंत में बोलने के लिए बुलाया गया । परंतु उनका भाषण सुनते ही श्रोता गद्‌गद् हो उठे । उनसे कई बार भाषण कराए गए । दुनिया में उनके नाम की धूम मच गई । इसके बाद उन्होंने अमेरिका तथा यूरोपीय देशों का भ्रमण किया । अमेरिका के बहुत से लोग उनके शिष्य बन गए ।

चार वर्षों में विदेशों में धर्म-प्रचार के बाद विवेकानन्द भारत लौटे । भारत में उनकी ख्याति पहले ही पहुंच चुकी थी । उनका भव्य स्वागत किया गया । स्वामी जी ने लोगों से कहा – ” वास्तविक शिव की पूजा निर्धन और दरिद्र की पूजा में है, रोगी और दुर्बल की सेवा में है । ” भारतीय अध्यात्मवाद के प्रचार और प्रसार के लिए उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की । मिशन की सफलता के लिए उन्होंने लगातार श्रम किया, जिससे उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया । 4 जुलाई, 1902 ई. को रात्रि के नौ बजे, 39 वर्ष की अल्पायु में ‘ ॐ ‘ ध्वनि के उच्चारण के साथ उनके प्राण-पखेरू उड़ गए । परंतु उनका संदेश कि ‘ उठो जागो और तब तक चैन की साँस न लो जब तक भारत समृद्ध न हो जाय ‘ – हमारा मार्गदर्शन करता रहेगा ।

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स्वामी विवेकानंद पर निबंध

Essay On Swami Vivekananda In Hindi : स्वामी विवेकानंद ऐसे महान व्यक्तियों में से हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के नाम को रोशन किया। भारत की संस्कृत के ऐसे महान विद्वान थे, जिन्होंने अपने ज्ञान से सभी भारत के युवाओं को मार्गदर्शन किया।

आज भी यह भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणा के स्त्रोत हैं। इन्हें पावर हाउस कहा जाता है। इनकी संकल्प शक्ति, जिज्ञासा तथा खोज की प्रवृत्ति आज भी हर युवा के लिए प्रेरणा है। स्वामी विवेकानंद के जीवन से जुड़ी ना जाने कई ऐसी घटनाएं है, जो प्रेरणा से भरी हुई है।

Essay On Swami Vivekananda In Hindi

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स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Essay On Swami Vivekananda In Hindi)

स्वामी विवेकानंद का जन्म तारीख 12 जनवरी हर साल युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन स्कूल कॉलेजों में भी बच्चों को स्वामी विवेकानंद के जीवन पर निबंध लिखने के लिए दिया जाता है ताकि बच्चे स्वामी विवेकानंद के जीवन घटनाओं से अवगत होकर वे भी विवेकानंद की तरह ही अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए दृढ़ निश्चय कर सके और तब तक ना रुके जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए।

आज के इस लेख में हम स्वामी विवेकानंद पर निबंध हिंदी में 100, 250, 300, 500, 850 एवं 1000 शब्दों में निबंध लिखकर आए। यह स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Swami Vivekananda Essay in Hindi) बहुत ही सरल भाषा में लिखे गये हैं, जो सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए मददगार है।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध 100 शब्द

स्वामी विवेकानंद एक ऐसे महान भारतीय युवा थे, जिन्होंने अपना पूरा जीवन सन्यासी रूप में बिता दिया और इसी जीवन में इन्होंने अपने ज्ञान शक्ति से विश्व भर को प्रकाशित किया। स्वामी विवेकानंद का जन्म बंगाल की राजधानी कोलकाता में 12 जनवरी 1863 को हुआ था।

इनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था, वे पेशे से कोलकाता उच्च न्यायालय में वकालत का कार्य करते थे। इनकी माता का नाम भुनेश्वरी देवी था। स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम नरेंद्र दत्त था लेकिन बाद में भी अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के शरण में जाने के बाद स्वामी विवेकानंद के नाम से प्रख्यात हुए।

स्वामी विवेकानंद बचपन से ही अपने पिता के तर्कपूर्ण स्वभाव और माता के धार्मिक स्वभाव से परिचित थे। इसलिए बचपन से ही इन्हें भी तर्क करने की आदत थी। इनके जीवन में इनकी माता की अहम भूमिका रही। इन्होंने अपनी माता से आत्म नियंत्रण सीखा।

कम उम्र में ही स्वामी विवेकानंद ने गृह त्याग कर भारत भ्रमण करने का निर्णय लिया। यह जगह-जगह पर घूमे और भारत की संस्कृति से परिचित हुए। इसी दौरान 1893 में स्वामी विवेकानंद ने अमेरिका के शिकागो में विश्व धर्म महासभा में दुनिया के सभी लोगों को हिंदू धर्म से परिचित करवाया था।

शिकागो धर्म सम्मेलन के बाद स्वामी विवेकानंद काफी ज्यादा लोकप्रिय हुए। आगे भी इन्होंने कई जगहों पर भारतीय संस्कृति के महत्व संदर्भ में भाषण दिए। अंत में 4 जुलाई 1902 को ध्यान करते हुए इन्होंने अपने नश्वर शरीर का परित्याग किया।

Essay On Swami Vivekananda In Hindi

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स्वामी विवेकानंद पर निबंध 250 शब्द

उनका जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ था। स्वामी विवेकानंद के पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था, जो कोलकाता में न्यायालय में वकील थे और वह हमेशा सच्च की लड़ाई के लिये लोगों को न्यायालय में न्याय दिलाते थे और उनकी माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। उनकी माता धार्मिक स्थलों में ज्यादा रूचि रखती थी, वह हमेशा शिव जी की पूजा अर्चना में अपना जीवन व्यतीत करना चाहती थी। स्वामी विवेकानंद का बचपन का नाम नरेंद्र दत्त हुआ करता था।

उनकी माता धार्मिक स्थलों में अर्चना पूजा करती थी, वहीँ सब देख कर स्वामी विवेकानंद घर में होने वाली पूजा, रामायण, कीर्तन आदि के ओर खींचे चले जा रहे थे और उनकी इन सब में रूचि बढ़ने लगी। स्वामी विवेकानंद को 16 वर्ष की उम्र में कोलकाता के प्रेसिडेसी कॉलेज में दाखिला कराया और हिन्दू धर्म के सभी ग्रंथों के बारे में अच्छी तरह अध्ययन किया।

उनको शिक्षा के अलावा खेल-कूद प्रणायाम आदि में उनको बहुत अधिक रूचि थी। हिंदी और संस्कृति के अलावा अन्य सभ्यता और संस्कृति का भी अध्ययन करके उनको काफ़ी अनुभव रहा है। ये सब का अध्ययन करके स्वामी जी ने बहुत सारी डिग्री प्राप्त की थी।

स्वामी विवेकानंद के बारे में आज हर कोई जनता है, उनके द्वारा किये गए कार्य प्रशंसनीय रहे है। स्वामी विवेकानंद जिनको महान पुरुष माना जाता है। सभी सरकारी कार्यालयों में स्वामी विवेकानंद के फोटो लगे होते है।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध 300 शब्द

स्वामी विवेकानंद एक ऐसे भारत के विद्वान थे, जिन्होंने अपना पूरा जीवन जनकल्याण को समर्पित कर दिया। स्वामी विवेकानंद शारीरिक रूप से जितने मजबूत थे, उतने ही वह बौद्धिक रूप से भी मजबूत है। इन्होंने युवाओं को शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत रहने की प्रेरणा दी।

क्योंकि उनका मानना था कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का वास होता है। इन्होंने समाज में व्याप्त कई बुराई और कुप्रभाव को दूर करने का प्रयास किया। आज ये हर भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणा के स्त्रोत हैं।

स्वामी विवेकानंद का जन्म

स्वामी विवेकानंद का जन्म कोलकाता में 12 जनवरी 1863 को नरेंद्र दत्त एवं उनकी पत्नी भुनेश्वरी देवी के यहां हुआ था। पिता कोलकाता में उच्च न्यायालय में वकालत का कार्य करते थे। बुद्धि के मामले में विवेकानंद पर इनके पिता का प्रभाव पड़ा था। क्योंकि उनके पिता को भी बचपन से तर्क पूछने की काफी आदत थी।

शुरुआत में विवेकानंद का नाम नरेंद्र था। नरेंद्र के पिता हमेशा से ही इन्हें अंग्रेजी पढ़ाकर पाश्चात्य सभ्यता के अनुसार जीना सिखाना चाहते थे लेकिन नरेंद्र ऐसा न करते हुए ब्रह्म समाज को स्वीकार किया। क्योंकि बचपन से ही इनकी बुद्धि बहुत तीव्र थी और परमात्मा को पाने की लालसा भी बहुत प्रबल थी।

1884 में विवेकानंद के पिता की मृत्यु हो गई, जिसके कारण घर की सारी जिम्मेदारी इन्हीं पर आ गई। घर की आर्थिक स्थिति भी काफी दयनीय हो गई थी। लेकिन इसके बावजूद विवेकानंद कभी भी अपनी दुखद स्थिति से घबराए नहीं। गरीबी में जीने के बावजूद यह हमेशा ही स्वयं भूखे रहकर दूसरों को भोजन कराते थे।

स्वामी विवेकानंद की शिक्षा

स्वामी विवेकानंद बचपन से ही काफी ज्यादा बुद्धिमान थे लेकिन इनके शिक्षा में काफी ज्यादा रुकावट आई। इन्होंने विद्यालय से ज्यादा अपने घर पर ही पढ़ाई की, उसके बाद कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से इन्होंने आगे की पढ़ाई दर्शनशास्त्र में पूरी की। पिता की मृत्यु के बाद यह अपनी आत्मा की शांति के लिए ब्रह्म समाज में जाकर जुड़ गए।

स्वामी विवेकानंद के गुरु

नरेंद्र जब ब्रह्म समाज में जुड़े हुए थे और जब उन्हें वहां भी अपने प्रश्नों का जवाब नहीं मिल रहा था। तब इन्हें दक्षिणेश्वर काली मंदिर के पुजारी श्री रामकृष्ण परमहंस के लोकप्रियता के बारे में पता चला, जिसके बाद नरेंद्र शुरुआत में तर्क करने के विचार से रामकृष्ण परमहंस जी के पास पहुंचे।

लेकिन वहां पहुंचने के बाद विवेकानंद पर रामकृष्ण परमहंस आध्यात्मिक ज्ञान का काफी ज्यादा प्रभाव पड़ा। इसके बाद यह उनके शिष्य बन गए और आगे स्वामी विवेकानंद के नाम से संयासी जीवन व्यतीत करने लगे।

संयासी जीवन में प्रवेश करने के बाद स्वामी विवेकानंद ने आगे का अपना पूरा जीवन अपने गुरु राम किशन परमहंस को समर्पित कर दिया। उनके अंतिम दिनों में भी विवेकानंद अपने घर और कुटुंब के नाजुक हालत की परवाह किए बिना गुरु की सेवा करते रहे। अंततः 4 जुलाई 1902 को बेलूर स्थित एक मठ में ध्यान के दौरान इन्होंने भी अपना शरीर त्याग दिया।

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय विस्तार से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध 500 शब्द

स्वामी विवेकानंद एक महान विद्वान हिंदू संत थे, जिन्होंने भारतीय संस्कृति को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक फैलाया। एक सामान्य बालक की तरह अपना बचपन का जीवन बिताते हुए आगे इन्होंने युवावस्था में संयास ले लिया और अपने पूरे जीवन को जनसेवा में समर्पित कर दिया।

अपने ज्ञान की रोशनी से इन्होंने हर एक भारतीय युवाओं को जीवन का सही मार्ग दिखाया। आज भी यह युवाओं के प्रेरणा स्त्रोत हैं। विवेकानंद का जीवन सफर आज भी युवाओं को खूब प्रभावित करते हैं।

स्वामी विवेकानंद का प्रारंभिक जीवन

स्वामी विवेकानंद पश्चिम बंगाल के कोलकाता शहर से थे। कोलकाता में इनका जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ था। इनकी माता का नाम भुनेश्वरी देवी था और पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था, जो पेशे से कोलकाता के उच्च न्यायालय में वकालत करते थे। विवेकानंद अपने आठ भाई बहनों में से एक थे।

विवेकानंद पर मानसिक रूप से इनके पिता का काफी ज्यादा ज्यादा प्रभाव था। बुद्धि के मामले में यह बिल्कुल अपने पिता के समान ही गए थे। बचपन से ही इन्हें विभिन्न तरह के तर्क करने की आदत थी। इन्होंने अपनी माता से आत्म नियंत्रण करना सीखा था और आत्म नियंत्रण में इतने माहिर हो चुके थे कि ये जब चाहे तब अपने आपको समाधी में ढाल सकते थे। विवेकानंद का बचपन का नाम नरेंद्र था।

1884 में नरेंद्र के पिता की मृत्यु हो जाने के बाद घर की स्थिति काफी ज्यादा नाजुक हो गई, जिसके कारण इन्हें आगे गरीबी में अपना जीवन बिताना पड़ा। लेकिन इसके बावजूद विवेकानंद हमेशा अपने दृढ़ शक्ति दिखाते ही रहे।

यह कभी भी अपनी गरीबी जीवन से घबराए नहीं और खुद भूखे रहकर दूसरों को भोजन कराएं, स्वयं के दुख को भूलकर दूसरों के दुख को दूर करने का प्रयत्न करते रहे। समाज में व्याप्त तरह-तरह के कुप्रथा को समाप्त करने के लिए इन्होंने समाज में रहते हुए कई तरह के कार्य किए।

नरेंद्र बचपन से ही अध्ययन में काफी ज्यादा बुद्धिमान थे। इनकी तर्कशक्ति हर किसी को आश्चर्य चकित कर देती थी। हालांकि इनकी शिक्षा काफी अनियमित रूप से हुई। संस्कृत भाषा में यह काफी ज्यादा ज्ञान था। इन्होंने आगे की पढ़ाई कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज से दर्शनशास्त्र के विषय में पूरी की।

हालांकि नरेंद्र को शिक्षा से ज्यादा आत्मशांति के लिए ललाहित थे। आत्म शांति से संबंधित अनेकों तरह के प्रश्न इनके मन में थे, जिसके जवाब को पाने के लिए इन्होंने अपनी पढ़ाई को बीच में ही रोक दिया और ब्रह्म समाज के साथ जुड़ गए।

विवेकानंद के गुरु का नाम राम कृष्ण परमहंस था। ब्रह्म समाज में जब यह थे तब परमेश्वर प्राप्ति को लेकर इनके मन में कई प्रश्न थे, जिसका जवाब उन्हें वहां नहीं मिला। उसी दौरान इन्हें रामकृष्ण परमहंस की लोकप्रियता के बारे में जाना तब इन्होंने रामकृष्ण परमहंस से मिलने का निर्णय लिया।

रामकृष्ण परमहंस से एक बार मिलने पर ही उनके आध्यात्मिक ज्ञान से काफी ज्यादा प्रभावित हुए, जिसके बाद उनके शिष्य बन गए और फिर आगे स्वामी विवेकानंद के नाम से सन्यासी जीवन व्यतीत करने लगे।

स्वामी विवेकानंद की यात्रा

मात्र 25 वर्ष की युवा अवस्था में नरेंद्र गेरुआ वस्त्र पहनकर सन्यासी का रूप धारण कर लिया और फिर पैदल ही पूरे भारतवर्ष की यात्रा पर निकल गए। इस रूप में यह नरेंद्र के बजाय स्वामी विवेकानंद के नाम से जाने जाने लगे।

भारतवर्ष की यात्रा के दरमियां भारत की संस्कृति से पूरी तरीके से परिचित हुए और फिर इसी दौरान 1893 में शिकागो के विश्व धर्म परिषद में इन्हें भारत के प्रतिनिधि के रूप में भेजा गया।

शिकागो के धर्म परिषद में अपने भाषण के जरिए स्वामी विवेकानंद ने हिंदू धर्म के विषय में लोगों का नजरिया ही बदल दिया और विभिन्न देशों के लोगों को अध्यात्म और वेदांत से परिचित कराया।

स्वामी विवेकानंद का निधन

अमेरिका में लगभग 3 वर्षों तक रहने के पश्चात विवेकानंद ने भारत के तत्व ज्ञान की अद्भुत ज्योति वहां के लोगों को प्रदान करते रहे। अमेरिका में भी इन्होंने रामकृष्ण मिशन की अनेक शाखाओं को स्थापित किया, उसके बाद यह भारत लौट आए और फिर 4 जुलाई 1902 को मेरठ में ध्यान करते हुए इन्होंने अपना देह त्याग किया।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध 800 शब्द

भारत के सामान्य परिवार में जन्म लेने वाले नरेंद्र नाथ ने अपने ज्ञान और तेज के बल पर विवेकानंद बन गए। अपने कार्यों द्वारा विश्व भर में भारत का नाम रोशन कर दिया। यही कारण है कि आज के समय में भी विवेकानंद लोगों के लिए एक प्रकार से प्रेरणा के स्रोत है।

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता मकर सक्रांति के शुभ त्यौहार के अवसर परंपरागत कायस्थ बंगाली परिवार में हुआ था। स्वामी विवेकानंद का बचपन का नाम नरेंद्र नाथ दत्त था। उनको नरेंद्र या नरेन के नाम से भी पुकारा जाता था।

स्वामी विवेकानंद के माता-पिता का नाम विश्वनाथ और भुनेश्वरी देवी था। उनके पिता कोलकाता के उच्च न्यायालय में वकील थे और उनकी माता एक धार्मिक महिला था। वह पिता के तर्कसंगत मन और माता के धार्मिक स्वभाव वाले वातावरण के अन्तर्गत सबसे प्रभावी व्यक्तित्व में विकसित हुए।

वह बाल्यकाल से ही आध्यात्मिक व्यक्ति थे और हिंदू भगवान की मूर्तियां जैसे भगवान शिव हनुमान जी आदि के सामने ध्यान किया करते थे। वह अपने समय के घूमने वाले सन्यासियों और शिक्षकों से भी प्रभावित थे।

स्वामी विवेकानंद बचपन में बहुत शरारती थे और अपने माता-पिता के नियंत्रण से बाहर थे। वह अपनी माता के द्वारा भूत कहे जाते थे। उनके एक कथन के अनुसार “मैंने भगवान शिव से एक पुत्र की प्रार्थना की थी और उन्हें मुझे अपने भूतों में से एक भूत भेज दिया।”

8 साल की उम्र में स्वामी विवेकानंद का चंद्र विद्यासागर महानगर संस्था और 1879 में प्रेसिडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया गया। स्वामी विवेकानंद सामाजिक विज्ञान, इतिहास, कला और साहित्य जैसे विषयों में बहुत अच्छे थे। उन्होंने पश्चिमी तर्क, पश्चिमी संस्कृति और साहित्य का अध्ययन किया था।

स्वामी विवेकानंद कोलकाता में पढ़ाई के लिये गये हुये थे तो कोलकाता शहर मे काली माताजी के मंदिर मे स्वामी विवेकानंद की मुलाक़ात श्री रामकृष्ण परमहंस से हुई। तभी स्वामी विवेकानंद का चरित्र, व्यवहार और ईश्वर के प्रति भक्ति को देखकर रामकृष्ण परमहंस ने स्वामी विवेकानंद को अपना शिष्य बनाया।

रामकृष्ण परमहंस से मिलन

रामकृष्ण परमहंस ने विवेकानंद से प्रश्न किया कि ईश्वर को खोजने के लिये हमें कौन सा मार्ग अपनाना चाहिये। स्वामी ने जवाब दिया कि इस दुनिया मे ईश्वर का अस्तित्व होता है, अगर मनुष्य ईश्वर को पाना चाहता है तो सच्चे मन से अच्छे कर्म करके, मानवजाति की सेवा करके ईश्वर को खोजा जा सकता है।

1884 में स्वामी विवेकानंद के पिता विश्वनाथ दत्त का देहांत हो गया था, जिस कारण से पूरे परिवार की जिम्मेदारी स्वामी विवेकानंद पर आ गयी थी। उनके घर की आर्थिक समस्याएं बहुत ज्यादा बढ़ गई थी, उनकी परिस्थितियों को देखते हुये रामकृष्ण परमहंस ने स्वामी जी का साथ दिया।

रामकृष्ण परमहंस कोलकाता के जिस मंदिर में स्वयं पुजारी हुआ करते थे, अपने साथ स्वामी विवेकानंद को भी ले जाकर पूजा अर्चना करने के लिये पुजारी के रूप मे उनको भी रख लिया। लम्बे समय तक परमहंस कृष्ण गुरु के साथ रहकर स्वामी विवेकानंद भी भगवान की भक्ति लीन हो गये।

स्वामी विवेकानंद के विचार

वह बहुत धार्मिक व्यक्ति थे। हिंदू शास्त्रों जैसे रामायण, भागवत गीता, महाभारत, उपनिषदह पुराण आदि में बहुत रुचि रखते थे। वह भारतीय शास्त्रीय संगीत, खेल शारीरिक व्यायाम और अन्य क्रियाओं में भी बहुत रूचि रखते थे। उनको विलियम हैस्टै द्वारा “नरेंद्र वास्तव में एक प्रतिभाशाली है” कहा गया था।

स्वामी विवेकानंद हिंदू धर्म के प्रति बहुत उत्साहित है और हिंदू धर्म के बारे में देश के अंदर और बाहर दोनों जगह लोगों के बीच नई सोच का निर्माण करने में भी सफल हुए थे। वह पश्चिम में ध्यान योग और आत्म सुधार के अन्य भारतीय आध्यात्मिक रास्तों को बढ़ावा देने के लिए भी सफल हुए। स्वामी विवेकानंद भारत के लोगों के लिए एक राष्ट्रवादी आदर्श थे।

उनके राष्ट्रवादी विचारों से कई भारतीय नेताओं का ध्यान आकर्षित हुआ। भारत की आध्यात्मिक जागृति के लिए श्री अरविंद ने उनकी प्रशंसा भी की थी। स्वामी विवेकानंद को महान हिंदू सुधारक के रूप में भी जाना जाता है और उन्होंने हिंदू धर्म का बढ़ावा भी दिया।

महात्मा गांधी द्वारा भी स्वामी विवेकानंद की प्रशंसा की गई। उनके विचारों ने लोगों को हिंदू धर्म का सही अर्थ समझने का कार्य किया और वेदांता और हिंदू अध्यात्म के प्रति पाश्चात्य जगत के नजरियों को भी बदला।

स्वामी विवेकानंद की मृत्यु

स्वामी विवेकानंद के अनेक कार्यों के लिए उन्हें चक्रवर्ती राजगोपालाचारी स्वतंत्र भारत के प्रथम गवर्नर जनरल ने कहा कि “स्वामी विवेकानंद वह व्यक्ति थे, जिन्होंने हिंदू धर्म तथा भारत को बचाया है।” उन्होंने सुभाष चंद्र बोस के द्वारा आधुनिक भारत का निर्माता भी कहा गया। ऐसा भी कहा जाता है कि 4 जुलाई 1902 में उन्होंने बेलूर मठ में 3 घंटे ध्यान साधना करते हुए अपने प्राणों का त्याग भी कर दिया था।

स्वामी विवेकानंद के जीवन में कई भिन्न-भिन्न प्रकार की विपत्तियां आई, लेकिन उन सभी विपत्तियों के बावजूद भी स्वामी विवेकानंद कभी सत्य के मार्ग से नहीं हटे और अपने जीवन भर लोगों को ज्ञान देने का कार्य किया। साथ ही अपने इन्हीं विचारों से उन्होंने पूरे विश्व को भी प्रभावित किया तथा भारत और हिंदुत्व का नाम रोशन करने का कार्य किया।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध 1000 शब्द

स्वामी विवेकानंद एक महान हिंदू संत और नेता थे, जो आज भी भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणा है। इन्होंने अपने ज्ञान के बलबूते देश विदेश तक भारतीय संस्कृति को फैलाया और भारत के प्रति लोगों के नजरिए को बदला।

विवेकानंद का जन्म पश्चिम बंगाल राज्य के कोलकाता शहर में 12 जनवरी 1863 को विश्वनाथ दत्त के यहां हुआ था। इनकी माता का नाम भुनेश्वरी देवी था। विवेकानंद के बचपन का नाम नरेंद्र था। यह अपने 8 भाई बहनों में से एक थे।

इनके पिता पेशे से कोलकाता के उच्च न्यायालय में वकील के रूप में कार्य करते थे। इनकी माता धार्मिक प्रवृत्ति की थी। अपनी माता से इन्होंने आत्म नियंत्रण और आध्यात्मिकता से संबंधित काफी ज्ञान प्राप्त किया था। अपनी माता से ही इन्हें हिंदू धर्म और सनातन संस्कृति को करीब से समझने का मौका मिला था।

नरेंद्र की माता बचपन से इन्हें रामायण और महाभारत की कहानियां सुनाया करती थी। इसी कारण नरेंद्र को बचपन से ही आध्यात्मिकता के क्षेत्र में लगाव होने लगा था। जब भी वे इस तरह के धार्मिक कथाओं को सुनते तो उनका मन हर्षोल्लास से भर जाता और ध्यान मग्न हो जाते।

इनके पिता पाश्चात्य संस्कृति को काफी ज्यादा पसंद करते थे। जब तक इनके पिता जीवित थे, घर की स्थिति काफी सुख संपन्न वाली थी। इनके पिता हमेशा से ही नरेंद्र को पाश्चात्य संस्कृति के रंग में ढालना चाहते थे।

इसीलिए वे नरेंद्र को अंग्रेजी भाषा में शिक्षा दिलवाना चाहते थे। लेकिन नरेंद्र को अंग्रेजी भाषा से बिल्कुल लगाव नहीं था। हालांकि ये प्रतिभा के धनी थे, लेकिन इनका असली लक्ष्य तो आत्म शांति और परमात्मा प्राप्ति था।

विवेकानंद ने अपने प्रारंभिक शिक्षा स्कॉटिश चर्च कॉलेज और विद्यासागर कॉलेज से की। उसके बाद इन्होंने आगे की पढ़ाई के लिए कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में प्रवेश लेने के लिए एंट्रेंस एग्जाम दिया, जिसमें विवेकानंद प्रथम स्थान पर आए थे।

यहां पर इन्होंने दर्शनशास्त्र से आगे की पढ़ाई पूरी की। हालांकि इसके अतिरिक्त इन्हें सामाजिक विज्ञान, कला, धर्म, साहित्य, इतिहास, संस्कृत और बंगाली साहित्य में भी बहुत दिलचस्पी थी।

स्वामी विवेकानंद की उनके गुरु से मुलाकात

स्वामी विवेकानंद को हमेशा से ही आत्मज्ञान चाहिए था और उन्हें इससे संबंधित कई तरह के प्रश्न थे, जिसके जवाब को पाने के लिए ब्राह्मण समाज के साथ जुड़े। लेकिन इन्हें वहां भी कोई जवाब नहीं मिला तब इन्होंने ब्रह्म समाज के नेता महा ऋषि देवेंद्रनाथ ठाकुर के द्वारा दक्षिणेश्वर के काली मंदिर के पुजारी रामकृष्ण परमहंस की प्रशंसा सुनी।

इन्होंने विवेकानंद को कहा कि उनके पास सभी तरह के प्रश्नों का उत्तर है। तब विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस को मिलने के लिए जाते हैं। पहली मुलाकात में ही विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस से पूछते हैं कि क्या आपने ईश्वर को देखा है?

दरअसल विवेकानंद से इस प्रश्न को कई लोगों ने पूछा था लेकिन उनके पास इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं था। इसीलिए वे रामकृष्ण परमहंस को यह प्रश्न पूछ कर उनके ज्ञान से बारे में अवगत होना चाहते थे।

विवेकानंद के प्रश्न पर रामकृष्ण परमहंस ने उन्हें उत्तर दिया कि हां मैंने ईश्वर को देखा है, मैं तुम में ईश्वर देख सकता हूं। ईश्वर सभी के अंदर व्याप्त है। विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस के इस उत्तर से संतुष्ट होते हैं। उनके मन को शांति मिल जाती है, जिसके बाद वे रामकृष्ण परमहंस को अपना गुरु बना लेते हैं।

स्वामी विवेकानंद ने मात्र 25 वर्ष की उम्र में अपना साधारण जीवन छोड़ सन्यासी जीवन को अपना लिया था। उससे पहले वे नरेंद्र के नाम से जाने जाते थे लेकिन सन्यासी जीवन ग्रहण करने के बाद ये स्वामी विवेकानंद कहलाए।

उसके बाद इन्होंने भारत दर्शन का निर्णय लिया और फिर निकल पड़े पैदल भारत दर्शन करने और भारतवर्ष की यात्रा करके उन्होंने भारत कि सनातन धर्म भारत की संस्कृति से पूरी तरीके से परिचित हुए।

स्वामी विवेकानंद और श्री रामकृष्ण परमहंस

सन 1893 में स्वामी विवेकानंद भारत के प्रतिनिधि के रूप में शिकागो में आयोजित विश्व धर्म परिषद में गए थे और वहां पर उनके द्वारा दिया गया भाषण आज भी युवा पीढ़ी को प्रेरित करती है। शिकागो के भाषण के माध्यम से उन्होंने भारतीय संस्कृति को पहली बार दुनिया के सामने रखा और हिंदुत्व धर्म से लोगों को परिचित कराया।

वहां पर विश्व के कई धर्मगुरु आए थे, जो अपने धर्म कीकिताबें लेकर गए थे। स्वामी विवेकानंद अपने साथ भागवत गीता लेकर गए थे। कहा जाता है कि यूरोप अमेरिका के लोग उस समय पराधीन भारतवासियों को बहुत तुच्छ नजर से देखते थे।

जिस कारण वहां पर स्वामी विवेकानंद की निंदा करने के लिए लोगों ने बहुत प्रयत्न किया कि उन्हें सम्मेलन में बोलने का ही मौका ना दिया जाए। लेकिन एक अमेरिकन प्रोफेसर स्वामी विवेकानंद ने अनुरोध किया कि उन्हें केवल दो ही मिनट चाहिए, उतने में ही वे अपने भाषण को पूरा कर लेंगे।

हालांकि वह प्रोफेसर आचार्य चकित रह गया कि इतने कम समय में ये कैसे अपने धर्म से लोगों को अवगत करा पाएंगे। लेकिन विवेकानंद के लिए इतना समय काफी था और इतने समय में उनके द्वारा बोले गये दो शब्द भाइयों और बहनों को ही सुनकर श्रोता गणों के तालियों की गड़गड़ाहट से सम्मेलन का भवन पूरी तरह गूंज उठा।

इस तरह उसके बाद स्वामी विवेकानंद ने वैदिक दर्शन का ज्ञान दिया, सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया और इस भाषण से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की एक नई छवि सामने आई।

इतना ही नहीं अमेरिका में स्वामी विवेकानंद लगभग 3 सालों तक रहे और 3 वर्षों तक वे वहां के लोगों में भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म के बारे में जानकारी देते रहे। वहां पर उन्होंने रामकृष्ण मिशन की कई शाखाएं भी स्थापित की। इस तरह अमेरिका में भी कई अमेरिकन विद्वान विवेकानंद के शिष्य बने।

स्वामी विवेकानंद का शिकागो भाषण

धर्म के नाम पर कट्टरता की भावना रखने वाले संप्रदायिक लोगों के ली विवेकानंद ने कहा था कि जिस तरह भिन्न भिन्न नदियां अंत में एक समुद्र में ही जाकर मिल जाती है, ठीक उसी तरह विश्व की जितनी भी धर्म है, अंत में वह ईश्वर तक ही पहुंचती है। इसीलिए धर्म के नाम पर कट्टरता की भावना को त्याग कर सौहार्द और भाईचारा की भावना रखनी चाहिए तभी विश्व और मानवता का विकास हो सकता है।

रामकृष्ण मिशन की स्थापना

रामकृष्ण परमहंस के शरण में आने के बाद स्वामी विवेकानंद ने अपना पूरा जीवन उनके सेवा में समर्पित कर दिया। अंत समय में रामकृष्ण परमहंस कैंसर जैसी भयानक बीमारी से ग्रसित हो गए और ऐसे स्थानों में स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरु की बहुत देखभाल की।

जब उनकी मृत्यु हो गई तब उन्होंने अपने गुरु को समर्पित रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जो बाद में रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन के नाम से जाना गया। इस मिशन की स्थापना इन्होंने 1 मई 1998 में की थी, जिसका लक्ष्य नए भारत का निर्माण करना था। इस मिशन के तहत कई स्कूल, कॉलेज और अस्पताल का निर्माण किया गया। विवेकानंद ने इसके बाद बेलूर मठ की स्थापना की।

स्वामी विवेकानंद युवाओं को हमेशा शारीरिक मजबूती पर जोर देने के लिए कहते थे। उनका मानना था कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का वास होता है। इसीलिए गीता पढने से अच्छा फुटबॉल खेलना है।

लेकिन कहा जाता है कि अंत समय में स्वामी विवेकानंद खुद भी एक बीमारी से ग्रसित हो गए थे, जिस कारण मेरठ के मठ में 4 जुलाई 1902 को मात्र 39 वर्ष की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई।

विवेकानंद एक ऐसे महान और विद्वानों संत थे, जिन्होंने अपने ज्ञान और शब्दों के द्वारा विश्व भर में हिंदू धर्म के विषय में लोगों का नजरिया ही बदल दिया। स्वामी विवेकानंद ने सभी को सच्चे धर्म की व्याख्या करते हुए कहा था कि सच्चा धर्म वह होता है, जो भूखे को अन्न दें, दुनिया के दुखों को दूर करें।

यहां तक कि विवेकानंद ने स्वयं समाज के लोगों के बीच रहते हुए समाज में व्याप्त कुप्रथा को खत्म करने का प्रयास किया। स्वामी विवेकानंद ने अपने ज्ञान के बलबूते एक ऐसी मशाल को प्रज्वलित की, जो सदैव आलौकिक रहेगा और जीवन पर्यंत वे अमर रहेंगे, उनके विचार अमर रहेंगे।

आज के आर्टिकल में आपको स्वामी विवेकानंद पर निबंध इन हिंदी (Essay On Swami Vivekananda In Hindi) के बारे सम्पूर्ण जानकारी उपलब्ध करवाई है। हमें पूरी उम्मीद है कि हमारे द्वारा दी गयी जानकारी आपको अच्छी लगी होगी। यदि आपका इससे जुड़ा कोई सवाल या सुझाव है तो कमेंट बॉक्स में जरुर बताएं।

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Rahul Singh Tanwar

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स्वामी विवेकानंद: आदर्श समाज | Swami Vivekanand: Ideal Society in Hindi

स्वामी विवेकानंद : आदर्श समाज (1863 -1902 )

Swami Vivekanand: Ideal Society

स्वामी विवेकानंद एक समाज सुधारक से अधिक एक धर्मगुरु के रूप में जाने जाते हैं। आधुनिक भारत के निर्माण में स्वामी विवेकानंद का महत्वपूर्ण स्थान सदैव ही रहेगा। उन्होंने देशभक्ति और राष्ट्रवाद की जो संकल्पना प्रस्तुत की थी, उनकी यह भूमिका तो स्वार्थ पूर्ण और दूषित भावनाओं से कई मिलों दूर थी। उन्होंने भारत के राष्ट्रीय आंदोलन को एक आदर्श रूप प्रदान करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने भारत में समाजवादी विचारों की अभिवृद्धि में अपना अभूतपूर्व योगदान दिया।

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कलकत्ता में हुआ था। उनका वास्तविक नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। उनकी माता का नाम भुवनेश्वरी देवी और पिता का नाम विश्वनाथ था। उनके पिता विश्वनाथ ने पाश्चात्य साहित्य का विस्तृत अध्ययन किया था। उनके पिता द्वारा ही नरेंद्रनाथ यानी स्वामी विवेकानंद को पाश्चात्य ज्ञान और दूसरे देशों की संस्कृति में रुचि उत्पन्न हुई थी। उनके माता-पिता द्वारा ही उनके भीतर चिंतन, जिज्ञासा, ईमानदारी तथा निर्भीकता को कूट-कूट कर भरा गया था। उन्होंने मैट्रिक पास करने के बाद प्रेसिडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया और एक वर्ष बाद ही उसे छोड़कर, उन्होंने स्कॉटिश मिशन बोर्ड द्वारा स्थापित जनरल असेंबली कॉलेज में दाखिला ले लिया। उनकी बुद्धि और आकर्षक व्यक्तित्व ने अध्यापकों और छात्रों दोनों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। वे साहित्य दर्शनशास्त्र व इतिहास की पुस्तकों में अधिक रुचि रखते थे। स्वामी विवेकानंद की श्री रामकृष्ण परमहंस से पहली बार मुलाकात सन् 1881 में हुई थी। स्वामी विवेकानंद का सारा जीवन घोर कर्म की अप्रतिम धारा से भरा हुआ था। उनके जीवनकारों का कहना है कि विवेकानंद के आध्यात्मिक विकास क्रम में जीवन के इस कार्य में दो समानांतर विचारधाराएं क्रियाशील प्रतीत होती हैं। एक तो यह है कि चेतना अवस्था में परम सत्य को जानने की और समाधि में निमग्न होने की उत्कट इच्छा का होना। सन् 1886 में रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु के पश्चात् ही उन्होंने भारत भ्रमण के द्वारा अपने विचारों को जन जन तक पहुंचाने का प्रयास किया।

विवेकानंद के विचारों पर हमें शंकराचार्य, ब्रह्म समाज, रामकृष्ण परमहंस, प्लेटो, कांत, हीगल, हरबर्ट स्पेंसर, ह्यूम, लॉक, मील आदि के विचारों का प्रभाव देखने को मिलता है। सन् 1893 में विवेकानंद शिकागो चले गए, जहां पर अमेरिका में चल रही विश्व धर्म संसद में उन्होंने भाग लिया। उनके भाषण को सुनकर लोग उनसे बहुत प्रभावित हुए और सभी ने ज़ोरदार तालियों की गूंज द्वारा उनका स्वागत किया। इसके पश्चात् तीन वर्षों तक उन्होंने वेदांत के दर्शन एवं धर्म की शिक्षा को अमेरिका और इंग्लैंड के जन-जन तक फैलाया। जिसके पश्चात् कुछ समय बाद वे भारत वापिस आ गए। यहां पर वापिस आकर उन्होंने रामकृष्ण मठ एवं मिशन की स्थापना 1897 में की और 1898 में उन्होंने बेलूर मठ की स्थापना की। सन् 1899 के दौरान वे फिर से पश्चिमी देशों की यात्रा पर चले गए। सन् 1900 में वे भारत वापिस आ गए, जिसके पश्चात् सन् 1902 में सेहत संबंधी समस्याओं के चलते उनकी मृत्यु हो गई।

विवेकानंद के आदर्श समाज ( Ideal Society ) पर विचार

स्वामी विवेकानंद का दर्शन मुख्यतः विश्व दर्शन पर आधारित था। स्वामी विवेकानंद ने भारतीय इतिहास की यदि प्रशंसा की है तो साथ ही साथ उन्होंने भारतीय समाज को प्रभावित करने वाली समस्याओं का भी वर्णन किया है। उन्होंने भारतीय समाज में गरीबी, अंधविश्वास और हिंदू समाज में जातीय भेदभाव को समाज की प्रमुख समस्या माना। स्वामी विवेकानंद ने मुख्य रूप से मानवता के विचार की ओर अधिक बढ़ावा दिया। उनका मानना था कि विश्व की किसी भी संपदा से अधिक मूल्यवान मनुष्य होता है। यहां तक कि मनुष्य जीवन को समझने के लिए ईश्वर को भी मनुष्य का ही अवतार लेना पड़ा था। उनका मानना था कि मनुष्य में दैवीय शक्ति होती है और वह एक प्रकार से ईश्वर का प्रतिबिंब होता है। जितना ही एक मनुष्य अंदर से पवित्र होगा, उतना ही उसके अंदर की दैवीय शक्ति उसके बाहर की ओर झलकती है।

वह अद्वैतवाद में विश्वास रखते थे। उनका मानना था कि मनुष्य की आत्मा एक सार्वभौमिक ब्रह्मांड की शक्ति का भाग होती है। यह आत्मा ईश्वर का अंश हैI ईश्वर शाश्वत होता है और यह आत्मा सदैव ही जन्म एवं मृत्यु से परे होती है। यह आत्मा अजर अमर होती है। हमें अमूमन यह लगता है कि हमारे अंदर परिवर्तन आ रहे हैं लेकिन सत्य यह होता है कि हमारे चारों ओर की प्रकृति बदलती रहती है, जिस कारण से हमें परिवर्तन महसूस होता रहता है। रूसो, जॉन लॉक एवं मैरी वोलस्टोनक्राप्ट की भांति ही स्वामी विवेकानंद भी पूर्णता की बात करते हैं। उनका कहना है कि यदि मनुष्य अपने भीतर की अच्छाइयों पर लगातार काम करे, तो उसे वह वहाँ तक लेकर जा सकता है जहाँ पर उसे पूर्णता प्राप्त होगी। प्रकृति ने जन्म के साथ ही हमें नैतिक गुण, कारण की भावना, पवित्रता, बुद्धि प्रदान की है, लेकिन हमें जीवनभर इसमें वृद्धि, अभ्यास व पूर्णता लाने का प्रयास करते रहना चाहिए। यदि हम ऐसे नहीं करेंगे तो हमारे अंदर के यह सभी गुण हमेशा ही सोए रहेंगे, इसलिए इन्हें जगाने का सदैव प्रयास करते रहना चाहिए। केवल इसे ही हम कर्म के नाम से जानते हैं और इसके द्वारा ही हम अपने भीतर की पूर्णता को प्राप्त कर पाएंगें। यह पूर्णता ही मनुष्य की आत्मा के लिए अत्यंत आवश्यक है। जब हम इस पूर्णता को प्राप्त कर लेते हैं तो हम स्वयं से ही स्वशासन, आत्म-निपुणता, आत्म-साक्षात्कार करने लगते हैं और जब मनुष्य को इन सब ही की प्राप्ति हो जाती है तो हमारी आत्मा परमात्मा के साथ मिलकर एक हो जाती है। यही सच्चे मायनों में असल स्वतंत्रता होती है।

उनका मानना है कि धर्म का अर्थ है जब हम स्वयं की आत्मा को पूर्ण बना देते हैं। धर्म आत्म-अनुभूति का माध्यम होता है। स्वयं को ईश्वर या रचयिता में विलीन कर देना ही धर्म होता है। ईश्वर ब्रह्मांड की हर चीज़, हर कण में विद्यमान हैI हर धर्म एकता में विश्वास रखता है, सभी धर्मों के जीवन का उद्देश्य एक ही है। उनका मानना था कि सामाजिक कुरीतियां या बुराइयां धर्म के कारण समाज में नहीं आई हैं बल्कि धर्म व सामाजिक व्यवस्था दोनों ही एक- दूसरे से अलग हैं। सामाजिक व्यवस्था विशेष रूप से उपयोगिता, स्थिरता, स्व-आरक्षण के लिए होती है। समाज में सुधार या परिवर्तन के लिए जरूरी नहीं है कि आप स्वयं का धर्मांतरण कर लें बल्कि धर्म को त्यागने की बजाय उसे सुधारने का प्रयास करना चाहिए। इसी कारण से ही, वे पंडिता रमाबाई के धर्म परिवर्तन के विरोधी रहे थे। वे मानते थे कि धर्म में ही स्वतंत्रता, समानता एवं बंधुत्व निहित होता है।

स्वामी विवेकानंद के अनुसार, आत्मा के तीन गुण होते हैं :

  • सत्व ( Sattva ) : शुद्धता, अच्छाई, ज्ञान
  • रज ( Rajas ) : गतिविधि, जोश, इच्छा
  • तम ( Tamas ) : आलस्य, विनाश, अंधकार

विवेकानंद का कहना था कि इन तीन तत्वों द्वारा ही समाज का निर्माण होता है और यह सामाजिक विभाजन हमें प्रत्येक समाज में दिखाई देता है। इसी प्रकार से प्लेटो ने भी आत्मा के तीन तत्वों की बात कही थी- तृष्णा या क्षुधा (appetite), साहस (spirit), बुद्धि या ज्ञान (Reason)। सामाजिक व्यवस्था में इन चारों वर्गों यानी कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा क्षुद्र का सामाजिक विभाजन अत्यंत ही आवश्यक है लेकिन धीरे-धीरे इनका सामाजिक व्यवस्था में अपभ्रंश होने लगा।

विवेकानंद का मानना था कि धर्म कहीं बाहर से नहीं आता है बल्कि यह व्यक्ति के भीतर ही होता है। धार्मिक विचार मनुष्य की रचना में ही सन्निहित है और वास्तव में चाहकर भी मनुष्य धर्म का त्याग तब तक नहीं कर सकता, जब तक कि उसका शरीर, मन, मस्तिष्क एवं जीवन चल रहा है। जब तक मनुष्य में सोचने की शक्ति रहेगी, तब तक उसका यह संघर्ष चलता ही रहेगा। किसी न किसी रूप में तब तक यह धर्म उसके जीवन के साथ ही रहेगा। उनका कहना था कि सामाजिक व्यवस्था में विभाजन की आवश्यकता तब तक होती है, जब तक कि इसमें कोई वैकल्पिक व्यवस्था न आ जाए।

विवेकानंद का मानना था कि कोई भी समाज केवल शक्ति के बल पर ही शक्तिशाली बन सकता है। एक सन्यासी होने के बावजूद भी वे लोगों को निर्भीकता का संदेश देते थे, जिस कारण से ही युवाओं के बीच उन्हें अत्यंत ही पसंद किया जाता था। उनके कई भाषणों और लेखों में हमें उनके एक आदर्श समाज के अवधारणा के पर्याप्त सुराग मिलते हैं। उन्होंने कहा कि समाज एक ऐसा महानतम स्थान होता है, जहां पर सर्वोच्च सत्य व्यवहारिक बन जाता है। इसका अभिप्राय यह है कि आदर्श समाज को इस तरह से संगठित किया जाना चाहिए जिसमें व्यक्ति की दिव्यता का अनुभव किया जा सके। व्यक्ति की समानता को विवेकानंद के आदर्श समाज की सबसे महत्वपूर्ण विशेषताओं में से एक माना जाता है। उनका मानना था कि सभी मनुष्य अपनी प्राकृतिक क्षमता के आधार पर समान नहीं होते हैं तथा शारीरिक बनावट के आधार पर और सामाजिक स्तर के आधार पर समरूपता को प्राप्त नहीं किया जा सकता, लेकिन आदर्श समाज द्वारा ही इसमें कमी लाने का प्रयास किया जा सकता है। सभी प्रकार के मतभेदों को समाप्त करने के लिए मृत्यु और विनाश को लाना होगा। प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने विचार को श्रेष्ठ तरीके से साकार कर सकता है।

विवेकानंद के अनुसार जब एक आदर्श समाज की शुरुआत होती है तो उसे इस आधार पर स्थापित होना चाहिए, जो कि निम्नलिखित रूप से है-

  • धार्मिक राज्य ( Theocratic state )
  • सकारात्मक पहलू : विज्ञान की नींव , बौद्धिक एवं आध्यात्मिक उत्कर्ष।
  • नकरात्मक पहलू : ज्ञान का एकाधिकार, विशेष धार्मिक कर्मकांड, पुरोहित की शक्तियां बढ़ना।
  • सैनिक राज्य ( Military state )
  • सकारात्मक पहलू : कला और संस्कृति की महान उन्नति, ज्ञान का विस्तार।
  • नकरात्मक पहलू : क्रूर, अत्याचारी शासन, बहुत सीमित अधिकार।
  • वाणिज्यिक राज्य ( Commercial state)
  • सकारात्मक पहलू : ज्ञान का विश्वव्यापी विस्तार, वितरण की भावना, व्यक्तिगत अधिकार और स्वतंत्रता।
  • नकारात्मक पहलू : मूक शोषण, राजनीतिक समानता, लेकिन निचले स्तर पर असमानता का संचालन करना।
  • समाजवादी राज्य ( Socialist State )
  • सकारात्मक पहलू : आर्थिक समानता, अधिक वितरणात्मक न्याय, शिक्षा का समावेशी विस्तार।
  • नकारात्मक पहलू : संस्कृति में कमी, असाधारण प्रतिभा में कमी, भीड़तंत्र का बढ़ना।

विवेकानंद के आदर्श समाज के राज्य के अनुसार, यह वह राज्य होगा, जहां पर सभी नागरिक एक समान होंगे। जहां पर कि सभी ‘ब्राह्मण’ अर्थात् ज्ञानी होंगे यानी कोई भी न तो निम्न जाति से होगा और न ही कोई उच्च जाति से होगा एवं सभी को शिक्षा व शिक्षित होने का अधिकार प्राप्त होगा। जिसमें उपरोक्त चार नियमों में से प्रत्येक के आधार पर ब्राह्मण या पुरोहित को शासन का ज्ञान, क्षत्रिय को सैन्य शासन की संस्कृति, वैश्य को वाणिज्यिक शासन की वितरण प्रणाली और शूद्र को शासन के समतावाद के लिए अक्षुण्ण रखा जाएगा तथा सामाजिक बुराइयों को समाप्त कर दिया जाए। जहां पर हर जगह पर केवल प्रेम और सद्भाव हो। आदर्श समाज वह है जिसमें उच्चतम सत्य व्यावहारिक हो जाता है और जिसमें मनुष्य को दिव्यता का एहसास होता है। जहां पर एक व्यक्ति अन्य लोगों की भलाई के लिए त्याग करता है। जहां पर पश्चिम की वैज्ञानिक तकनीकी प्रगति के साथ पूर्व के अध्यात्मिकता और मूल्य प्रणाली का संयोजन हो। जहां पर अल्पसंख्यकों पर कोई अत्याचार न हो। साथ ही जहां बल, धन, बुद्धि, जन्म या अध्यात्मिकता का किसी को भी कोई विशेषाधिकार प्राप्त न हो। जिस प्रकार से हृदय द्वारा संपूर्ण शरीर में खून का संचालन होता है उसी प्रकार से ज्ञान रूपी धन का संचालन निरंतर होना चाहिए, उसे रुकना नहीं चाहिए क्योंकि यदि वह रुक जाएगा तो उससे समाज में विद्रोह उत्पन्न हो सकता है। एक ऐसा समाज जहां पर व्यक्ति वास्तव में स्वतंत्र और समान हो। इस समाज में व्यक्ति को विकास के समान अवसर प्राप्त हो सकें। हर कोई दूसरे साथी को भाई के रूप में मानता हो, जहां पर एक दूसरे के प्रति भाईचारे की भावना हो और गरीबों और दलितों की सेवा को भगवान की सेवा के रूप में माना जाए।

स्वामी विवेकानंद ने विश्व बंधुत्व के विचार पर बल दिया। उन्होंने कहा कि प्रत्येक मनुष्य दिव्य है और व्यक्तियों के बीच में किसी भी प्रकार का कोई मौलिक अंतर नहीं होना चाहिए। उनका कहना था कि जिस प्रकार से 33 करोड़ देवी देवताओं की पूजा की जाती है, उसी प्रकार से हमें गरीबों की सेवा करनी चाहिए। यदि मनुष्य में ईश्वर का अंश है तो उसका केवल यह अर्थ हुआ कि इस सेवा द्वारा ही हम ईश्वर की सेवा कर रहे हैं।

किस प्रकार से इसे समाज में साकार किया जा सकता है ….?

  • शिक्षा द्वारा इसे साकार किया जा सकता है खासतौर पर यह शिक्षा जन-जन तक पहुंचाई जाए।
  • समाज में सदियों से चले आ रहे सामाजिक भेदभाव को कम करने के लिए पिछड़े वर्ग को राज्य दवारा कोटा (Reservation) एवं छात्रवृत्ति (scholarship) दी जाए ताकि इसके द्वारा ही सकारात्मक रूप में सामाजिक भेदभाव को कम किया जा सके।
  • निम्न वर्ग या निम्न जाति को उच्च जाति या वर्ग के बराबर ही उसी समान स्तर तक ले जाना अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए समाज में सामाजिक समानता को लाना ही पड़ेगा।
  • धर्म के वास्तविक सार को साकार करने वाली सांस्कृतिक क्रांति की आवश्यकता है। केवल इसके द्वारा ही लोग धर्म के वास्तविक अर्थ को जान सकेंगे और धर्म के नाम पर चल रहे विभिन्न आडंबरों से बच सकेंगे।
  • किसी भी व्यक्ति के उत्थान के लिए आत्मविश्वास का होना महत्वपूर्ण पहलू है। यह आत्मविश्वास व उत्थान केवल ज्ञान के मार्ग द्वारा ही पैदा हो सकता है।

स्वामी विवेकानंद ने आधुनिक आदर्श समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद, जनता को ऊंचा उठाना, जन शक्ति, नारी शक्ति, अस्पृश्यता उन्मूलन, हिंदू मुस्लिम एकता, विश्वव्यापी साक्षरता और अनौपचारिक शिक्षा, इन सभी क्षेत्रों के लिए आधुनिक भारत के निर्माण में योगदान दिया। विवेकानंद ने भारतवासियों के समक्ष आदर्श समाज की आध्यात्मिक रूपरेखा को प्रस्तुत किया। जिसमें विभिन्न समस्याओं पर सभी का ध्यान आकर्षित किया एवं साथ ही साथ इसका उन्होंने समाधान भी बताया। उनका चिंतन धर्म और दर्शन पर आधारित था। वह समाजशास्त्री नहीं थे किंतु फिर भी मैक्स वेबर ने ‘ Essays In Sociology’ में माना कि उन्होंने भारतीय समाज की समाजशास्त्रीय व्याख्या करने का प्रयत्न किया तथा ब्राह्मणों एवं क्षत्रियों के मध्य लंबे समय तक चले आ रहे संघर्ष की ओर ध्यान आकृष्ट किया। वर्तमान में बेलूर मठ के अतिरिक्त रामकृष्ण मठ और मिशन की 135 शाखाएं कार्य कर रही हैं। इनमें से कुछ भारत में व अन्य बांग्लादेश, श्रीलंका, सिंगापुर, फिजी, मारीशस, स्विट्जरलैंड, फ्रांस, अर्जेंटीना, इंग्लैंड, जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, नीदरलैंड और रूस में वेदांत के ज्ञान का विश्व में प्रचार-प्रसार द्वारा परचम लहरा रही हैं। रामकृष्ण मिशन द्वारा स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, अनाथालय आदि वेदांत शिक्षा के केंद्र भारत और विदेशों में चलाए जा रहे हैं। स्वामी विवेकानंद का उद्देश्य जनसाधारण में जागृति लाकर राष्ट्र व जनता को जागृत करना था।

महत्वपूर्ण प्रश्न

  • How did Vivekananda revitalized Indian society? Discuss. (2017)

        विवेकानंद ने किस प्रकार भारतीय समाज को पुनर्जीवित किया है? विवेचना कीजिए।

  • Discuss Vivekananda’s views on ideal society. (2018)

       आदर्श समाज पर विवेकानंद के विचारों की चर्चा कीजिए?

  • Critically examine Swami Vivekananda’s views on ideal society. (2019)

       आदर्श समाज पर स्वामी विवेकानंद के विचारों का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए?

संदर्भ सूची

  • त्यागी, रूचि (सं) (2015). ‘आधुनिक भारत का राजनितिक चिंतन: एक विमर्श’ , हिंदी माध्यम कार्यान्वयन निदेशालय: दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली.
  • N. Roy, (1998). ‘Traditions and Innovation in Indian Political Thought ’ , Ajanta Publishers, Delhi.
  • नागर, डॉ. पुरुषोतम (2019). ‘ आधुनिक भारतीय सामाजिक एवं राजनितिक चिंतन ’, राजस्थान हिंदी ग्रंथ अकादमी, जयपुर .
  • School of open learning University of Delhi, ‘ Indian Political Thought-II’ : Paper-XIV, New Delhi: University of Delhi.
  • Complete Works of Swami Vivekananda, Vol. II, p. 84. Hereafter, Complete Works.
  • Varma V. P. (1991). ‘Moden Indian Political Thought Vol. II’ , Lakshmi Narayan Agarwal Educational Publishers, Agra.

“मुफ्त शिक्षा सबका अधिकार आओ सब मिलकर करें इस सपने को साकार”

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Essay on Swami Vivekananda in Hindi – स्वामी विवेकानंद पर निबंध

दोस्तों आज की इस आर्टिकल में हम आपको स्वामी विवेकानंद पर निबंध सरल भाषा में – Essay on Swami Vivekananda in Hindi के बारे में बताएंगे यानी की Swami Vivekananda par Nibandh kaise Likhe इसके बारे में पूरी जानकारी देंगे यानी की आपको Swami Vivekananda par 1200 words का essay मिलेगा इसलिए ये आर्टिकल पूरा धेयान से पूरा पढ़ना है। आपके लिए हेलफुल साबित होगी।

स्वामी विवेकानंद भारत के सबसे बड़े महापुरुष और धर्म गुरु है उन्होंने हमारी संस्कृति और हिंदू धर्म को पश्चिमी देशों को परिचित कराया आज पूरा विश्व योग दिवस मनाता है और योग को अपनी पहली प्राथमिकता के तौर पर करता है इस योग्य को परिचित भी स्वामी विवेकानंद ने ही पश्चिमी देशों को कराया स्वामी विवेकानंद युवाओं के नेता और मार्गदर्शक थे.

Essay on Swami Vivekananda in Hindi

उन्होंने देश की संस्कृति और देश के विकास के लिए अहम कदम उठाये और कार्य किए। स्वामी विवेकानंद हमारे देश की संस्कृति और वेदांत और आध्यात्मिक के महान ग्रुप है उन्होंने हमारे वेदांत और आध्यात्मिक ज्ञान को पश्चिमी देशों को परिचित कराया।

आज पूरा विश्व संस्कृति और हिंदू धर्म के वेदों और योग के मूल्य को जानता है और उन मूल्यों को पूरे विश्व में लाने का श्रेय स्वामी विवेकानंद को जाता है स्वामी विवेकानंद जी हमारे संस्कृति के प्रचार के लिए पूरे विश्व भर का भ्रमण किया और लोगों को हमारे संस्कृति का परिचय कराया।

19वीं सदी के अंत में हिंदू धर्म के प्रचार प्रसार और लोगों के आंतरिक शक्ति और आत्मविश्वास और चेतना को जगाने के लिए स्वामी विवेकानंद ने बहुत ही कार्य किए उन्होंने लोगों को जागरूक किया आज पूरा विश्व हिंदू धर्म और इसके रीति रिवाज को जानते हैं।

Swami Vivekananda रामकृष्ण मठ की स्थापना की जो आज भी कार्य कर रही है इस मठ में आज भी हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति का प्रचार किया जाता है आज भी मठ समाज कल्याण में जुड़े हुए हैं। स्वामी विवेकानंद ने मठ का नाम अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के नाम पर रखा.

Swami Vivekananda युवाओं के रोल मॉडल हैं। युवाओं को आगे बढ़ने और युवाओं को अपने आत्मविश्वास के बल से परिचय कराया। स्वामी विवेकानंद ने हमारे युवाओं को राष्ट्रीयता का पाठ पढ़ाया और इसी के सहारे उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ मुहिम भी चलाएं। उन्होंने हमारे देश के लोगों को एक किया और अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ खड़ा किया।

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स्वामी विवेकानंद की जीवनी (Biography of swami vivekananda in Hindi)

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 में पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में हुआ था। उस वक्त कोलकाता ब्रिटिश इंडिया की राजधानी थी। स्वामी विवेकानंद जी का बचपन में नाम नरेंद्र दत्त था। उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्ता और उनके माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था।

उनके पिता विश्वनाथ दत्ता कोलकाता हाईकोर्ट में कार्यरत उनकी माता एक आध्यात्मिक व्यक्तित्व वाले थे स्वामी विवेकानंद को अपनी शुरुआत में आध्यात्मिक ज्ञान अपने माता से ही मिले स्वामी विवेकानंद के दादाजी संस्कृत और फारसी के जानकार थे उन्होंने 25 साल की उम्र में अपने परिवार को छोड़कर सन्यासी जीवन को अपना लिया।

Swami Vivekananda को बचपन से ही आध्यात्मिक में बहुत ही उचित है वह भगवान श्री राम और हनुमान जी के तस्वीरों के सामने अध्यन करते रहते थे। इतना ही नहीं नरेंद्र दत्ता बहुत ही नटखट भी थे उनके माता-पिता को बचपन में  संभालना बहुत ही मुश्किल होता था इसीलिए मैंने भगवान शिव से पुत्र मांगा था पर उन्होंने मुझे एक शैतान दे दिया।

1871 में 8 साल की उम्र में उनका दाखिला ईश्वर चंद्र विद्यासागर के स्कूल में हुआ। यहां पर उन्होंने 6 साल तक पढ़ाई की इसके बाद उनका परिवार रायपुर चला गया 1879 में स्वामी विवेकानंद और उनके माता-पिता कोलकाता लौटे और उस वक्त स्वामी विवेकानंद पहले छात्र थे जिन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज के प्रवेश परीक्षा में फर्स्ट डिवीजन अंक लाए थे।

स्वामी विवेकानंद की पढ़ने की क्षमता बहुत ही अधिक थी वह एक बहुत ही अच्छे reader थे। नरेंद्र दत्त को भारतीय क्लासिक संगीत में रुचि थी। नरेंद्र दत्त को अध्यात्म धार्मिक इतिहास सामाजिक विज्ञान जैसे विषयों में बहुत ही अधिक रूचि थी उन्हें हिंदू धर्म के वेदांत पुराण महाभारत उपनिषद में भी बहुत ही रुचि थी।

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उन्होंने अपनी स्नातक की पढ़ाई arts subject से की। उन्होंने पश्चिमी सभ्यता पश्चिम में अध्यात्म और यूरोपियन इतिहास को भी पढ़ा। नरेंद्र दत्त पढ़ने में बहुत ही अव्वल थे उनके याद रखने की क्षमता बहुत ही अधिक और उनके तेज पढ़ने की क्षमता अतुल्य थी।

Swami Vivekananda तब के धर्मगुरु रामकृष्ण परमहंस से बहुत ही प्रभावित हुए और उन्हें अपना गुरु माना। उन्होंने अपनी आध्यात्मिक और हिंदू समाज के ज्ञान को स्वर्गीय रामकृष्ण परमहंस से ही प्राप्त किया। उन्होंने अपनी पूरी जीवन को गुरु सेवा में लगा दिया।

आध्यात्मिक और इन सब चीजों से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने सन्यासी जीवन को अपनाया उनके गुरु का एक उद्देश्य था भगवान की सेवा मानवता की सेवा में है और स्वामी विवेकानंद ने इस उद्देश्य को अपनी जीवन भर पूरा किया।

स्वामी विवेकानंद ने एक ऐसे समाज की कल्पना की जिसमें किसी जाति लिंग के आधार पर भेदभाव ना हो जहां पर लोगों को एक अच्छी शिक्षा प्राप्त हो और लोगों के ऊपर अत्याचार ना हो इसी उद्देश्य के साथ उन्होंने भारत में भ्रमण किया और लोगों को देश के प्रति जागरूक किया।

लोगों को एक दूसरे के प्रति जागरूक 4 देशवासियों को एक किया ताकि पूरा देश मिलकर अंग्रेजी साम्राज्य से लड़ सके और अपने आजादी को प्राप्त कर सकें।

उन्होंने सदा ही अपने जीवन में नारियों का सम्मान किया उन्होंने समाज में नारी पर हो रहे अत्याचार को कम करने के लिए बहुत ही अहम भूमिका निभाई उन्होंने लोगों को नारी के प्रति जागरूक कराया और नारियों को उनका सम्मान दिलाया।

एक बार की बात है जब स्वामी विवेकानंद कहीं विदेश में एक उपदेश दे रहे थे उनके स्पीच से विदेशी महिलाएं बहुत ही प्रभावित हुई उन्होंने स्वामी विवेकानंद से मिलने की इच्छा जताई जब यह स्त्रियां स्वामी विवेकानंद से मिली तब उन्होंने उनसे कहा जी आप बहुत ही गौरवशाली पुरुष हैं।

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स्वामी विवेकानंद से कहा आप हमसे शादी कर ले और तब हमें आपके जैसा पुत्र प्राप्त होगा तब स्वामी विवेकानंद ने हंसते हुए उत्तर दिया आप सभी तो जानते हैं कि मैं एक सन्यासी हूं भला मैं कैसे शादी कर सकता हूं अगर आपको मेरे जैसा पुत्र चाहिए तो आप मुझे अपना पुत्र बना ले इससे आप की भी इच्छा पूरी हो जाएगी और मेरा भी धर्म नहीं टूटेगा।

यह तो सुनते ही विदेशी महिलाएं Swami Vivekananda के चरणों में जा पड़ी और उन्होंने कहा आप धन्य है प्रभु आप एक ईश्वर के स्वरूप है आप किसी भी परिस्थिति में अपने धर्म को नहीं छोड़ सकते हैं।

अपने 30 वर्ष की छोटी से आयु में उन्होंने अमेरिका के शिकागो में हो रहे धर्म सम्मेलन में हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया और हिंदू धर्म से पश्चिमी देशों को परिचित कराया। उनकी ख्याति इतनी है कि गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने एक बार कहा था यदि आप भारत के बारे में जानना चाहते हैं तो स्वामी विवेकानंद को पढ़िए।

Swami Vivekananda भारत के लोगों को और देशवासियों को आवाहन दिया कि आओ साथ चल पड़े और इन दुराचारी अंग्रेजों से अपने देश को आजाद कराएं उन्हें कई शव वाहन का फल महात्मा गांधी के आजादी की लड़ाई में देखा इतना जनसैलाब स्वामी विवेकानंद के आह्वान के कारण आया स्वामी विवेकानंद अपने देश से बहुत अधिक प्रेम करते थे

उनका यह मानना था कि हमारे देश के युवा इस विश्व के सर्वश्रेष्ठ युवाओं में से एक है और हमारे देश के युवा ही हमारे देश की नींव रखेंगे इसीलिए स्वामी विवेकानंद को युवा का नेता भी कहा जाता है और आज हम उनके जन्मदिवस को युवा दिवस के तौर पर मनाते हैं हर साल हम 12 जनवरी को युवा दिवस के तौर पर स्वामी विवेकानंद को श्रद्धांजलि देते हैं।

 मृत्यु:  उन्होंने अपने जीवन काल में कभी भी पढ़ना नहीं छोड़ा वह हर वक्त दो-तीन घंटे पढ़ते ही रहते थे। 4 जुलाई 1902 में अपने पढाई करते वक्त ही उन्होंने महासमाधि ली। उनका अंतिम संस्कार बेलूर मठ में किया गया। उनकी अंत्येष्टि चंदन की लकड़ी से बेलूर मठ वेट किया गया ठीक गंगा नदी के दूसरे तट में 16 वर्ष पूर्व रामकृष्ण परमहंस का अंतिम संस्कार हुआ था।

उनका जीवनकाल पूरी तरह से देश को समर्पित और सामाजिक और हिंदू धर्म को समर्पित था आज हमें स्वामी विवेकानंद के रास्तों पर चलना चाहिए अगर हम सफल होना चाहते हैं तो हमें स्वामी विवेकानंद के दिखाए गए रास्तों में चलना चाहिए इन्होंने समाज को एक आईना दिखाया और नए समाज की परिकल्पना की और इस परिकल्पना को पूरा करने के लिए उन्होंने अपने जीवन भर कार्य किया।

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मुझे उम्मीद है की स्वामी विवेकानंद पर निबंध सरल भाषा में – Essay on Swami Vivekananda in Hindi के बारे में आपको पूरी जानकारी मिली होगी और साथ ही Swami Vivekananda par Nibandh kaise Likhe इसके बारे में भी खेर अगर आपको अच्छा लगा हो तो अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें।

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स्वामी विवेकानंद की जीवनी ~ Biography Of Swami Vivekananda In Hindi

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1863
कलकत्ता
(अब कोलकाता)
1902 (उम्र 39)
बेलूर मठबंगाल रियासतब्रिटिश राज
(अब बेलूरपश्चिम बंगाल में)
, भक्ति योगज्ञान योग,माई मास्टर
, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाये"

शिकागो वक्तृता [ स्वामी विवेकानन्द,विश्व धर्म सभा, शिकागो ] | Swami Vivekananda's Complete Speech In Hindi At World's Parliament Of Religions, Chicago

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Nice post meri bhi blog hai http://www.hindihint.com is par bhi aap hindi me biography ke saath bhut kuch pad skte hai

Aapne sawami ji ke baare me bahut achhi jankari di hai.

swami vivekananda assignment in hindi

bhai ek baat bolna tha.... pura to wikipedia ko he chhaap diya uska bhin link dene bolte na.....

You have written a very good article. You have given very interesting information about Swami Vivekananda. Here you have explained all the facts very beautifully.

bahut achha lekh

Very good information about sawami vivekananda

सारगर्भित और ज्ञान से ओत-प्रोत जानकारी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद !

Very nice information

It is very good biography on my idel Swami Vivekananda

अद्भुत ज्ञान के भंडार हैं स्वामी विवेकानंद जी

Very nice biography

Bahut achha likha hai aapne Swami ji ke bare main

swami ji 1 din me 700 page yaad kar lete the

Bhut hi shandar likha sir aapne bhut si bate nahi janta jo ab jan gya

Great 🙏🙏🙏🙏🙏 ❤❤❤❤❤❤❤❤

kashto se bhara jiban apne laskh or Hindu dharm ko bataye

Swami ji ka lekh pada bahut acchha laga

◦•●◉✿Great man✿◉●•◦

Swami vivekanand ji ko mera namaskar kitne vidvaan hai swami vivekanand ji

Thanku so much this information

संक्षिप्त में बहुमूल्य जानकारी।

आपको हमारे तरफ से बहुत धनबाद 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

बहुत-बहुत धन्यवाद भारत के इतिहास के सबसे बड़े व्यक्ति के जीवन के बारे में बताने के लिए।

if a real good we can talk to anyone that is vivakanand, my hero good is thru but vivakanand is master of everyone. his word to protact other befor himself , i real like

very nice sir

very informational and high quality article about Swami Vivekananda

आपने स्वामी विवेकानंद जी के जीवन के बारे में अच्छी जानकारी दी है

I am able to write my project with it

Bahut hi sundar raha hai ye anubhav mere liye

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हिंदीपथ - हिंदी भाषा का संसार

ज्ञानयोग – स्वामी विवेकानंद की प्रसिद्ध पुस्तक

“ज्ञानयोग” स्वामी विवेकानंद की मुख्य पुस्तकों में से एक है। इस विषय पर उन्होंने लंदन और न्यू यॉर्क में जो व्याख्यान दिए थे, उनको संकलित करके ही यह पुस्तक बनायी गयी है। ये भाषण श्री गुडविन नामक स्टेनोग्राफ़र ने लिपिबद्ध किए थे, जो बाद में स्वामी विवेकानन्द के शिष्य बन गए थे।

“ज्ञानयोग” वस्तुतः दो शब्दों से मिलकर बना है – “ज्ञान” और “योग”। यह ज्ञान द्वारा ईश्वर से ऐक्य उपलब्ध करने का साधन है। यह मार्ग उन लोगों के लिए है जो बुद्धि-प्रधान हैं और तर्क तथा युक्ति से आत्मज्ञान की प्राप्ति करना चाहते हैं। पढ़ें स्वामी विवेकानंद की विख्यात किताब “ज्ञानयोग” हिंदी में–

  • मनुष्य का यथार्थ स्वरूप
  • मनुष्य का वास्तविक और प्रातिभासिक स्वरूप
  • माया और भ्रम
  • माया और ईश्वर धारणा का क्रम विकास
  • माया और मुक्ति
  • ब्रह्म एवं जगत
  • विश्व बृहत ब्रह्माण्ड
  • विश्व सूक्ष्म बृह्माण्ड
  • बहुत्व में एकत्व
  • सभी वस्तुओं में ब्रह्मदर्शन
  • अपरोक्षानुभूति
  • आत्मा का मुक्त स्वभाव
  • धर्म की आवश्यकता
  • आत्मा उसके बंधन तथा मुक्ति
  • संन्यासी का गीत

ज्ञान योग पुस्तक में सत्रह अध्याय हैं, जो स्वामी जी के व्याख्यानों का लिपिबद्ध रूप हैं। इसमें वेदान्त के सूक्ष्म तत्त्वों की बड़ी सुन्दर और तार्किक व्याख्या की गयी है। कई अध्याय मूल वेदांत ग्रंथों अर्थात उपनिषदों पर आधारित हैं जिनकी सुललित विवेचना स्वामी विवेकानंद ने की है। जो भी इस पुस्तक को पढ़ता है, वह स्वामी जी की गंभीर प्रतिभा के ज्ञानयोग के उदात्त तत्त्वों से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता है।

यह एक व्यावहारिक मार्ग है। स्वामी जी के अनुसार जीवन का हर पहलू ज्ञान योग से उत्पन्न हुई चेतना द्वारा आच्छादित होना चाहिए। केवल बौद्धिक चिंतन नहीं, अपितु इन तत्त्वों का जीवन में व्यवहार बहुत आवश्यक है। यह पुस्तक हर हिंदीभाषी को नई दृष्टि प्रदान करेगी और सोचने की नई दिशा देगी।

स्वामी विवेकानंद की अन्य पुस्तकें

  • व्यावहारिक जीवन में वेदान्त
  • ज्ञान योग पर प्रवचन
  • शिव स्तुति – Shiv Stuti in Hindi
  • मनुष्य का यथार्थ स्वरूप – स्वामी विवेकानंद (ज्ञानयोग)

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय

स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था। स्वामी विवेकानंद के पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था।   विवेकानन्द के पिता जी एक विचारक अति उदार गरीबों के प्रति सहानुभूति रखने वाले तथा सामाजिक विषयों में व्यवहारिक और रचनात्मक दृष्टिकोण रखने वाले व्यक्ति थे। स्वामी विवेकानंद जी की माता जी भुवनेश्वरी देवी जो सरल व अत्यंत धार्मिक महिला थी इनका जीवन बचपन से ही काफी संघर्ष भरा रहा है इन्होंने बहोत कम आयु में लगातार प्रयास और संघर्ष से 39 वर्ष की आयु में पूरे विश्व में छा गए थे । स्वमी विवेकानंद जी हिन्दू सभ्यता के शिरोमणि संत थे।

स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस ने सपने में आकर धर्म संसद में जाने का संदेश दिया था लेकिन नरेंद्र नाथ के पास पश्चिम देशों मैं जाने के लिए पैसे नहीं थे इसीलिए नरेंद्र नाथ ने खेत्री के महाराज से संपर्क किया उन्हीं के सुझाव पर अपना नाम स्वामी विवेकानंद रख लिया। इस प्रकार नरेंद्र का नाम स्वामी विवेकानंद पड़ा।

स्वामी विवेकानंद एक जीवनी

स्वामी विवेकानंद के गुरु का नाम श्री  रामकृष्ण परमहंस  था। रामकृष्ण परमहंस कोलकाता के दक्षिणेश्वर में स्थित काली मन्दिर के प्रसिद्ध पुजारी थे। स्वामी विवेकानंद की श्री रामकृष्ण परमहंस से पहली भेंट 1881 में हुई थी।

दक्षिणेश्वर के इसी काली मंदिर में स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस के चरणों में बैठकर ईश्वर संबंधी ज्ञान पाया था। स्वामी विवेकानंद अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के साथ पाच वर्षों 1882 से लेकर 1886 तक रह सके। स्वामी विवेकानंद समाज में व्याप्त समस्याओं को जड़ से नष्ट करना चाहते थे स्वामी विवेकानंद समाज के विभिन्न समस्या पर उन्होंने अपना महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किए।

स्वामी विवेकानंद भारतीय समाज में व्याप्त राष्ट्रीयता छुआछूत पर कटि प्रहार किया वह उच्चव निम्न जातियों के भेद को मिटाना चाहते थे वे कहते थे तुम्हारे मन में जो ईश्वर स्थित है वही मेरे मन में भी है फिर यह भेदभाव क्यों यह समानता क्यों। जातियों द्वारा निम्न जातियों के किए जाने वाले शोषण के विरुद्ध थे। स्वामी विवेकानन्द प्रत्येक राष्ट्र को अपनी स्त्री जाति का पूरा सम्मान करना चाहिए जो राष्ट्र स्त्रियो का आदर नहीं करते वो कभी उन्नति नहीं कर पाए और न भविष्य में ही कर पाएंगे ऐसा कथन स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था।

स्वामी विवेकानन्द जी ने स्त्रियों और धार्मिक तथा चरित्र संबंधित शिक्षा देने पर बल दिया स्वामी विवेकानंद जी ने बाल विवाह का विरोध किया बाल विवाह की आलोचना की विवेकानन्द ने समाज में रहकर हिंदू और मुस्लिम की एकता पर बल दिया स्वामी विवेकानंद ने आज समाज में फैली व्यर्थ कुरुतिया को हटाकर समाज को एक नई दिशा प्रदान करने पर बल दिया समाज में जितनी भी कुरुतिया थी उनकी कटु आलोचना की।

स्वामी विवेकानंद के विचार प्रमुख हैं

स्वामी विवेकानन्द  संगीत साहित्य और दर्शन उनका शौक था स्वामी विवेकानन्द ने 25 वर्ष की आयु में ही वेद पुराण बाईबल कुरान पूंजीवाद अर्थशास्त्र राजनीति शास्त्र संगीत साहित्य आदि की तमाम तरह के विचारधाराओं को ग्रहण कर लिया था जैसे बड़े होते गए विवेकानंद सभी धर्म और दर्शन के प्रति अविश्वास हो गया।

विवेकानन्द ने कहा है उठो जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए इस कथन के माध्यम से उन्होंने भारत के युवाओं को आगे बढ़ने के लिए संदेश दिया वर्तमान समय में भी विवेकानंद जी का यह संदेश युवाओं को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है जो कि अब युवाओं का मूल मंत्र भी बन चुका है।

आप नीचे दिए गए लिंक का उपयोग करके स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय PDF में डाउनलोड कर सकते हैं। 

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स्वामी विवेकानंद के संदेश | Swami Vivekananda Teachings In Hindi

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स्वामी विवेकानंद के जीवन के 11 प्रेरणादायक संदेश उनके अनमोल सुविचारों के द्वारा.

Swami vivekananda teachings by thoughts and quotes in hindi.

भारतीय युवाओं को प्राचीन भारत से लेकर अभी वर्तमान भारत तक सबसे ज्यादा किसी महापुरुष ने प्रभावित ओर प्रेरित किया होंगा, तो वो है स्वामी विवेकानंद, स्वामी विवेकानंद जी का व्यक्तिमत्त्व ही कुछ ऐसा है की आज वे हर भारतीय युवा के लिये आदर्श है, स्वामी विवेकानंद जी के अनमोल विचार और नियम कोई जो भी युवा अपनाता है, तो वो सफलतापूर्वक हार काम कर सकता है, और जीवन में उसे जो चाहे वो पा सकता है.

हम आज स्वामी विवेकानंद जी के जयंती पर उनके 11 प्रेरणादायक संदेशों ( Swami Vivekananda Teachings ) को जानते है जो प्रेरणा बन कर आपका जीवन बदल सकते हैं।

हम सभी जानते है की स्वामी विवेकानंद एक शक्तिशाली वक्ता थे, उनके भाषणों में श्रोताओ को मंत्रमुग्ध करने की ताकत थी. क्या उनकी सफलता का कोई राज़ था ? हाँ, उनके जीवन के इन सुन्दर 11 प्रेरणादायक संदेशों को अपनाकर आप भी सफल हो सकते है.

1. प्रेम ही जीवन का एकमात्र नियम है.

वह जो प्रेम करता है, जीवित रहता है और वह जो स्वार्थी है, मर रहा है. इसलिए प्रेम के लिए ही प्यार कीजिये, क्योंकि यह जीवन का नियम है. ठीक उसी तरह, जैसे आप जिन्दा रहने के लिए सांस लेते हैं.

2. जीवन सुंदर है: पहले, इस दुनिया में विश्वास करें.

विश्वास करें कि यहाँ जो कुछ भी है उसके पीछे कोई अर्थ छुपा हुआ है. दुनिया में सब कुछ अच्छा है, पवित्र है और सुंदर भी है. यदि आप, कुछ बुरा देखते हो तब इसका मतलब है आप इसे पूर्ण रूप से समझ नहीं पाएं हैं. आप अपने ऊपर का सारा बोझ उतार फेंके.

3. आप कैसा महसूस करतें हैं.

आप मसीह की तरह महसूस करें तो आप मसीह जैसा बनेंगें, आप बुद्ध की तरह महसूस करें तो आप बुद्ध जैसा बनेंगें. विचार ही जीवन है, यह शक्ति है और इसके बिना कोई बौद्धिक गतिविधि भगवान तक नहीं पहुँच सकती है.

4. अपने आप को मुक्त करें.

जिस क्षण मैं यह अहसास करता हूँ कि भगवान् हर मानव शरीर के अन्दर है, उस पल में जिस किसी भी मनुष्य के सामने खड़ा होता हूँ तो मैं उसमें भगवान् पाता हूँ, उस पल में मैं बंधन से मुक्त हो जाता हूँ और सारे बंधन अद्रश्य हो जातें हैं और मैं मुक्त हो जाता हूँ.

5. निंदा दोष का खेल मत खेलिए.

किसी पर भी आरोप प्रति आरोप न करें. आप किसी की मदद के लिए हाथ बड़ा सकतें हैं तो ऐसा अवश्य करें. और उन्हें अपने-अपने रास्ते पर चलने दें.

  • प्रेरणादायक:  स्वामी विवेकानंद जी के प्रेरक प्रसंग
  • सुविचार:  Swami Vivekananda Thoughts
  • भाषण:  स्वामी विवेकानंद जी का प्रेरणादायक भाषण

6. दूसरे की मदद करें.

यदि धन दूसरों के लिए अच्छा करने के लिए एक आदमी को मदद करता है, यह कुछ मूल्य का है, लेकिन अगर नहीं, तो यह केवल बुराई की जड़ है, और जितनी जल्दी इससे छुटकारा मिल जाए, उतना अच्छा है.

7. अपनी आत्मा को सुनो.

तुम अंदर से बाहर की ओर बढो. यह कोई तुम्हें सिखा नहीं सकता है, न ही कोई तुम्हें आध्यात्मिक बना सकता है. वहाँ कोई अन्य शिक्षक नहीं है, जो कुछ भी है आपकी खुद की आत्मा है.

8. कुछ भी असंभव नहीं है.

ये कभी भी मत सोचो कि आत्मा के लिए कुछ भी असंभव है. ऐसा सोचना सबसे बड़ा पाखण्ड है. यदि कोई पाप है, तो केवल यही पाप है- कि तुम कहते हो, तुम कमजोर हो या दूसरें कमजोर हैं.

9. तुम में शक्ति है.

ब्रह्मांड में सभी शक्तियां पहले से ही हमारी हैं. यह हम हैं जो अपनी आंखों को हाथों से ढँक लेतें हैं और बोलतें हैं कि यहाँ अँधेरा है.

10. सच्चे रहो.

सब कुछ सच के लिए बलिदान किया जा सकता है, लेकिन सत्य, सब कुछ के लिए बलिदान नहीं किया जा सकता है.

11. अलग सोचो.

दुनिया में सारे मतभेद उनको विभिन्न नज़रिए से देखने की वज़ह से हैं, कहने का अर्थ हमें अपनी अनुभूतियों के कारण सब कुछ अलग-अलग दिखता है परन्तु सच में सारा कुछ एक में ही समाया हुआ है.

स्वामी विवेकानंद के प्रेरणादायक संदेशों (Swami Vivekananda Teachings) को अपने जीवन में अपनाकर हम निश्चित ही सफलता हासिल कर सकते है. अगर हम उनके इस 11 प्रेरणादायक संदेशों में से किसी 1 को भी पूरी इमानदारी के साथ जीवन में उतरते हे, तो आपको सफल होने से कोई नहीं रोक सकता. You Will Be Unstoppable.

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10 thoughts on “स्वामी विवेकानंद के संदेश | Swami Vivekananda Teachings In Hindi”

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sir savami vikanad ka anmol vichar bahut aacha lagha aaur esi tarah bhenjate rahiye

sir savami vikanad ka anmol vichar bahut aacha lagha

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Sir ye btao ki yhan प्रेम se Kay mtlb h kis trh ka prem

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Swami ji apne ko control krne ki power adbhut thi..unka apne body k hr hisse pr jberdst control tha

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स्वामी विवेकानंद की जीवनी PDF in Hindi download

स्वामी विवेकानंद कौन थे इन हिंदी.

स्वामी विवेकानंद की जीवनी pdf स्वामी विवेकानन्द समाज के हीरो थे समाज मे फैले अंधविश्वास को दूर करना इनका प्रमुख कार्य था। स्वामी विवेकानंद जी विश्व विख्यात और प्रतिभाशाली छवि के व्यक्ति थे उन्होंने अमरीका स्थित शिकागो में आयोजित विश्व धर्म सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया जो आज विश्व में विश्व ख्याति प्राप्त है उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की वे एक महान समाज सुधारक और महान व्यक्ति थे।

स्वामी विवेकानंद सदियों से हर भारतीय युवा के लिए आदर्श रहे हैं। विवेकानंद बचपन से जिज्ञासु और एक विशेष प्रतिभा के धनी थे। उनका आदर्श विचार और शक्तिशाली व्यक्तित्व आज भी दुनिया को प्रेरित करती है।

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय इन हिंदी

स्वामी विवेकानंद की जीवनी PDF in Hindi download – स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था। स्वामी विवेकानंद के पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था स्वामी विवेकानंद जी को नरेंद्र के नाम से भी जाना जाता था स्वामी विवेकानंद जी के पिताजी वकालत करते थे।

स्वामी विवेकानन्द के पिता जी एक विचारक अति उदार गरीबों के प्रति सहानुभूति रखने वाले तथा सामाजिक विषयों में व्यवहारिक और रचनात्मक दृष्टिकोण रखने वाले व्यक्ति थे।

स्वामी विवेकानंद जी की माता जी भुवनेश्वरी देवी जो सरल व अत्यंत धार्मिक महिला थी इनका जीवन बचपन से ही काफी संघर्ष भरा रहा है इन्होंने बहोत कम आयु में लगातार प्रयास और संघर्ष से 39 वर्ष की आयु में पूरे विश्व में छा गए थे । स्वमी विवेकानंद जी हिन्दू सभ्यता के शिरोमणि संत थे।

स्वामी विवेकानंद का बचपन का नाम क्या था

स्वामी विवेकानन्द जी बचपन से हैं चिंतनशील प्रवृत्ति के व्यक्ति थे उनके माता-पिता ने इसका बचपन का नाम नरेंद्रनाथ दत्त रखा गया।

स्वामी विवेकानंद को विवेकानंद नाम किसने दिया था?

स्वामी विवेकानंद का नाम विवेकानंद कैसे पड़ा स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस ने सपने में आकर धर्म संसद में जाने का संदेश दिया था लेकिन नरेंद्र नाथ के पास पश्चिम देशों मैं जाने के लिए पैसे नहीं थे इसीलिए नरेंद्र नाथ ने खेत्री के महाराज से संपर्क किया उन्हीं के सुझाव पर अपना नाम स्वामी विवेकानंद रख लिया। इस प्रकार नरेंद्र का नाम स्वामी विवेकानंद पड़ा।

स्वामी विवेकानंद के गुरु कौन थे

स्वामी विवेकानंद की जीवनी PDF in Hindi download

स्वामी विवेकानंद के गुरु का नाम श्री रामकृष्ण परमहंस था। रामकृष्ण परमहंस कोलकाता के दक्षिणेश्वर में स्थित काली मन्दिर के प्रसिद्ध पुजारी थे।  स्वामी विवेकानंद की श्री रामकृष्ण परमहंस से पहली भेंट 1881 में हुई थी।

दक्षिणेश्वर के इसी काली मंदिर में स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस के चरणों में बैठकर ईश्वर संबंधी ज्ञान पाया था। स्वामी विवेकानंद अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के साथ पाच वर्षों 1882 से लेकर 1886 तक रह सके।

स्वामी विवेकानंद के सामाजिक विचार PDF

स्वामी विवेकानंद समाज में व्याप्त समस्याओं को जड़ से नष्ट करना चाहते थे स्वामी विवेकानंद समाज के विभिन्न समस्या पर उन्होंने अपना महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किए।

स्वामी विवेकानंद भारतीय समाज में व्याप्त राष्ट्रीयता छुआछूत पर कटि प्रहार किया वह उच्चव निम्न जातियों के भेद को मिटाना चाहते थे वे कहते थे तुम्हारे मन में जो ईश्वर स्थित है वही मेरे मन में भी है फिर यह भेदभाव क्यों यह समानता क्यों।

जातियों द्वारा निम्न जातियों के किए जाने वाले शोषण के विरुद्ध थे। स्वामी विवेकानन्द प्रत्येक राष्ट्र को अपनी स्त्री जाति का पूरा सम्मान करना चाहिए जो राष्ट्र स्त्रियो का आदर नहीं करते वो कभी उन्नति नहीं कर पाए और न भविष्य में ही कर पाएंगे ऐसा कथन स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था।

स्वामी विवेकानन्द जी ने स्त्रियों और धार्मिक तथा चरित्र संबंधित शिक्षा देने पर बल दिया स्वामी विवेकानंद जी ने बाल विवाह का विरोध किया बाल विवाह की आलोचना की विवेकानन्द ने समाज में रहकर हिंदू और मुस्लिम की एकता पर बल दिया स्वामी विवेकानंद ने आज समाज में फैली व्यर्थ कुरुतिया को हटाकर समाज को एक नई दिशा प्रदान करने पर बल दिया समाज में जितनी भी कुरुतिया थी उनकी कटु आलोचना की।

स्वामी विवेकानंद जी के विचार प्रमुख हैं

स्वामी विवेकानन्द संगीत साहित्य और दर्शन उनका शौक था स्वामी विवेकानन्द ने 25 वर्ष की आयु में ही वेद पुराण बाईबल कुरान पूंजीवाद अर्थशास्त्र राजनीति शास्त्र संगीत साहित्य आदि की तमाम तरह के विचारधाराओं को ग्रहण कर लिया था जैसे बड़े होते गए विवेकानंद सभी धर्म और दर्शन के प्रति अविश्वास हो गया।

विवेकानन्द ने कहा है उठो जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए इस कथन के माध्यम से उन्होंने भारत के युवाओं को आगे बढ़ने के लिए संदेश दिया वर्तमान समय में भी विवेकानंद जी का यह संदेश युवाओं को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है जो कि अब युवाओं का मूल मंत्र भी बन चुका है।

खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप है

तुम्हें कोई पढ़ा नहीं सकता कोई आध्यात्मिक नहीं बना सकता

सत्य को हजार तारीख को से बताया जा सकता है फिर भी हर एक सत्य ही होगा

स्वामी विवेकानन्द पुस्तकें

  • कर्मयोग ज्ञानयोग
  • हिन्दू धर्म
  • मेरा जीवन तथा ध्येय
  • जातीय संस्कृति और समाजवाद
  • वर्तमान भारत
  • पवहारी बाबा
  • मेरी समर नीति
  • जागृति का संदेश
  • भारतीय नारी
  • मरणोत्तर जीवन

शिकागो व्याख्यान में स्वामी विवेकानंद ने क्या संदेश दिया था

शिखागो के व्याख्यान में स्वामी विवेकानंद ने प्रेम एवं मानवता का संदेश दिया था। स्वामी विवेकानन्द ने अमेरिका के शिकागों शहर में 11 सितंबर 1893 को हुए विश्व धर्म सम्मेलन में एक अविस्मरणीय व्याख्यान दिया था।

स्वामी विवेकानंद की मृत्यु कब हुई

स्वामी विवेकानन्द जी की मृत्यु 4 जुलाई, 1902 को हुई। मृत्यु के पहले शाम के समय बेलूर मठ में उन्होंने 3 घंटे तक योग किया। शाम के करीब 7 बजे अपने कक्ष में जाते हुए उन्होंने किसी से भी उन्हें व्यवधान ना पहुंचाने की बात कही और रात के 9 बजकर 10 मिनट पर उनकी मृत्यु की खबर मठ में फैल गई।

ऐसा कहा जाता है की स्वामी विवेकानन्द जी ने समाधि ले थी स्वामी विवेकानंद की मृत्यु दिमाग की नसे फटने के कारण हुई थी।

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अब सभी जानकारी हिंदी में

स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekanand) का जीवन परिचय – Biography

स्वामी विवेकानंद जी का जीवन परिचय (Biography of Swami Vivekananda in Hindi)

Table of Contents

स्वामी विवेकानंद जीवनी (जीवनी), प्रेरक प्रसाद, अनमोल विचार हिंदी में (Swami Vivekananda’s Biography and inspirational story in Hindi)

स्वामी विवेकानंद भारतीय वैदिक सनातन संस्कृति के जीवंत अवतार थे। जिन्होंने पूरे विश्व को भारत की संस्कृति, धर्म और नैतिक मूल्यों के मूल से परिचित कराया। स्वामी जी वेद, साहित्य और इतिहास की विधा में पारंगत थे। 

पिछले लेख में, हमने महत्वपूर्ण विषय  Dr. APJ अब्दुल कलाम का इतिहास व जीवन परिचय और Meesho App क्या है और इस से पैसे कैसे कमाए? सम्पूर्ण जानकारी ! के बारे में अच्छे से और सम्पूर्ण जानकारी प्रदान कर चुके हैं।

जीवन परिचय बिंदुजीवन परिचय
नाम (Name)स्वामी विवेकानंद
वास्तविक नाम (Real Name)नरेन्द्र दास दत्त
पिता का नाम (Father Name)विश्वनाथ दत्त
माता का नाम (Mother Name)भुवनेश्वरी देवी
जन्म दिनांक (Birth Date)12 जनवरी 1863
जन्म स्थान (Birth Place)कलकत्ता
गुरु का नाम (Guru/Teacher)रामकृष्ण परमहंस
प्रसिद्दी कारण (Known For)संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड और यूरोप में हिंदू दर्शन के सिद्धांतों का प्रसार
पेशा (Profession)आध्यात्मिक गुरु
मृत्यु दिनांक (Death)4 जुलाई 1902
मृत्यु स्थान (Death Place)बेलूर मठ, बंगाल

स्वामी विवेकानंद ने संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप में हिंदू आध्यात्मिक ज्ञान का प्रचार किया। उनका जन्म कलकत्ता के एक हाई-प्रोफाइल परिवार में हुआ था। उनका असली नाम नरेंद्र नाथ दत्त था।

छोटी उम्र में ही वे गुरु रामकृष्ण परमहंस के संपर्क में आ गए और सनातन धर्म के प्रति उनका झुकाव बढ़ने लगा।

गुरु रामकृष्ण परमहंस से मिलने से पहले वे एक सामान्य इंसान की तरह अपना सामान्य जीवन व्यतीत कर रहे थे। गुरुजी ने उनके भीतर ज्ञान का प्रकाश जलाने का काम किया। 

उन्हें 1893 में शिकागो में आयोजित धर्मों की विश्व महासभा में अपने भाषण के लिए जाना जाता है। उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत “मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों” कहकर की थी, स्वामी विवेकानंद की अमेरिका यात्रा से पहले, भारत को दासो का स्थान माना जाता था और अज्ञानी लोग। स्वामी जी ने दुनिया को भारत के आध्यात्मिक रूप से समृद्ध वेदांत का दर्शन कराया।

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स्वामी विवेकानंद का जन्म और परिवार (Birth and Family of Swami Vivekananda)

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कलकत्ता के गौरमोहन मुखर्जी स्ट्रीट में हुआ था। स्वामी जी के बचपन का नाम नरेंद्र दास दत्त था। वह कलकत्ता के एक हाई-प्रोफाइल कुलीन परिवार से थे। उनके पिता विश्वनाथ दत्त एक प्रसिद्ध और सफल वकील थे। 

उन्होंने कलकत्ता में उच्च न्यायालय में अटॉर्नी-एट-लॉ का पद संभाला। माता भुवनेश्वरी देवी बुद्धिमान और धार्मिक प्रवृत्ति की थीं। जिससे उन्हें अपनी मां से हिंदू धर्म और सनातन संस्कृति को करीब से समझने का मौका मिला।

स्वामी विवेकानंद का बचपन (The Childhood of Swami Vivekananda)

स्वामीजी एक आर्थिक रूप से संपन्न परिवार में पले-बढ़े। उनके पिता पश्चिमी संस्कृति में विश्वास करते थे, इसलिए वे उन्हें अंग्रेजी भाषा और शिक्षा का ज्ञान देना चाहते थे। 

उनका कभी भी अंग्रेजी पढ़ाने का मन नहीं हुआ। बहुमुखी प्रतिभा के धनी होने के बावजूद उनका शैक्षिक प्रदर्शन औसत रहा। उन्होंने यूनिवर्सिटी एंट्रेंस लेवल पर 47 फीसदी, एफए में 46 फीसदी और बीए में 56 फीसदी अंक हासिल किए.

माता भुवनेश्वरी देवी एक धार्मिक महिला थीं जो नरेंद्रनाथ ( स्वामीजी के बचपन का नाम ) के बचपन में रामायण और महाभारत की कहानियां सुनाती थीं। जिसके बाद उनकी आध्यात्मिकता क्षेत्र में बढ़ती चली गई। 

कथा सुनते-सुनते उनका मन आनंद से भर गया। रामायण सुनते-सुनते नरेंद्र की सीधी-साधी संतान भक्ति से भर उठी। वे प्राय: अपने ही घर में तपस्वी हो जाते थे। एक बार वे अपने ही घर में ध्यान में इतने मग्न हो गए कि घरवालों ने उन्हें जोर से हिलाया, फिर कहीं जाकर उनका ध्यान भंग किया।

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स्वामी विवेकानंद का सफ़र (The Journey of Swami Vivekananda)

25 साल की उम्र में उन्होंने अपना घर और परिवार छोड़कर संन्यासी बनने का फैसला किया। अपने छात्र जीवन में, वह ब्रह्म समाज के नेता महर्षि देवेंद्र नाथ ठाकुर के संपर्क में आए। स्वामीजी की जिज्ञासा शांत करने के लिए उन्होंने नरेंद्र को रामकृष्ण परमहंस के पास जाने की सलाह दी।

स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी दक्षिणेश्वर के काली मंदिर के पुजारी थे। परमहंस जी की कृपा से स्वामी जी को ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे परमहंस जी के प्रमुख शिष्य बन गए।

1885 में, रामकृष्ण परमहंस की कैंसर से मृत्यु हो गई। उसके बाद स्वामीजी ने रामकृष्ण संघ की स्थापना की, जिसे बाद में रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन के नाम से जाना जाने लगा।

शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन (World Conference of the Religions in Chicago)

11 सितंबर, 1893 को शिकागो में धर्मों का विश्व सम्मेलन होना था। उस सम्मेलन में स्वामी जी भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे थे।

जैसे ही स्वामी जी ने धर्म सम्मेलन में अपनी शक्तिशाली आवाज के साथ अपना भाषण शुरू किया और कहा “मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों”, 5 मिनट के लिए सभागार तालियों की गड़गड़ाहट के साथ गूंज उठा। 

इसके बाद स्वामी जी ने अपने भाषण में भारतीय सनातन वैदिक संस्कृति पर अपने विचार प्रस्तुत किए। इससे न केवल अमेरिका बल्कि विश्व में स्वामीजी का सम्मान बढ़ा।

स्वामी जी द्वारा दिए गए मौखिक इतिहास के पन्नों में वे आज भी अमर हैं। धर्म संसद के बाद स्वामी जी ने तीन साल तक अमेरिका और ब्रिटेन में वेदांत की शिक्षाओं का प्रचार किया। 15 अगस्त 1897 को स्वामीजी श्रीलंका पहुंचे, जहां उनका जोरदार स्वागत हुआ।

स्वामी विवेकानंद के प्रेरक प्रसंग (Inspiring story of Swami Vivekananda)

जब स्वामीजी की ख्याति पूरी दुनिया में फैल गई थी। तभी एक विदेशी महिला उनसे प्रभावित होकर उनसे मिलने आई। महिला ने स्वामी जी से कहा- “मैं तुमसे शादी करना चाहती हूं।”

स्वामी जी ने कहा- हे देवी, मैं एक ब्रह्मचारी हूं, मैं आपसे कैसे विवाह कर सकता हूं?

वह एक विदेशी महिला स्वामी जी से शादी करना चाहती थी ताकि उसे स्वामी जी जैसा बेटा मिल सके और वह बड़ा होकर दुनिया में अपना ज्ञान फैला सके और अपना नाम बना सके।

उसने स्त्री को नमस्कार किया और कहा, “माँ, आज से तुम मेरी माँ हो।” तुम्हें भी मेरे जैसा पुत्र मिला है और मेरा ब्रह्मचर्य चलेगा। यह सुनकर वह स्त्री स्वामीजी के चरणों में गिर पड़ी।

Dr. APJ अब्दुल कलाम का इतिहास व जीवन परिचय

स्वामी विवेकानंद की मृत्यु  (death of swami vivekananda ).

4 जुलाई 1902 को स्वामी जी ने बेलूर मठ में पूजा-अर्चना की और योग भी किया।

उसके बाद वहां के छात्रों को योग, वेद और संस्कृत विषय पढ़ाया गया। शाम को स्वामी जी अपने कमरे में योग करने गए और अपने शिष्यों को शांति भंग करने से मना किया और योग करते हुए उनकी मृत्यु हो गई।

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39 वर्ष की आयु में स्वामी जी जैसे प्रेरणा के देवता का मेल हो गया। स्वामी के जन्मदिन को पूरे भारत में “ युवा दिवस “ (National Youth Day) के रूप में मनाया जाता है।

स्वामी विवेकानंद जी के अनमोल विचार हिंदी में (The Precious thoughts of Swami Vivekananda in Hindi)

1- “अपने जीवन में जोखिम उठाएं, यदि आप जीतते हैं, तो आप नेतृत्व कर सकते हैं! यदि आप हार जाते हैं, तो आप मार्गदर्शन कर सकते हैं!”

2- “शक्ति ही जीवन है; कमजोरी मौत है।”

3- “अनुभव ही हमारे पास एकमात्र शिक्षक है। हम जीवन भर बात और तर्क कर सकते हैं, लेकिन हम सत्य के एक शब्द को नहीं समझेंगे।”

4- “अगर आप खुद को मजबूत समझते हैं, तो आप मजबूत होंगे।”

5- “एक विचार लें, उस एक विचार को अपना जीवन बनाएं। इसके बारे में सोचें, इसके सपने देखें, उस विचार पर जिएं, मस्तिष्क, मांसपेशियों, नसों, आपके शरीर के हर हिस्से को उस विचार से भरा होने दें, और हर दूसरे विचार को अकेला छोड़ दें। यही सफलता का मार्ग है।”

6- “खड़े हो जाओ, निर्भीक बनो, और दोष अपने कंधों पर लो। दूसरों पर कीचड़ उछालना मत; आप जिन सभी दोषों से पीड़ित हैं, उनके लिए आप एकमात्र और एकमात्र कारण हैं।”

7- “ध्यान मूर्खों को साधु बना सकता है लेकिन दुर्भाग्य से मूर्ख कभी ध्यान नहीं करते।”

8- “वह मनुष्य अमरत्व को प्राप्त हो गया है जो किसी भी भौतिक वस्तु से व्याकुल नहीं है।”

9- “आप जो कुछ भी विश्वास करते हैं, कि आप होंगे, यदि आप अपने आप को युगों का मानते हैं, तो आप कल होंगे।

आपको बाधित करने के लिए कुछ भी नहीं है।”

10- “आप भगवान पर तब तक विश्वास नहीं कर सकते जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते।”

यह भी पढ़ें-  Dr. APJ अब्दुल कलाम का इतिहास व जीवन परिचय

इस ट्यूटोरियल में, हमने आपको “ स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय हिंदी में (Biography of Swami Vivekananda in Hindi) ” के बारे में पूरी जानकारी दी है। यह ट्यूटोरियल आपके लिए उपयोगी होगा। आपको यह जानकारी कैसी लगी कमेंट कर के जरूर बताइये और अपने सुझाव को हमारे साथ शेयर करें ।

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    दोस्तों आज की इस आर्टिकल में हम आपको स्वामी विवेकानंद पर निबंध सरल भाषा में - Essay on Swami Vivekananda in Hindi के बारे में बताएंगे यानी की Swami Vivekananda par Nibandh kaise Likhe इसके बारे में ...

  16. स्वामी विवेकानंद जीवनी

    स्वामी विवेकानंद जीवनी - Biography of Swami Vivekananda in Hindi Jivani. Published By : Jivani.org. नाम : नरेन्द्र नाथ दत्त (स्वामी विवेकानंद)।. जन्म : १२ जनवरी १८६३. मृत्यु : ४ जुलाई ...

  17. स्वामी विवेकानंद की जीवनी ~ Biography Of Swami Vivekananda In Hindi

    Swami Vivekananda Biography In Hindi,All Information About Swami Vivekananda In Hindi Language With Life History, स्वामी विवेकानंद जीवन परिचय,Biography Of Swami Vivekananda In Hindi. जन्म. नरेंद्रनाथ दत्त 12 जनवरी 1863कलकत्ता ...

  18. ज्ञानयोग: स्वामी विवेकानंद की पुस्तक

    ज्ञानयोग - स्वामी विवेकानंद की प्रसिद्ध पुस्तक. "ज्ञानयोग" स्वामी विवेकानंद की मुख्य पुस्तकों में से एक है। इस विषय पर उन्होंने ...

  19. स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय PDF

    स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय. स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था। स्वामी विवेकानंद के पिता का नाम ...

  20. स्वामी विवेकानंद के संदेश

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  21. स्वामी विवेकानंद की जीवनी PDF In Hindi Download

    स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय इन हिंदी. स्वामी विवेकानंद की जीवनी PDF in Hindi download - स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में ...

  22. स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekanand) का जीवन परिचय

    स्वामी विवेकानंद जी के अनमोल विचार हिंदी में (The Precious thoughts of Swami Vivekananda in Hindi) 1- "अपने जीवन में जोखिम उठाएं, यदि आप जीतते हैं, तो आप नेतृत्व कर ...

  23. ज्ञान योग: स्वामी विवेकानंद

    स्वामी विवेकानंद-Swami Vivekananda: ... स्वामी विवेकानंद | Gyan Yoga PDF In Hindi" Ulhas Balwant Hejib. October 24, 2022 at 11:06 pm. बहुत प्रशंसनीय कार्य. शत शत प्रणाम. Reply. Raj yadav. December 2, 2022 at 2:53 pm. I want to ...

  24. Swami Vivekananda: Five teachings of Vivekananda to instill in children

    Swami Vivekananda's teachings on self-control, diligent effort, routine, self-respect, and determination provided invaluable guidance on discipline for children. He believed self-discipline was ...